कविताएँ इस सप्ताह : वे रोज याद किये जाने वाले महान लोग !

आज पहली मई है / स्वप्निल श्रीवास्तव

आज पहली मई है और मैं उन मजदूरों को
याद कर रहा हूँ , जिनके बनाये घर में मैं
अब तक रह रहा हूँ।
याद करूंगा उन किसानों को जो अन्न को
हीरे जवाहरात की तरह बचाते हैं

कैसे भूल पाऊंगा अपने हलवाहे सरजू काका को
जिसकी पीठ पर बैठ कर जाता था स्कूल
जिसके दम से लहलहाती थी फसलें
अनाज से भर जाता था खलिहान

जिन्हें हम अहंकार में छोटे लोग कहते है
वे हमारी जिंदगी के बड़े काम करते हैं

क्या मैं उस मोची दादा को भूल पाएंगे
जिन्होंने पहली बार मेरे पाँव के नाप के
जूते बनाए थे , जिसे पहन कर मैं हवा में
उड़ने लगा था

क्या मुझे उस अब्बू दर्जी की याद नही आएगी
जो बिना माप लिए सिल देते थे मेरी कमीज

धन्यवाद ऐसे लोगो के लिए छोटा शब्द है
उन्हें पहली मई को याद करना महज
औपचारिकता

वे रोज याद किये जाने वाले महान लोग हैं
जिनके बिना अधूरा है हमारे जीवन का
इतिहास।


बोल मजूरे हल्ला बोल ! / हरीश भादानी

(मई दिवस पर जनकवि हरीश भादानी का गीत)

बोल मजूरे हल्ला बोल !
बोल दीनिये हल्ला बोल !

बाँच गये मर्ज़ी के दर्ज़ी
कैंची से क़ानून विधान
राजनीति के रंगारों ने
रंगा कचेड़ी का ईमान

संसद को जेबों-जेलों में
रखती पंच-पचीसी पर
बोल कलमिये हल्ला बोल !
बोल मास्टर हल्ला बोल !
बोल मजूरे हल्ला बोल !

पुरखों की जागीर समझते
लोकराज के आसन को,
ये पैग़म्बर शीश झुकाते
पूँजी के पदमासन को,

सत्ता की सीरनी बाँटती
अँधों की अड़तीसी पर
गाड़े वाले हल्ला बोल !
तांगेवाले हल्ला बोल !
बोल मजूरे हल्ला बोल!

छोटे लाट साहब का अपना
लस्कर,प्यादे और वज़ीर ,
राजा के ऊपर राजाजी
दुनिया में नायाब नज़ीर,
भली हुई जनतंतर के
साथ चार सौ बीसी पर
थाम हथौड़ा हल्ला बोल !
उठा हँसिया हल्ला बोल !
बोल मजूरे हल्ला बोल !

आवाज़ों पर ताले जड़ दे
जारी सरकारी फ़रमान
नसबंदी-पा-बंदी वाला
मुल्क कहाये हिंदुस्तान,
रोटी-रोज़ी बोनस का हक
चाब रही बत्तीसी पर
तू वोटों से हल्ला बोल
सोच-समझ कर हल्ला बोल !

बोल दीनिये हल्ला बोल !
बोल नूरिये हल्ला बोल !
बोल मजूरे हल्ला बोल !


प्रबंधन / रुपाली

छवि प्रबंधन
हाँ भई हाँ
ख़बर प्रबंधन
हाँ भई हाँ
झूठ प्रबंधन
हाँ भई हाँ
मूठ प्रबंधन
हाँ भई हाँ
वोट प्रबंधन
हाँ भई हाँ
खोट प्रबंधन
हाँ भई हाँ
बूथ प्रबंधन
हाँ भई हाँ
लूट प्रबंधन
हाँ भई हाँ
कोविड प्रबंधन
जा भई जा
जाता है कि…..


विजेता / हूबनाथ

मैदान में जुटे
सारे पिता
स्पर्धा थी
कौन पिता अपने बच्चे को
सबसे ऊँचा उछाल पाता है

यह पिता भी गया
ढोल नगाड़ों के शोर के बीच
खिलखिलाता गर्व से
मैदान के बीचोंबीच
सीना फुलाए

दोनों हाथों में बच्चा थामे
उसकी नज़रें थीं
आसमान पर
बच्चा उछाला गया
बच्चा हँसता हुआ आ गया
पिता की मज़बूत बाहों में

बच्चे को पूरा भरोसा था
पिता उसे गिरने नहीं देगा
कि अचानक पिता ने
पूरी ताक़त लगाकर
बच्चे को उछाल दिया
आसमान की ओर

इतने ऊपर कि किसीने
सोचा भी न होगा
तमाशबीनों की निगाहें
आसमान की ऊँचाइयों पर

तालियाँ पीटता पिता
विजेता की मुद्रा में
ठहाके लगाता
नई ऊँचाइयों के नशे में
बच्चे को पकड़ना भूल गया

बाक़ी पिताओं के सिर
शर्म से झुके हुए
वे धीरे धीरे मैदान के बाहर

बचा खिलखिलाता पिता
आसमान ताकते
तमाशबीन और
ज़मीन पर लहूलुहान पड़े
मासूम बच्चे के चेहरे पर
मरा हुआ भरोसा।


श्रद्धांजलि / आदित्य कमल

आज थक गया मेरा दाहिना हाथ
‘श्रद्धांजलि’, लिखते-लिखते।

श्रद्धासुमन अर्पित करते-करते
भरी रहीं मेरी आँखें, आज दिनभर।

हृदय को नियंत्रित करते-करते
पाषाण में कैसे बदल जाते हम ?
सो, सख़्त होते गए निर्णय
पुख़्ता होता गया इरादा –
ओ, मेरे बंधुओं, यारो
साथियो, दोस्तो !
मैं, जो बचा रह गया हूँ अबतक
ज़रूर दबोचूंगा ज़ालिमों की गर्दन।

दुनिया को नरक बनाने वाले
मुनाफ़ाख़ोर हत्यारों को घसीटकर लाएँगे
हम बचे हुए लोग अपनी अदालत में एकदिन
………. सज़ा सुनाने, सज़ा देने।
सज़ा वही, जो इतिहास ने
मुक़र्रर की थी मुसोलिनी की
चौराहे पर उल्टा टांगकर ….!

तुम्हें अलविदा नहीं कहूँगा दोस्तो
तुम तो ज़िंदा ताक़त हो हमारे बाएँ बाजुओं की।
हम बाएँ बाजू से दबोचेंगे अब ज़ालिमों की गर्दन।

आज थक गया मेरा दाहिना हाथ
‘श्रद्धांजलि’, लिखते-लिखते।



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