ऑक्सीजन की कमी, अस्पतालों की दुर्दशा पर क्यों नहीं बोलते योरऑनर!

देश के हाईकोर्टों की भावनाओं के विपरीत सुप्रीम कोर्ट क्यों?

ऑक्सीजन और अस्पतालों की दुर्दशा से पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है। देश की ज्यादातर उच्च न्यायालयों ने केंद्र सरकार की लापरवाही पर लताड़ लगाई है। इसे नरसंहार तक बताया है। लेकिन देश की सर्वोच्च अदालत इन सबको किनारे लगाकर कोरोना की तीसरी लहर पर अटक गई। ….इस संवेदनशील मुद्दे पर न्यायालय के रुख पर बता रहे हैं वरिष्ठ विश्लेषक गिरीश मालवीय….

तीसरी लहर : तीसरी लहर बहुत चर्चा में है। सब ओर चर्चा छिड़ी हुई है कि तीसरी लहर में क्या हालत होगी? आसान होता है लोगो को अज्ञात के प्रति भयग्रस्त कर देना! पर जब यह काम सुप्रीम कोर्ट करने लगे तो वाकई आश्चर्य होता है। यह शक होने लगता है कि तीसरी लहर का हल्ला इसलिए तो नही मचाया जा रहा ताकि दूसरी लहर से उपजी विभीषिका को ही डाउन ग्रेड कर दिया जाए?

सुप्रीम कोर्ट कोरोना की तीसरी लहर पर चिंता जता रही है!…

कल जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि केंद्र की गलती है, हम चाहते है कि वैज्ञानिक ढंग से नियोजित ढंग से तीसरे वेव से निपटने की जरूरत है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने कहा कि अगर सही तरीक़े से तैयारी की गई, तो हम तीसरी लहर से निपट सकेंगे…। तीसरी लहर में जो बच्चे प्रभावित होंगे उनकी चिंता करनी चाहिए…!

गजब है मीलॉर्ड…. यह तीसरी लहर कहाँ से बीच मे आ गयी? आप तो वर्तमान की बात कीजिए न! ….देश भर की हाईकोर्ट आक्सीजन संकट पर, आवश्यक दवाओं की कमी पर केंद्र मे बैठी मोदी सरकार को लताड़ रही है, घेर रही है और आप तीसरी लहर का शगूफा पकड़ कर बैठ गए हैं!

साफ दिख रहा है सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार के लिए प्रेशर वॉल्व की भूमिका निभा रहा है। जबकि कल से पहले देश भर की हाईकोर्ट ने कोरोना से निपटने में केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया था।

इलाहाबाद हाईकोर्ट कह रहा था कि ऑक्सीजन की कमी से कोरोना मरीजों की मौत किसी नरसंहार से कम नहीं हैं। अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई नहीं होने से कोरोना मरीजों की जान जाना अपराध है। ध्यान दीजिए ‘नरसंहार’ जैसा शब्द…

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि पूरा देश आज आक्सीजन के लिए रो रहा है। पीठ ने कहा कि लोग रोज मर रहे हैं, यह भावनात्मक मामला है, लोगों की जिंदगी खतरे में है। पीठ ने कहा कि सरकार अंधे हो सकती है, हम नहीं। साथ ही कहा कि आप इतने असंवेदनशील कैसे हो सकते हैं।

कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी सख़्त रवैया अपनाते हुए केंद्र सरकार से ऑक्सीजन का कोटा बढ़ाने के लिए कहा। चीफ़ जस्टिस अभय श्रीनिवास ने केंद्र सरकार के वकील से नाराज़गी जताते हुए कहा, “आप चाहते हैं कि लोग मरें? आप हमें यह बताएं कि आप राज्य (कर्नाटक) को मिलने वाली ऑक्सीजन का कोटा कब बढ़ाएंगे?”

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कोविड-19 मरीजों की संख्या में तेजी से आई बढ़ोतरी के बीच प्रदेश सरकार के चिकित्सीय ऑक्सीजन की उपलब्धता करवाने के प्रयासों की दलील पर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार को फटकार लगाई और केंद्र सरकार से कहा कि राज्य के लिए 100 मीट्रिक टन तक ऑक्सीजन आपूर्ति बढ़ाए।  

मद्रास हाईकोर्ट ने खुद से संज्ञान लेते हुए रेमडेसिविर और ऑक्सीजन की कमी को लेकर राज्य सरकार से जवाब मांगा।  

पटना हाईकोर्ट ने कोरोना इलाज के लिए केंद्र व राज्य सरकार को युद्धस्तर पर काम करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि ऑक्सीजन या इमरजेंसी दवा की कमी के कारण किसी कोविड मरीज की मौत नहीं हो। कोरोना से निपटने में सरकार के हर एक्शन पर हाईकोर्ट की नजर है।

झारखंड हाईकोर्ट ने ड्रग कंट्रोलर को फटकार लगाते हुए सरकार को दवाओं और ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।

नैनीताल हाईकोर्ट ने भी ऑक्सीजन सप्लायरों के गलत नम्बर जारी किए जाने और उत्तराखंड पोर्टल पर अस्पतालों की रियल टाइम जानकारी उपलब्ध नहीं कराए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि मरीजों को ऑक्सीजन उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार यह सुनिश्चित करे कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत न हो।

गुजरात हाईकोर्ट ने तो यहाँ तक कह दिया कि वो इस बात से बहुत व्यथित है कि कोरोना के मामले में सरकार उसके आदेशों की पूरी तरह अनदेखी कर रही है।

यह सब पिछले 10 दिनों की ही बाते है। हाईकोर्ट का ज्यूरिडिक्शन सीमित है इसलिए उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट इन सब हाईकोर्ट की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाएगा, समाधान की बात करेगा। लेकिन वह तीसरी लहर पर ही अटक गया।…

तीसरी लहर की तैयारी करना गलत नही है पर आप दूसरी लहर से तो पहले ठीक से निपट लीजिए।…

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