यूपी में भर्ती और नियुक्ति घोटाला, योगी सरकार कटघरे में

बांदा एग्री यूनिवर्सिटी में 15 प्रोफेसरों में से 11 ठाकुर

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार एक बार फिर भर्ती और नियुक्ति को लेकर सुर्खियों में है। बीते दिनों बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई की गरीब कोटे से हुई नियुक्ति को लेकर जमकर बवाल हुआ था। अब बांदा के कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में हुई भर्तियों को लेकर विवाद जारी है। कहा जा रहा है कि विश्वविद्यालय में प्रवक्ता के पदों पर हुई नियुक्ति के दौरान आरक्षण रोस्टर के नियमों को नज़रअंदाज़ कर एक विशेष जाति समुह के लोगों को तवज्जों दी गई है। विपक्ष सरकार पर दलित और पिछड़ा विरोधी होने का आरोप लगा रही है तो वहीं सरकार फिलहाल जांच का हवाला देते हुए पूरे मामले पर कुछ भी कहने से बच रही है। हालांकि इस पूरे मामले को लाइमलाइट में लाने का काम भी बांदा के तिंदवारी सीट से बीजेपी विधायक बृजेश प्रजापति ने ही किया है।

क्या है पूरा मामला?

दैनिक भास्कर की खबर के मुताबिक बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने हाल ही में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के 20 पदों के लिए भर्तियां निकाली थी। इन 20 में से 18 सामान्य और दो EWS कोटे की भर्तियां बताई गईं। इनमें से 15 नियुक्तियां की गईं। रिजल्ट एक जून को घोषित किया गया, इसके बाद लिस्ट की बारीकी को देखकर सवाल उठने लगा। 15 भर्तियों में से 11 पदों पर सामान्य वर्ग की एक ही जाति ‘ठाकुर’ समुदाय के लोगों का चयन किया गया, जबकि बाकी बचे चार पदों पर एक ओबीसी, एक अनुसूचित जाति, एक भूमिहार और एक मराठी समुदाय से नियुक्ति की गई है। अब खुद महकमे के मंत्री ठाकुर समुदाय से आते हैं, लिहाजा सवाल उठना लाजमी था। हालांकि सवाल पूछने वाले भी बीजेपी विधायक ही थे।

आरक्षण रोस्टर के नियमों का अनुपालन नहीं

बांदा के तिन्दवारी विधानसभा के भाजपा विधायक बृजेश कुमार प्रजापति ने इस पूरी भर्ती प्रक्रिया को लेकर शिकायत की। उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी, सीएम योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र लिख कर कहा कि बांदा कृषि विश्वविद्यालय में जो प्रवक्ता के पद पर नियुक्ति की गई है, उसमें आरक्षण रोस्टर के नियमों का अनुपालन नहीं किया गया है। इसके लिए जो विज्ञापन निकाले गए हैं, उसमें गंभीर अनियमिताएं हैं। इससे लोगों के बीच गलत संदेश जा रहा है और इसलिए इन नुक्तियों को निरस्त कर दोबारा प्रकिया शरू की जाए।

विधायक बृजेश कुमार प्रजापति ने कहा कि नियुक्तियां गलत तरीके से हुई हैं। रोस्टर का पालन नहीं होने से आरक्षण के मानक पूरे नहीं हुए, जिससे पात्र लोगों को लाभ नहीं मिला सका। यह पूरी नियुक्ति गलत है, इसे रद कर फिर से प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए। मैं जाति व क्षेत्रवाद की राजनीति नहीं करता। बुंदेलखंड में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। अगर नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी तरीके से होती तो यहां के लोगों को भी मौका मिलता। कुछ लोगों को अनुचित लाभ देने के लिए ही भर्ती गलत तरीके से की गई है। इसकी जांच होनी चाहिए, जो भी दोषी हो, उस पर कार्रवाई हो।

मालूम हो कि कई मीडिया रिपोर्ट्स में भर्ती के नियम में भी छेड़छाड़ की बात भी सामने आ रही है। सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि भर्ती के लिए 80 अंक अकादमिक और 20 अंक साक्षात्कार के निर्धारित होते हैं। यही शासनादेश है, लेकिन इस भर्ती में 70 अंक अकादमिक व 30 अंक साक्षात्कार का कर दिया गया, जो संदेह पैदा करता है।

विश्वविद्यालय प्रशासन क्या कह रहा है?

