युद्ध विराम के बाद फ़लस्तीनी प्रदर्शनकारी और इसराइली सुरक्षाबलों के बीच झड़प
असल मसला मूल समस्याओं के समाधान का है
इसराइल और हमास के बीच युद्ध विराम के लागू होने के बाद इसराइल के क़ब्ज़े वाले पूर्वी यरूशलम में फ़लस्तीनी प्रदर्शनकारी और इसराइली सुरक्षाबलों के बीच शुक्रवार को नमाज़ के बाद एक बार फिर झड़प हुई। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार सुरक्षाबलों ने लोगों पर आंसू गैस के गोले छोड़े और स्टन ग्रैनेड का इस्तेमाल किया।
10 मई से शुरू हुआ था युद्ध
दरअसल 10 मई को अल-अक़्सा मस्जिद के परिसर में हुई झड़पों के बाद इसराइल और फ़लस्तीनी गुट हमास के बीच ग़ज़ा में संघर्ष शुरू हुआ था। यहूदी और मुसलमान दोनों ही इस जगह को बेहद पवित्र मानते हैं। यहूदी इसे टेम्पल माउंट कहते हैं जबकि मुसलमान इसे हरम अल-शरीफ़ कहते हैं।
रमजान के महीने में कट्टरपंथी यहूदी समूहों द्वारा पूर्वी येरूशलम के फिलीस्तीनी आबादी वाले क्षेत्र में भड़काऊ जुलूस निकालकर हिंसा का माहौल बनाया गया। अल अक़्सा मस्जिद में नमाज अदा करने से मुस्लिमों को रोका गया और इस्राइली पुलिस के साथ मिलकर उन पर हमला किया गया।
इजरायल के बर्बर हमलों के खिलाफ गाजा पट्टी से हमास के जवाबी हमले भी हुए। हमास ने इसराइल को पीछे हटने की चेतावनी देते हुए उस पर रॉकेट के हमले शुरू किए, तो उधर इसराइल ने गाज़ा में हमास के ठिकानों को निशाना बनाने के बहाने ताबड़तोड़ जवाबी हवाई हमले किए।
इन हमलों की तीव्रता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इजरायल को अपने सीमावर्ती शहर लॉड में आपातकाल लगाना पड़ा, जो कि 1967 के बाद से पहली दफा हुआ।
वहशी इजरायलियों ने बच्चों, अस्पतालों को बनाया निशाना
इन हमलों में एकबार फिर इजरायल के वहशी शासकों द्वारा मासूम बच्चों को भी मिसाइली हमले का शिकार बनाया गया, फिलीस्तीन के अस्पतालों, स्कूलों व घरों को भी निशाना बनाया। इस खूनी संघर्ष में गाजा पट्टी में बड़े पैमाने पर बर्बादी हुई।
गाजा पट्टी में रहने वाले करीब 240 लोगों की जान चली गई, 1800 से अधिक घायल हुए। इसके अलावा इजराइल में भी एक दर्जन से ज्यादा मौतें हुईं, साथ ही सैनिकों समेत कई आम नागरिक भी गंभीर रूप से घायल हुए।
11 दिन खूनी तांडव के बाद हुआ संघर्ष विराम
शुक्रवार 21 मई को सुबह 2 बजे 11 दिनों तक चले इजरायली हमले को समाप्त करते हुए मिस्र की मध्यस्थता में युद्धविराम लागू हुआ। इजरायल के कार्यवाहक प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने घोषणा की कि इजरायल की सुरक्षा कैबिनेट ने सर्वसम्मति से इसे बिना किसी शर्त के स्वीकार कर लिया।
इजराइल घोर राजनैतिक व आर्थिक संकट में था
इजरायल के शासकों की शह पर पलने वाले घोर नस्लवादी फासिस्ट यहूदी गिरोहों द्वारा सचेतन हमले तब हुए जब इजरायल घोर राजनैतिक व आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। राजनैतिक रूप से नाकामयाबी और गहरे आर्थिक संकट ने नेतन्याहू को घोर अंधराष्ट्रवादी यहूदीवाद की ओर धकेला।
दो वर्ष में चार आम चुनाव के बाद भी वहां एक स्थिर सरकार का गठन नहीं हो सका है। पिछले दिनों इजरायली संसद में इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू बहुमत साबित करने में नाकामयाब हो चुका है। वहीं आर्थिक संकट से जूझते इजराइल में बेरोजगारी महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ आये दिन इजरायली मेहनतकश सड़कों पर उतरते रहे हैं।
इन संकटों से ध्यान हटाने और कुर्सी बचाने के लिए नेतन्याहू को नस्ली हिंसा और युद्धोन्माद के लिए उपयुक्त मौका चाहिए था, जो मिल गया।
पूरी दुनिया में विरोध
पूरी दुनिया में बर्बर इजराइली हमलों का जोरदार विरोध हुआ। अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन को मिशिगन में भारी विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ा। डेमोक्रेटिक पार्टी में फिलिस्तीन के पक्ष में आवाजें मजबूत हुईं। अमरीका के यहूदी समुदाय के युवा भी इस्राइली हिंसा के विरुद्ध मुखर हुए।
