35,000 से ज्यादा ओला, उबर कैब ड्राइवरों का रोज़गार छीन गया

35,000 ओला, उबर ड्राइवरों का रोज़गार छीन गया क्योंकि बैंकों ने ईएमआई का भुगतान न करने के कारण कैब जब्त कर ली।

पिछले साल सिर्फ़ सितंबर तक, टैक्सी सर्विस उपलब्ध कराने वाली दिग्गज कंपनियों ओला और उबर के क़रीब 30,000-35,000 वाहन सड़क से गायब थे। इसका मुख्य कारण था ड्राइवरों द्वारा लोन पर खरीदी गई कारों के मासिक किस्तों का भुगतान ना कर पाना।

लॉकडाउन के दौरान परिवहन सेवाओं के ठप्प होने से, ड्राइवरों की आय में गिरावट देखी गई है जिसके परिणामस्वरूप वे लोन पर खरीदी गई गाड़ियों का ईएमआई का भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं। सितंबर 2020 में आरबीआई द्वारा लगाए गए ऋण वसूली पर लगाई गई रोक के हटने के बाद बैंकों द्वारा संपत्ति जप्त करने के मामलों में तेजी आई है। बैंकों द्वारा किस्त की राशि वसूलने के लिए ड्राइवरों के साथ जोर -जबरजस्ती तक की जा रही है।

टैक्सी ड्राइवर यूनियनों के अनुसार पिछले 6-7 महीनों में निवेशकों द्वारा कम से कम 30 हज़ार वाहन जब्त किए गए हैं। कैब बिज़नेस के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार करीब 30% ड्राइवर ओला और उबर दोनों के साथ एक ही समय में काम करते हैं। उबेर इंडिया में करीब डेढ़ लाख कैब ऑपरेटर काम करते हैं।

बेंगलुरु में ओला, टैक्सीफॉरश्योर और उबर (ओटीयू) यूनियन ऑफ ड्राइवर्स के अध्यक्ष तनवीर पाशा ने कहा कि कर्नाटक में ओला और उबर दोनों के लगभग 25,000 वाहनों को बैंक और एनबीएफसी फंड से खरीदा गया था, जिन्हें ज़ब्त कर लिया गया है।

इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (आईएफएटी) के राष्ट्रीय महासचिव शेख सलाउद्दीन ने कहा कि मासिक किश्तों का भुगतान न करने पर तेलंगाना में पिछले छह महीनों में वित्तीय अधिकारियों द्वारा 6,000 से अधिक गाड़ियां को जब्त कर लिया गया था।

कैब ड्राइवर और सप्लाई वर्कर बुरी तरीके से प्रभावित हुए हैं

सलाउद्दीन का कहना है कि आईएफएटी के आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 497 ओला और उबर ड्राइवरों का कोविड पॉज़िटिव पाए गए हैं, और अब तक लगभग 5 ड्राइवरों की जान चली गई है। इसके बावजूद कंपनियों द्वारा ड्राइवरों को कोविड से बचाव के कोई सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराए गए हैं ना ही उनके लिए कोई जीवन बीमा पॉलिसी निर्धारित की गई है।

भारत में चल रहे स्वास्थ्य संकट ने अर्थव्यवस्था पर भारी असर डाला है, खासकर ओला और उबर के साथ काम करने वाले गिग वर्कर्स पर। जबकि ई-कॉमर्स डिलीवरी, फूड डिलीवरी, हाइपर लोकल डिलीवरी जैसे अन्य क्षेत्रों में  गिग ऑपरेटरों को लॉकडाउन के दौरान कुछ हद तक रोज़गार मिला है, मगर यात्री सवारी सेवा के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है। उबेर और ओला के साथ काम करने वाले ड्राइवर पर सबसे ज्यादा संकट की मार पड़ी है।

द हिंदू बिजनेस लाइन में छपी एक खबर के अनुसार डिलीवरी ब्वॉय को मिलने वाले कमीशन में काफी कटौती हुई है इसकी वजह है मांग का बढ़ना। कंपनियों का नियम है कि मांग के बढ़ने से कमीशन घटता जाएगा। लंबी दूरी के लिए एक्स्ट्रा कमीशन, वेटिंग टाइम चार्ज, इन्सेंटिव वैगैरह बंद कर दिया गया है। दूसरी ओर डीजल पेट्रोल बढ़ने से जेब से पैसे ज्यादा निकल रहे हैं।

सलाउद्दीन के अनुसार डीजल- पेट्रोल की कीमत 100 रुपए प्रति लीटर पहुंचने की वजह से कैब ड्राइवर की आमदनी बुरी तरीके से प्रभावित हुई है। कैब बुकिंग घटने, डीजल- पेट्रोल महंगा होने और ओला उबेर द्वारा खुद का कमीशन बढ़ाने की वजह से कैब ड्राइवर की आमदनी आधे से भी कम रह गई है। लोग काम छोड़कर गांव वापस जा रहे हैं।

आईएफएटी ने परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखकर कैब ड्राइवर और गिग इकोनामी वर्कर के लिए प्राथमिकता के साथ कोविड टीकाकरण शुरू करने की मांग की है और महामारी तथा लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत राशन प्रदान करने और कैब ड्राइवर को 1,175 रुपए और फूड डिलीवरी ब्वॉय को ₹675 प्रतिदिन आर्थिक सहायता देने की भी मांग की है। साथ ही लोन चुकाने की अवधि सितंबर 2021 तक करने की भी मांग की गई है। यही नहीं कंपनियों द्वारा रोड ट्रांसपोर्ट और हाईवे मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइंस का उल्लंघन करते हुए 80% किराया राशि ड्राइवरों को नहीं दी जा रही है। इन सभी मांगों को लेकर दिल्ली में कैब ड्राइवरों ने सितम्बर 2020 में हड़ताल भी की थी।

ओला, उबेर, जोमैटो, स्वीजी, एमेजॉन जैसी बड़ी कंपनियों ने इस महामारी के दौरान अपने कर्मचारियों का ख्याल रखने के बजाय विभिन्न हथकंडे अपनाते हुए उनका शोषण करना शुरू कर दिया है। यह कंपनियां इनको अपना मजदूर नहीं पार्टनर कहती हैं। गिग वर्कर ऐसी कैटेगरी है जिसको ना तो सरकार और ना ही नियोक्ता मजदूर की श्रेणी में मानते हैं इसलिए इनका पीएफ- ईएसआई कुछ नहीं कटता है। ना ही संगठित- असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को मिलने वाली अन्य कोई सामाजिक सुरक्षा इनको हासिल है। फिलहाल तक गिग वर्कर श्रम कानूनों की परिभाषा में नहीं आते हैं

सिंगापुर, फ्रांस जैसे कई देशों में गिग इकोनामी वर्कर को फ्रंटलाइन वर्कर के कैटेगरी में मानते हुए इनका प्राथमिकता के साथ टीकाकरण किया जा रहा है। लेकिन लॉकडाउन के दौरान संक्रमण का खतरा उठाते हुए दवाइयां, खाना, स्वास्थ्य उपकरण को सही जगह सही समय पर पहुंचाने की जिम्मेदारी निभाने के बावजूद भारत में इन्हें कोविड फ्रंटलाइन वर्कर नहीं माना जाता।

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