कविताएँ इस सप्ताह : लावारिस लाशें !

लावारिस लाशें / प्रभात

नदियों में, तालाबों में
जली झोपड़ियों के राखों में
बड़े बड़े इमारतों के मलबों से
सरकारी फाइलों के कलमों से
ठाकुर सामंतो के घने बागान से
झूठी प्रतिष्ठा और स्वाभिमान से
अक्सर निकल आते है कुछ शव
जिनका कोई वारिस नहीं होता।

जरा सोच कर देखो,
कौन होते है ये लोग?
रुक जाती है जिनकी सफ़र
उस पुल के नीचे आकर,
जिसका सरिया उसने खुद लगाया था,
खामोश हो जाती है सांसें
उस इमारत के मलबे के नीचे
जिसकी पहली ईंट उसने खुद चढ़ाया था।

क्यों?
झूठे स्वाभिमान में घोंटे गए गले
और बराबरी के लिए उठे हाथों को,
सरकारी दफ्तरों के टाइपराइटर से,
लावारिस बनाया जाता है।

अगर एक पल के लिए भी,
तुम संवेदना से भर जाओ
भले अगले ही पल
तुम सब कुछ भूल जाओ
जैसे भूलते आए हो आजतक
उस पल भर में ही खुद से सवाल करना
कि कौन थे ये लोग और क्यों बनकर रह गए
ये सिर्फ लावारिस लाशें।


सभ्यताओं के मरने की बारी / जसिंता केरकेट्टा

ऑक्सिजन की कमी से
बहुत सी नदियां मर गईं
पर किसी ने ध्यान नहीं दिया
कि उनकी लाशें तैर रहीं हैं
मरे हुए पानी में अब भी

नदी की लाश के ऊपर
आदमी की लाश डाल देने से
किसी के अपराध पानी में घुल नहीं जाते
वे सब पानी में तैरते रहते हैं
जैसे नदी के साथ
आदमी की लाशें तैर रहीं हैं
मरे हुए पानी में अब भी

एक दिन जब सारी नदियां
मर जाएंगी ऑक्सिजन की कमी से
तब मरी हुई नदियों में तैरती मिलेंगी
सभ्यताओं की लाशें भी

नदियां ही जानती हैं
उनके मरने के बाद आती है
सभ्यताओं के मरने की बारी ।।


गंगा में मेरे लोगों की लाशें तैर रही हैं। / कॉमरेड जोहाना

गंगा में मेरे लोगों की लाशें तैर रही हैं।
अब वो कौन सी बदी है जिस पर मेरा देश जागेगा?

मजहबों के पेड़ों पर नफरतों के फूल खिले हैं
लाशों की बू आती है और मातमों गूंज है
आने वाली पीढ़ियों!
इन मौत के पेड़ों पर पसीना मत बहाना!
इनके वो फल जो गिरते ही सड़ जाते हैं
उनके कीचड़ पे माथे मत टिकाना।
तुमको इन पेड़ों को जलाना होगा !
इंकलाब के पौधों को ढूंढना तुम
हम जब न रहें, उनको सींचना तुम
वो पेड़ जिन पर परियां और भूत प्रेत नहीं रहते
वो पेड़ जिन पर बच्चे चढ़ कर उधम मचाते हैं
जिनकी छांव में मेहनत की खाने वाले
फूलों के, खुशबू के गीत गाते हैं।
अपनी मेहनत के फल चुन लेते हैं भर पेट
और अपनी मेहनत की छांव में सो जाते हैं।

इंकलाब के पौधे जो हमको मिले विरासत में
वादा है हम उनको बचा के रखेंगे।
कुछ फूल बिखेर आएंगे जंगल में
कुछ बीज हम धरती में छुपा के रखेंगे।


