क्या बस पैसे वाले ही ले सकते हैं कोरोना का अच्छा ईलाज?

कोरोना में लापरवाही और निजीकरण के खिलाफ जयपुर में प्रदर्शन

जयपुर। राजस्थान के सबसे बड़े कोविड केंद्र प्रतापनगर स्थित RUHS के मेन गेट पर युवाओं ने केंद्र और राज्य सरकार की लापरवाही, लाचार स्वस्थ्य व्यवस्था, निरंकुशता और निजीकरण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। क्रांतिकारी नौजवान सभा के इस प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले कोविड-मरीज़-परिजनों ने कोरोना के इलाज में गम्भीर धांधली और गड़बड़ियों का खुलासा किया।

क्रांतिकारी नौजवान सभा (KNS) की राज्य कमिटी की अगुवाई में किए गए इस प्रदर्शन में शहर के युवाओं के साथ-साथ मौक़े पे मौजूद कोविड मरीज़ों के परिजनों, अम्बूलेंस चालकों, औटो ड्राइवर और RUHS में अलग-अलग प्रकार का काम कर रहे लोगों ने भी स्वतः हिस्सा लिया। इस प्रदर्शन के दौरान हुई बातचीत से यही निष्कर्ष निकलता है कि कोरोना का सही इलाज उसी को मिल सकता है जिसके पास लाखों रुपए हैं।

केएनएस के युवाओं ने उपस्थित लोगों से बात करते हुए कहा, स्वास्थ्य सेवा हमेशा से ही खराब हालत मे थी। जनसंख्या पर डाक्टरों-अस्पतालों-अन्य स्वास्थ्य सुविधाओ का अनुपात, सरकारी अस्पतालों की दयनीय स्थिति, निजी अस्पतालों की लूट और दवाईयों के बढ़ते दामों से यह बात साफ हो जाती है। असल स्वास्थ्य बजट GDP के 0.34% से ज्यादा नही है और देश के स्वास्थ्य खर्च का मात्र 17% ही सरकार उठाती है। यानि की बाकी 83% स्वास्थय खर्च जनता सीधे अपनी जेब से भुगत रही है।

भारत का यह स्वास्थ्य बजट प्रत्येक व्यक्ति पर होने वाले खर्च के हिसाब से पूरी दुनिया मे सबसे कम है। यदि सरकारी अस्पताल अच्छे से काम करे तो कोई प्राइवेट अस्पताल क्यों जाएगा? और प्राइवेट अस्पताल और दवा कंपनीयां  सरकार बनाने वालों को रिश्वत के रूप मे बड़े फ़ंड देते हो, तो यह लोग सरकारी अस्पताल को बेहतर क्यों बनाएँगे? इस प्रकार प्राइवेट स्वास्थ्य व्यवस्था को चलाने के लिए जानबूझकर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था को खत्म किया जा रहा है।

वहाँ उपस्थित बीलवा से आए एक कोविड-मरीज़-परिजन ने सरकारी व्यवस्था के अंदर भी मुनाफ़ाखोरी का इल्ज़ाम लगाते हुए कहा, “यहाँ पर (RUHS में) गरीब लोगों के लिए बेड नहीं मिल रहे हैं, पैसे वालों को और अप्प्रोच वालों को सबको बेड दे रहे हैं गवर्नमेंट वाले। गवर्नमेंट हॉस्पिटलों में भी गरीब लोगों के लिए कोई सुविधा नहीं है। गरीब लोग बाहर लाईन में खड़े रहते हैं, बेड तक भी नहीं है।

