क्रांतिकारी सांस्कृतिक कर्मी वीरा साठीदार नहीं रहे

सामाजिक कार्यकर्ता, नाट्यकर्मी, गीतकार, चिंतक, लोकगायक 62 वर्षीय वीरा साठीदार एम्स नागपुर में कोविड 19 संक्रमण का शिकार हो गए। एम्स नागपुर में करीब सप्ताह भर कोविड से जूझने के बाद सोमवार की रात इस क्रांतिकारी सांस्कृतिक कर्मी ने आंखे बंद की। वीरा दो दिनों से वेंटिलेटर पर थे।

वीरा साठीदार मराठी पत्रिका “विद्रोही” के संपादक भी थे। 2014 में आई राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म “कोर्ट” में वीरा साठीदार ने “नारायण कांबले” नाम के एक बागी सांस्कृतिक कर्मी की भावपूर्ण भूमिका निभाई थी जो सफाईकर्मियों और दलितों के बीच काम करता है, जिसे काफ़ी सराहा गया था और फिल्म भारत से ऑस्कर के लिए भी नामित हुए थी।

वीरा साठीदार अपने वास्तविक जीवन में भी यही भूमिका निभा रहे थे। दलित चेतना को झकझोरने के लिए वीरा ने कई गीत, कविताएं और लेख लिखे और जनता को अन्याय के खिला़फ लड़ाई में संगठित होने के लिए प्रेरित करते रहे। वीरा ने पत्रकारिता भी की और जन आंदोलन में भी सक्रिय रहे।

1960 में वर्धा जिले के जोगीनगर, महाराष्ट्र में जन्मे वीरा साठीदार का बचपन और निजी जीवन बहुत अभाव में गुजारा। जैसे जैसे बड़े हुए कला और जनांदोलन से निकटता बढ़ी और जातिगत भेदभाव के विरुद्ध आंदोलन में अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति और सक्रियता के साथ शामिल हुए और एक रेडिकल अम्बेडकरवादी के रूप में उभरकर सामने आए और बाद में रिपब्लिकन पैंथर संगठन के साथ काम किया।

वीरा साठीदार का मानना था कि पूंजीवादी सिनेमा और सांस्कृतिक पूंजीवाद का मुकाबला करने के लिए जन सरोकार वाली फिल्में, साहित्य और जनहित की पत्रकारिता के जरिए जनता के मुद्दों को उठाना, जनता को शिक्षित करना सांस्कृतिक जन आंदोलन का हिस्सा होना चाहिए।

वीरा साठीदार जिस क्रांतिकारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा थे उस पर मौजूदा भाजपा सरकार और फासीवादी आंदोलन हमलावर है और अपनी पोल खोलने की वजह से उससे डरता भी है। इसलिए वीरा साठीदार का जाना क्रांतिकारी सांस्कृतिक विरासत के लिए नुकसान है।

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