ये तो हत्याओं का कालखण्ड है / प्रबोध सिन्हा

ये तो
हत्याओं का
कालखण्ड है
अभी तो
आप मत
थकिये
ये तो
बलात्कार से शुरू हुआ
आसिफा को चपेट में लिया
ट्विंकल को भी चपेट में लिया
बच्चों को आक्सीजन के बिना
तड़पते हुए मारा
सुबोध कुमार को
लीचिंग में हत्या करके मारा
अभी थकिये नहीं
अभी तो आपके
हलक से
पानी भी
नहीं
धलकेगा
क्योंकि आपका
गला सुख जाएगा
दिल बैठ जायगा
क्योंकि
ये तो हत्याओं का
कालखण्ड है

खैर आपको फर्क नहीं
पड़ता
क्योंकि
आसिफा आपकी बेटी
थोड़े ही थी
वो तो बस
एक जिस्म को लुटाने के लिए आई थी
वो तो
कोई
आठ मर्द
जिन्हें अपने मर्द होने पर
बहुत घमंड था
उन्होंने
अपने सारे
हवश को एक लड़की में उतार
दिया
और हत्या कर डाला
ये तो हत्याओं का
कालखण्ड है

अभी थकिये नहीं
अभी तो आपको
बहुत कुछ देखना है
अभी तो मैं खुद उठा हूँ
इतने लोग मेरे खास
चले गए इस
कोरोना काल में
मैं खाली हो चुका हूँ
एक मेरे में
रिक्तता आ चुकी है
लेकिन सबको याद
रक्खा जायगा
और मैं इसे
सिर्फ हत्या ही मानूँगा
जो मुझे छोड़ कर चले गए हैं
क्योंकि वो भी किसी के पिता थे
वो बेटी अनाथ हो गई
क्योंकि उसके माँ और पिता
दोनों चले गए
लेकिन सरकारी कागज में
आज भी मौसम
गुलजार है
हैं न
ये आपको और चिढायेगी
क्योंकि
आप नपुंसक हो चुके हैं
या कर दिए गए है
नपुंसक
कभी विरोध नहीं करता
वो तो
दोनों हाथ पीछे बांधे खड़ा रहता है
फिर भी मैं कहूँगा
कि
ये सिर्फ
हत्याओं का कालखण्ड है

देखते जाइये
हो सके तो उठिए
नहीं तो कोई नहीं
बचेगा।


धीरे बहो गंगा रे / धर्मेंद्र आज़ाद

आपकी अविरल धारा में
तैर रहे हैं हज़ारों शव
ये शव न जानवरों के हैं
न ही अपराधियों के
ये उन अभागे इंसानों के हैं
जिन्हें इस सिस्टम ने
वक्त से पहले मार डाला
ये नरसंहार की निशानियाँ हैं
ये इस सिस्टम के
खून से सने हाथों
के साक्षात् प्रमाण हैं
ये पोल खोलते हैं
प्रशासन के मर चुकी
संवेदनाओं की
त्याग दी गयी
जिम्मदारियों की
साथ ही बयाँ करती हैं
परिजनों के
माली हालात की भी
जो अपनों के शवों को भी
जला पाने में असमर्थ हैं
वो अक्षम हैं
ज़रूरी घी-लकड़ीयों
का इंतज़ाम करने में
लानत है ऐसे सिस्टम को
जहाँ न लोग जी सकें
न मृतकों के शवों को ही
सम्मान दिला सकें

धीरे बहो गंगा रे
आपकी अविरल धारा में
तैर रहे हैं हज़ारों शव
ये सभी जीना चाहते थे
आस में लगे हुए थे
उन ‘अच्छे दिनों’ के
जिसके नाम पर उनसे
छीन लिये गये उनके ही वोट
पर क्या ख़ाक अच्छे दिन
आये इनके लिये?
जीते जी नहीं हुआ
इन्हें इलाज मयस्सर
हाय! ऑक्सिजन
हाय! अस्पताल
की आह के बीच
तड़प तड़प कर
ली हैं इन्होंने अंतिम साँसें
मरने पर भी
इन्हें नहीं मिल पाया
सम्माजनक दाह संस्कार