बताया कि ये हमारे अंकल हैं (जो कोविड मरीज़ होते हुए भी उनके पास ही खड़े हैं), दो-तीन दिन हो गए हैं इनको बेड नहीं मिला। बहुत अप्प्रोच लगा लिया। गरीब लोगों को लेटा रखा है फ़र्श के उपर, ऑक्सीजन वग़ैरह कुछ नहीं दे रहे। जैसे ही अबूलेंस आती है, कहते हैं बेड नहीं है, किसी और हॉस्पिटल जाओ। कहाँ जाएँ? SMS में भी जगह नहीं है, बीलवा में भी नहीं है, कहीं पे भी जगह नहीं हाई। प्राइवेट हॉस्पिटल ले के जाते हैं, प्राइवेट हॉस्पिटल वाले भी मना कर देते हैं।

ले जाएँ तो कहाँ ले जाएँ? बहुत से लोग अंबुलेंस में दम तोड़ रहे हैं। ऑक्सीजन वाले बहुत पेशेंट आते हैं यहाँ, उन्हें ऑक्सीजन ही नहीं मिल रही हाई अंबुलेंस वालों को कहीं से भी। पेशेंट रेफ़र करें तो भी कैसे करें? कोविड सेंटर बढ़ाए जाएँ, गरीबों का भी इलाज हो, पैसे वालों को तो इलाज मिल ही रहा है, गरीब ऐसे ही भटक रहे हैं।

चोमू तहसील, गाँव सोडलपुर से अपनी माता को ले कर आए एक व्यक्ति ने कहा, डाक्टर और कर्मचारी ध्यान नहीं दे रहे हैं, हालत खराब है। सुधार है लेकिन हालत खराब है, क्यूँकि टाईम से ध्यान नहीं दे रहे हैं। सीधा यहीं ले कर आए हैं, पहले यहाँ लिया नहीं था, बाद में यहीं ले लिया। वेंटिलटर तो नहीं मिला, अंदर फ़र्श पर ही लेटा रखा है। चार दिन तो फ़र्श पर ही रखा, बाद में हमने ही किसी दूसरे का बेड ख़ाली हुआ, उसपे रखा।

चोमू तहसील के ही तालाडेरा गाँव से आए ओमप्रकाश बागड़ ने कहा, मेरी दादी जी यहाँ भर्ती हैं। यहाँ आने से पहले सिरियस कंडीशन हो गई थी। दस पंद्रह प्राइवेट हॉस्पिटलों में भटक कर आए, वहाँ पर जाते ही ऑक्सीजन लेवेल देखते और मना कर देते कि हमारे यहाँ ऑक्सीजन नहीं है, दूसरी जगह जाओ। भटकते भटकते दस घंटे हो गए। SMS भी गए। यहाँ पर आते ही पहले तो इसने मना कर दिया, यहाँ पर बेड नहीं है, ऑक्सीजन का प्रबंध नहीं है। फिर लास्ट ओप्शन यही था, तो हम रुके थोड़ी देर, फिर वार्ड बोवाय खुद ही आया, अंदर के इलाक़े (वेटिंग एरिया) में एडमिट किया।

पिछले साल आई कोरोना की पहली लहर को हम फिर भी अचानक आई आपदा मान सकते है, पर यह दूसरी लहर तो साफ तौर पर सरकार की लापरवाही है। 3 मार्च 2021 को Reuters मे कोरोना वाइरस पर नजर रखने के लिए बड़े वैज्ञानिकों और दस राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की एक संस्था INSACOG के हवाले से एक खबर छपी थी कि तेज़ी से फैलते संक्रमण के बीच भारत सरकार नए कोरोना डबल म्यूटेंट वाइरस B.1.617 ( कोरोना का नया रूप) के बारे मे उनकी चेतावनी को नजरंदाज कर रही है।

यानि कि सरकार को 3 मार्च से पहले ही पता था कि कोरोना की दूसरी लहर पहले से ज्यादा संक्रामक और घातक होने वाली है। 24-25 मार्च को जागरण और अन्य अखबारों मे स्वास्थ्य मंत्रालय के हवाले से खबर आई कि 18 राज्यो में यह म्यूटेंट तेज़ी से फैल रहा है। फिर भी केंद्र सरकार ने दूसरी लहर से लड़ने के लिए स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में किसी भी प्रकार की तैयारी नही की और ना ही जनता को इस बारे मे भली-भांति चेतावनी दी।

