अमानवीयता की हद : जेसीबी से शव को दफनाने की घटना अब बिहार में

चारों तरफ कोरोना से ज्यादा दुर्दशा का आलम है!

कोरोना मरीजों और मृतकों के प्रति सरकारों और शासन-प्रशासन-चिकित्सकों की असंवेदनशीलता भयावह रूप से उतरा रही हैं। ना जीने में चैन, ना मरने पर राहत। हद यह कि जेसीबी से भी लाशों के संस्कार की तमाम घटनाएं सामने आ चुकी हैं। ताजा घटना बिहार के पूर्णिया की है, जहाँ एक मरीज के शव को जेसीबी द्वारा दफना दिया गया।

सोशल मीडिया पर हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ है। इसमें साफ देखा जा सकता है कि एक कोरोना मरीज के शव को जेसीबी मशीन के जरिए दफनाया जा रहा है। यह भयावह घटना बिहार के अमौर के एक कोविड केयर सेंटर की है।

शनिवार को यहाँ कोविड सेंटर में भर्ती 60 वर्षीय कोविड-संक्रमित पांचू यादव की ईलाज के दौरान मौत हो गई। मौत होने के बाद शव को एक प्लास्टिक कवर में लपेटा गया और उसे जेसीबी मशीन में डाल दिया गया। शव को उस जगह रखा गया, जहां से जेसीबी मिट्टी की खुदाई करता है।

असंवेदनशीलता की हद यह कि शव को जेसीबी से दो किलोमीटर दूर ले जाया गया और जलाने के बजाय पलसा पुल के पास ले जाया गया, जहाँ एक गड्ढा खोदकर शव को उसमें दफना दिया गया।

शव का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार नहीं किये जाने से ग्रामीणों में आक्रोश है।

लाश दफनाने के लिए JCB से की जा रही खुदाई, परिजन वीडियो कॉल के जरिए कर रहें  अंतिम संस्कार | Government guideline for funeral of those who died of  corona in India kpn

पहले भी हुईं जेसीबी से दफनाने की घटनाएं

पिछले दिनों बिहार के बक्सर ज़िले के चौसा श्मशान घाट पर गंगा में कम से कम 40 लाशें तैरती हुई मिली थीं। शवों को बिहार बनाम यूपी के झगड़े में उलझाने के बाद बक्सर प्रशासन ने घाट पर जेसीबी मशीन से गड्डा खुदवाकर लाशों को दफ़ना दिया था।

पिछले साल जुलाई में आंध्र प्रदेश के तिरुपति में कोविड-19 रोगी के शव को दफनाने के लिए एक जेसीबी के इस्तेमाल का मामला सामने आया था। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो से साफ था कि कुछ लोग शव को जेसीबी मशीन से लाते हैं और एक गड्ढे में डाल देते हैं।

इससे पूर्व उदयापुरम इलाके में 72 साल के एक बुजुर्ग की कोरोना से मौत हो होने पर उनकी बॉडी को प्लास्टिक में लपेट कर जेसीबी मशीन में आगे की तरफ रखा गया, इसके बाद शव को अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट पहुंचाया गया।

उस व्यक्त आंध्र प्रदेश में एक माह में लगातार चौथी बार ऐसी घटना सामने आई थी।

मानवद्रोही व्यवस्था में इंसान की कोई कीमत नहीं

कोरोना वायरस का संक्रमण सिर्फ इंसानों तक ही सीमित नहीं रह गया है। इस वायरस ने अब इंसानियत, मानवीयत और तमाम रिश्ते नातों को भी संक्रमित करके रख दिया है।

आज इंसान की जंग जीते-जी अस्पतालों में बेड के लिए, दवाओं-इंजेक्शन के लिए, ऑक्सीजन के लिए है, जान बचाने के लिए है। दुनिया को अलविदा कहने के बाद आखिरी सफर के लिए भी जंग जारी है; कफन के लिए, श्मशान में चिता के लिए, लकड़ी के लिए तो कब्रिस्तानों में दो गज ज़मीन के लिए संघर्ष को मजबूर होना पड़ रहा है।

दरअसल इस मानवद्रोही व्यवस्था में इंसान की कोई कीमत नहीं है। कोरोना महामारी के दौर में यह नंगी सच्चाई खुलकर सामने आई है। चरमराई हुई व्यवस्था का सड़ांध बजबाजकर उभर है। जीते जी ना दवा, ना इलाज, ना अस्पताल, ना ऑक्सीजन। मरने के बाद कफ़न और अपनी रीति से अंतिम संस्कार का भी अभाव। चारों तरफ दुर्दशा का आलम है!

यह साफ है कि इस मुनाफाखोर जनद्रोही व्यवस्था में मेहनतकश आवाम के लिए कुछ भी मुनासिब नहीं है। एक ऐसी समाज व्यवस्था में ही इन असहनीय कष्टों से छुटकारा मिल सकता है, जहाँ इंसान केंद्र में हो!

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