बांदा कृषि विश्वविद्यालय की तरफ से मीडिया को बताया गया कि प्रोफेसर पद पर यह नियुक्ति इंटरव्यू के आधार पर की गई है। इसके लिए पहले विज्ञापन निकाला गया। यह विज्ञापन अखबारों के अलावा रोजगार समाचार पत्रों में भी छपे थे। इसके बाद जितने एप्लीकेशन आए, उनकी स्क्रीनिंग की गई। स्क्रीनिंग के बाद एक पोस्ट के लिए अधिकतम 10 उम्मीदवारों को सिलेक्ट किया गया। इंटरव्यू का 3 चरण होता है। पहले चरण में एकेडमिक प्रोफाइल देखी गई। दूसरे चरण में अभ्यर्थियों के टीचिंग स्केल के लिए प्रेजेंटेशन देखा जाता है और फिर इंटरव्यू किया जाता है।

इसके लिए के लिए अलग-अलग नंबर निर्धारित किया गया। एकेडमिक प्रोफाइल के लिए 70 नंबर, इंटरव्यू के लिए 20 और टीचिंग स्केल के लिए 10 नंबर निर्धारित था। कुल 100 नंबरों में से ही अधिकतम अंक पाने वाले अभ्यर्थियों का चयन हुआ है। इस मामले में बांदा कृषि विश्वविद्यालय के कुलसचिव सुरेंद्र सिंह ने आजतक से बातचीत में कहा कि इन नियुक्तियों में इतना पारदर्शी सिस्टम होता है कि इसमें कोई धांधली कर ही नहीं सकता है। ये पूरी प्रक्रिया एक चयन की हुई कमेटी के माध्यम से होती है। जो जिस कैटेगरी का होता है, उसमें ही उसका सलेक्शन होता है।  ये सभी लोग अपने-अपने नंबर देते हैं, नंबर कंपाइल करके नतीजा तैयार किया जाता है। इसके साथ ही इस प्रक्रिया की रिकॉर्डिंग भी की जाती है। इसकी रिकॉर्डिंग कुलपति महोदया जी के यहां भी भेजी जाती है।

कुलसचिव सुरेंद्र सिंह ने इस मामले में कहा, “इसमें कुल 40 पोस्ट थी। जिसमें से 24 पोस्ट भरे गए हैं, कुछ पोस्ट पर NFS (कैंडिडेट नहीं आना) रहा। जबकि 24 पोस्ट पर देश से लोग आए। इसका इतना पारदर्शी सिस्टम होता है कि इसके लिए पूरी एक कमेटी बनाई जाती है। इस कमेटी में गर्वनर के द्वारा भी एक व्यक्ति नामित किया जाता है। इसके बाद डीन होते हैं, हेड होते हैं। सभी कैटेगरी के प्रतिनिधी भी होते हैं।”

विपक्ष क्या बोल रहा है?

आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने इस मामले को लेकर योगी सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने अपने ट्वीट में योगी सरकार को दलित और पिछड़ा विरोधी बताते हुए इस भर्ती प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए।

ट्वीट में संजय सिंह ने लिखा, “मैं बार-बार कहता हूं भाजपा दलितों/पिछड़ों की विरोधी है। इस मामले में भी SC/ST/OBC की नौकरी खा ली गई। आदित्यनाथ जी एक बात साफ़ कीजिये अगर 15 में से 11 भर्ती एक जाति की हुई तो आरक्षण का क्या हुआ? ये तो खुलेआम SC/ST/OBC का हक़ मारा जा रहा है। कांग्रेस नेता उदित राज ने इस मामले पर योगी सरकार को घेरते हुए कहा, “बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 15 प्रोफ़ेसर की भर्ती 1 जून को घोषित किया। जिनमें 11 ठाकुर जाति के हैं, जबकि 1 ओबीसी, 1 एससी 1 भूमिहार और 1 मराठी शामिल है. हज़ारों साल से जाति ही मेरिट रही है और अभी चालू है।”

गौरतलब है कि यूपी में 69000 शिक्षक भर्ती घोटाला हो या 2018 में UPSSSCद्वारा आयोजित ग्राम विकास अधिकारी की भर्ती का मामला हो, हर जगह भ्रष्टाचार सुर्खियों में रहा है। हर बार की तरह इस बार भी बांदा कृषि विश्वविद्यालय की भर्ती मामले को तूल पकड़ता देख कृषि मंत्री सूय प्रताप शाही ने इस मामले की जांच के आदेश दे दिए। लेकिन पुराने मामलों की तरह जांच पर जांच और फिर नतीजा कब सामने आएगा कुछ नहीं कहा जा सकता। हालांकि यूपी 2022 का विधानसभा चुनाव जरूर सिर पर है ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि कभी समाजवादी पार्टी को भ्रष्टाचार के नाम पर सत्ता के बाहर का रास्ता दिखाने वाली बीजेपी अपने कार्यकाल में हुए तमाम घोटालों पर क्या सफाई देती है।

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