बल्कि 5 राज्यों मे कई चरणों मे चुनाव, कुम्भ मेले जैसे गैरजिम्मेदाराना कदम उठाए और जनता को बढ़ -चढ़कर हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया। WHO ने माना है कि चुनाव और कुंभ भारत मे सबसे बड़े सुपर स्प्रेडर साबित हुये हैं। साथ ही विपक्ष ने,चाहे वो काँग्रेस हो, टीएमसी हो या कोई ओर पार्टी, इन मसलो पर वाजिब सवाल तो उठाए लेकिन अपनी सरकार वाले राज्यो मे उन्हें महामारी को रोकने के लिए लागू नही किए। यहाँ तक कि राजस्थान सरकार ने तो टोंक के एक पत्रकार को कोरोना की असली स्थिति, ऑक्सिजन की कमी को उजागर करने पर गिरफ़्तार कर लिया।

इस पर एक अन्य कोविड-मरीज़-परिजन ने कहा, “जयपुर सरकार का तानाशाही रवैया है, जो चाहे अपनी मर्ज़ी से कर रही है। ख़ास तौर से ये जो सेंटर गवर्नमेंट है, अपनी मर्ज़ी से कर रही है। उनको पता था कि कोरोना बढ़ेगा, दिख रहा था केसस बढ़ रहे हैं लगातार दूसरी लहर में, फिर भी वहाँ लगातार इलेक्शन करवा रहे हैं, रैलियाँ कर रहे हैं लगातार, कोई सी भी राजनीतिक पार्टी, जो भी हो, लगातार वहाँ भीड़ कर रही है।

उनको तैयारी यह करनी चाहिए थी, कोरोना की दूसरी लहर को कंट्रोल करने की, लेकिन इन्होंने तैयारी तो वो कर रखी है! जब चुनाव में पढ़ाया, जाति धर्म को पढ़ाया, लेकिन इक्जाम में आ गया हॉस्पिटल कहाँ हैं? जवाब कैसे देंगे? गवर्नमेंट ने तो मेसेज दे दिया कि आत्म-निर्भर बनो। तो आम जनता को मेरा यही मेसज है कि खुद तैयारी करो, इनके भरोसे मत रहो क्यूँकि वो तो बस देख रहे हैं। केंद्र सरकार से कोई उमीद नहीं लगती मेरे को। राजस्थान गवर्नमेंट ने जो भी किया, ओकसीजन सप्लाय तो प्रोपर से हुई नहीं।

वहाँ उपस्थित मरीज़ों, उनके परिजनों, स्टूडेंट-डोकटरों, वार्ड अटेंडेंट, नर्सिंग स्टाफ़, से लेकर अम्बूलेंस और औटो ड्राइवरों तक सबका यही मानना था ज़मीनी हक़ीक़त सरकारी आँकड़ों से कहीं ज़्यादा खराब है और यदि सरकारें चाहतीं तो कोरोना की दूसरी लहर इतनी भयानक नहीं होती।

मुनाफे के लिए जनता के शोषण पर टिकी व्यवस्था की सबसे बड़ी मार पड़ती है समाज के सबसे कमजोर तबकों पर – मजदूर, रेडी-टपरी वाले, सब्जी वाले ,दिहाड़ी मज़दूर, सफाई कर्मचारी, वार्ड बॉय, तमाम मेहनतकश जनता साथ ही आप और हम जैसे लोगो पर। शहर की अधिकत्तर जनसंख्या गरीब-दलित बस्तियों मे रहती है, जहां सबसे कम मूलभूत सुविधाएं है, सबसे ज़्यादा कुपोषण है, जहां लोगों की प्रतिरोधक क्षमता सबसे केएम है।