धीरे बहो गंगा रे
आपकी अविरल धारा में
तैर रहे हैं हज़ारों शव
किसी को इनकी फ़िक्र नहीं है
आँकड़े छुपाये जा रहे हैं
सिस्टम डरा हुआ है
पोल खुलने से
चुनावों के समय घूमने वाले
रंग बिरंगे सियारों की टोलियाँ
संकट के समय लापता हैं
जनता जिये या मरे
उनकी बला से
कोरोना का हमला हो
या फिर कोई और विपत्ति
इन्हें बस आपदा में अवसर
ढूँढना है
ये गिद्धों की नयी प्रजाति हैं
बल्कि उनसे भी आगे बढ़कर
ये जीते जी भी नोच डालते हैं

धीरे बहो गंगा रे
आपकी अविरल धारा में
तैर रहे हैं हज़ारों शव
आज चील-कौवे
नोच रहे हैं
इन बेबस शवों को
कुत्ते-सियार भी
इनके माँस के लोथड़ों को
तार तार कर रहे हैं
बेहद शर्मनाक व बीभत्स
दृश्य हैं
पर यही इस सिस्टम की
सच्चाई है
इन लोगों के मरने से पहले
मर चुका है यह सिस्टम
अब इसके विधिवत
दाह संस्कार की
दरकार है
आओ मिलकर यह
ज़िम्मेदारी निभायें
इस सिस्टम को
इतिहास के कचरे में
दफ़नायें!


मेहरबान जज साहिब / स्वराज बीर

(स्वराज बीर की पंजाबी कविता का हिंदी अनुवाद स्वाति ने किया है)

महावीर नरवाल नहीं रहे
जी हां जज साहिब
नताशा के पिता
अब नहीं रहे

मेहरबान जज साहिब
कुछ दिन पहले ही
अाई थी वह बेटी
आपके पास
उसने यह नहीं कहा था
कि उसपर कार्यवाही न की जाए
यह भी नहीं कहा था उसने
कि निर्दोष करार दिया जाए उसे

उसके वकील ने बस
इतनी ही की थी दरखास्त
उसे दो घड़ी अपने पिता से मिलने दें
बात करने दें पिता से
पिता बीमार हैं

वह सिर्फ़ 13 साल की थी
जब उसकी मां गुज़र गई
उसके पिता ही उसकी मां बने
गहरी छांव बने

आप जानते हो जज साहिब
आपको अच्छी तरह पता है साहिब
उस लड़की ने कोई दंगा नहीं कराया
निर्दोष है वह लड़की
तोड़ना चाहती थी पिंजरे समाज के
वह लड़की
और आपने उसे ताकत के पिंजरे में कैद किया

आप बहुत ताकतवर हो जज साहिब
आप मुंसिफ हो
आप उसे वो दो घड़ी दे सकते थे
कि वो देख सके चेहरा अपने पिता का

आप उसे और कैद कर सकते हो जज साहिब
आप उसे दे सकते हो सज़ा उम्र कैद की

आपके पास पूरी ताकत है साहिब
आप इंसाफ कर सकते हो

ऊपर लिखी बातें गलत है सरासर

आप सबकुछ कर सकते हो जज साहिब
पर आप उस बेटी को अपने पिता से बात करने के लिए
दो घड़ी नहीं दे सकते
आप नहीं दे सकते उसे वो दो पल
आपके पास वो कर सकने का दिल नहीं है

आपके पास ताकत है
आपके पास इंसाफ है

आपने कहा था
आप अगली सोमवार को सुनवाई करेंगे
वो सोमवार अब कभी नहीं आएगा
वो सोमवार कैलेंडर में अब रह ही नहीं गया है
जज साहिब

अपनी पूरी जिंदगी
अब आप उस सोमवार की तलाश करेंगे…!!



About Post Author