उधर फ़िलिस्तीनियों ने इज़रायली आक्रमण का विरोध किया था और गाजा के लोगों के साथ एकजुटता दिखाते हुए कब्जे वाले सभी क्षेत्रों में कई विरोध प्रदर्शन किए थे। फिलिस्तीनियों ने भी 17 मई को इजरायल के हमलों के खिलाफ देशव्यापी हड़ताल की थी।
अमेरिका में कई मानवाधिकार और नागरिक समाज समूहों ने राष्ट्रपति जो बाइडन से इजरायल को हथियारों की बिक्री को रोकने के लिए इसी तरह की अपील की है। इन समूहों में CODEPINK, जेविश वॉयस फॉर पीस आदि शामिल हैं। इन समूहों ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया।
असल में कौन जीता
संघर्षविराम के बाद दोनों पक्षों ने अपनी जीत का ऐलान किया था। हालांकि यह जीत फिलीस्तीनियों के है। गाजा में हजारों फिलिस्तीनी जीत के संकेत और फिलिस्तीनी झंडा लहराते हुए सड़कों पर उतर आए। कई फ़िलिस्तीनी लोगों ने ट्विटर पर लिखा कि युद्धविराम समझौते के लिए इज़रायल का समझौता “फ़िलिस्तीनियों की जीत” और इज़रायल की हार है।
दशकों से जारी है फिलीस्तीन की आजादी का संघर्ष
फिलीस्तीन कई दशकों से अपनी मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहा है। 1948 में जब जियानवादियों ने सदियों से बसे फिलस्तीनियों पर हमला करके उनकी ज़मीन पर कब्जा किया, जिसे फिलिस्तीनी नकबा कहते हैं, तब से वह इस नकबा का सिलसिला बढ़ाता ही गया। वह फिलिस्तीनियों की ज़मीन हड़पता रहा और उन्हें शरणार्थी बनाता रहा।
अमेरिकी और यूरोपीय साम्राज्यवादियों से आशीर्वाद पाये इस्राइली शासक फिलीस्तीनी संघर्ष को निरंतर कुचलते रहे हैं। इस्राइल पश्चिमी एशिया में अमेरिकी साम्राज्यवादियों के लिए लठैत की भूमिका निभाता है। इस्राइल फिलीस्तीन के इलाकों पर निरंतर कब्जा करता रहा है।
फिलिस्तीन को इस्राइल ने इनकी मौन सहमति से तीन टुकड़ों में बाँट रखा है। वह पश्चिमी तट में है, गाज़ा में है और येरुशलम में है। इस्राइल के भीतर वह नस्लभेदी कानूनों के जरिए वहाँ के अरब मुसलमानों को दोयम दर्जे के लोगों में तब्दील करता रहा। आज फिलीस्तीन मात्र गाज़ा पट्टी के छोटे से क्षेत्र और वेस्ट बैंक के कुछ इलाकों तक सिमटा है।
दमन के बीच यह संघर्ष तबसे जारी है। फिलीस्तीन की मुक्ति की लड़ाई 1980 के दशक में जनता के संगठित संघर्ष इंतिफादा के रूप में चली थी। इंतिफादा एक ऐसा आंदोलन था जिसे लोग जन बगावत की भी संज्ञा देते हैं। बाद के समय में फिलीस्तीन के मुक्ति संघर्ष में हमास जैसे कट्टरपंथी संगठनों का प्रभाव बढ़ता गया है।
2014 में इजरायली सेना ने गाजा पट्टी पर जमीनी हमला करके करीब 2300 फिलिस्तीनी लोगों को मार डाला था जिनमें से आधे से ज्यादा आम निर्दोष नागरिक थे। जबकि करीब 74 इजरायली मारे गये थे जिनमें से 67 सैनिक थे।
मूल विवाद हल हो!
फ़लस्तीनियों की जानीमानी नेता हनान अशरवी ने बीबीसी से कहा कि “इससे पहले भी दोनों के बीच कथित युद्धविराम हुए हैं, लेकिन ये शब्द केवल भ्रामक हैं क्योंकि ये दो सेना या दो देशों के बीच का संघर्ष नहीं है। ये बार-बार होने वाला क्रूर हमला है।”
उन्होंने कहा, “अब जब कथित तौर पर संघर्षविराम हो गया है तो मुझे लगता है कि हमें इस संघर्ष के मूल विवाद को सुलझाना होगा। जब तक मूल विवाद का हल नहीं निकलेगा तब तक उत्पीड़न और आक्रामक स्थिति बनी रहेगी और इतिहास ख़ुद को दोहराता रहेगा।”
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे
इस बीच इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने सीज़फ़ायर के ऐलान के बाद हमास को चेताया है कि वो भविष्य में रॉकेट हमला करने के बारे में सोचे भी न। जबकि हमास ने चेतावनी दी कि उसके हाथ अभी ट्रिगर से हटे नहीं हैं; वो इसराइली हमले की स्थिति में जवाब देने को तैयार है।