इसी जनसंख्या का बड़ा हिस्सा कोरोना काल मे शहर के अस्पतालों, जांच केन्द्रो, शमशान घाटो और तमाम आवश्यक सेवाओं मे काम कर रहा है। संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा झेल रहे इन लोगो को काम करते वक़्त ना तो खुद की सुरक्षा के लिए PPE किट , मास्क ,दस्तानें आदि दिये जाते है और ना ही पूरा वेतन मिलता है।

क्रांतिकारी नौजवान सभा की तात्कालिक मांगे:-

  1. भारत सरकार देश की सभी निजी अस्पतालों को अपने कब्जे में लेकर देश की स्वास्थ्य सेवाओं का 100 % राष्ट्रीयकरण करे और सभी कोरोना पीड़ित मरीजों का तुरंत प्रभाव से निशुल्क इलाज सुनिश्चित करे। स्वास्थ्य बजट को जीडीपी का 3% करे।
  2. देश के सभी नागरिकों का अगले 6 माह में  कोरोना से प्रतिरोधक क्षमता हासिल करने के लिए वैक्सिनेशन किया जाए।
  3. कोविड वारीयर की परिभाषा को व्यापक करते हुये शमशान घाट मे काम करने वालों ,कोरोना संक्रमित मरीजो/मृत शरीरों  को लाने ले जाने वाले वाहनों के ड्राइवर्स व कोरोना केन्द्रों मे  किसी भी प्रकृति का काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इसमे शामिल किया जाए। इस परिभाषा को सख्ती से लागू करते हुए कॉविड वॉरियर्स के नाम और पहचान की संपूर्ण सूची सार्वजानिक की जाए। कोविड वारीयर का वेक्सिनेशन आनिवार्य रूप से प्राथमिकता से किया जाए, संक्रमण से मौत हो जाने पर 50 लाख का मुआवजा दिया जाए।
  4. कोरोना के इलाज में प्रयुक्त सभी दवाओं, ऑक्सीजन, मेडिकल उपकरण आदि की उपलब्धता केंद्र सरकार सुनिश्चित करे।
  5. कोरोना सेंटर में कोविड प्रोटोकॉल ठीक से राज्य सरकार लागू करे ताकि मरीजों के परिजनों आदि के जरिए रोग का संक्रमण रोका जा सके।
  6. स्वास्थ्य विभाग वर्तमान स्थिति को देखते हुए तुरंत प्रभाव से डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ, प्रयोगशाला सहायक व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की तुरंत नियुक्ति करे।
  7. कोरोना के अलावा अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रसित मरीजों के उपचार की  व्यवस्था जारी रखी जाए।
  8. सार्वजनिक राशन प्रणाली को सभी के लिए सुलभ बनाते हुए दिहाड़ी मजदूरों, मनरेगा मजदूरों, रिक्शा चालकों व 3 लाख से कम सालाना आय वाले हर परिवार के लिए हर महीने पर्याप्त पोषक राशन(प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के लिए प्रायप्त प्रोटीन, विटामिन, मिनरल आदि युक्त) की व्यवस्था की जाए। यदि पूर्ण लोकडाउन लगाया जाता है तो इस श्रेणी के हर परिवार को 10 हज़ार रुपे हर महिना गुजारा भत्ता दिया जाए ।
  9. कोरोना संकट के दौरान मजदूरों, कर्मचारियों का वेतन रोका या काटा नहीं जाए तथा छंटनी पर रोक लगाई जाए ।
  10. कोरोना जांच में तेजी लाने के लिए रैपिड एंटीजन टेस्ट का इस्तेमाल व्यापक पैमाने पर किया जाए ताकि संक्रमित व्यक्ति की पहचान जल्दी हो। पॉजिटिव पाए जाने पर अगले चरण में RTPCR जाँच करी जा सकती है।
  11. कोरोना संकट के खत्म होने तक आमजन के बिजली, पानी के बिल, मकान किराया अथवा EMI आदि माफ करे जाएं। जनसेवाओं का निजीकरण बंद करो ।

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