बंगाल में हज़ारों उतरे सड़कों पर, नारा: “भाजपा को एक भी वोट नहीं देंगे”

समर्थन में आए किसान नेता, कहाँ वजह अलग हों पर दुश्मन एक ही है

कोलकाता, 11 मार्च। अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर, बुधवार को कोलकाता में एक विशाल जुलूस का आयोजन हुआ। हजारों की संख्या में लोगों ने “भाजपा को एक भी वोट नहीं” के नारे के साथ रामलीला मैदान, मौलाली से कोलकाता म्युनिसिपल कॉरपोरेशन, एस्प्लेनेड तक मार्च निकाला।

श्रमिक, महिला और दलित – आदिवासी अधिकार संगठन, विस्थापन विरोधी आंदोलन के कार्यकर्ता, क्रांतिकारी वामपंथी छात्र संगठन एवं शिक्षक, कवि और लेखक भी मार्च में शामिल हुए। पंजाब से आए अलग अलग किसान नेता जैसे बी•के•यू (डाकौंडा) के मंजीत सिंह धनेर और कीर्ति किसान यूनियन के रामिंदर सिंह पाटियाला ने बंगाल के लोगों से भाजपा की विभाजनकारी राजनीति और प्रो कॉरपोरेट एजेंडा को खारिज़ करने की अपील किया। रैली में बंगाल और देश के विभिन्न शख्सियतों जैसे रबीन्द्रनाथ ठाकुर, रुकैया बेगम, नेताजी बोस, भगत सिंह और बाबासाहेब अम्बेडकर की तस्वीरें अलग अलग झंडो में दिखाई दिया।

ऐतिहासिक तौर पर पश्चिम बंगाल ने किसानों और मजदूरों अनेक क्रांतिकारी संघर्ष देखा है। इसके अलावा, पश्चिम बंगाल ने ब्रिटिश विरोधी स्वतंत्रता संघर्ष में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है। वर्तमान समय में जब भाजपा साम्राज्यवाद-विरोधी संघर्ष में बंगाल के प्रगतिशील चेहरों को अपने खेमे के भीतर लेने की कोशिश कर रही है, ऐसे में 10 की रैली को संघर्षों के इतिहास के जश्न के तौर पे देखा जा सकता है।रैली में लोगों ने वर्तमान शासन द्वारा 2014 से जनता पर हुए अलग अलग हमले जिसमें निजीकरण, कृषि कानून, श्रमिक विरोधी श्रम कानून से लेकर लॉक डाउन के चलते प्रवासी मज़दूर संकट को भी अपने बैनरों के द्वारा प्रदर्शित किया।

चुनाव आयोग ने घोषणा किया है कि, पश्चिम बंगाल में चुनाव आठ अलग अलग चरण में होंगे जिसकी शुरुवात 28 मार्च से होगा, जो करीब एक महीने तक जारी रहेगा। इस समय राज्य में दोतरफा लड़ाई दिख रही है जिसमे एक तरफ ममता बनर्जी शासित तृणमूल कांग्रेस, तो दूसरी तरफ भाजपा और कांग्रेस – भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (सीपीएम) – आईएसएफ गठबंधन भी मुकाबले मे है। यह राज्य, भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इसका प्रमाण गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के बड़े नेताओं की इस चुनाव में भागीदारी से जाहिर होता है। पश्चिम बंगाल का ना सिर्फ एक क्रांतिकारी इतिहास रहा है बल्कि यह उन राज्यों में से एक है जहां अल्पसंख्यक समुदाय की अच्छी संख्या है। जो इसे आरएसएस के हिंदू राष्ट्र प्रोजेक्ट लिए एक महत्वपूर्ण जगह बना देता है।

पिछले कुछ महीनों से राज्य के अलग अलग जिलों में जमीनी स्तर पर “नो वोट टू बीजेपी” अभियान चलाया गया। जब सीपीएम – कांग्रेस और साम्प्रदायिक दल आईएसएफ गठबंधन ज्यादातर टीएमसी विरोधी रख अपना रही है, “नो वोट टू बीजेपी ” अभियान एक प्रगतिशील चुनौती देने में सफल हुआ है, जो प• बंगाल के राजनीति में रास्ता बनाने की कोशिश कर रही बीजेपी – आरएसएस शासन की जनविरोधी छवि और इसकी संप्रदाय के नाम पर बांटने वाली और अलग अलग पॉलिसी के नाम पर मेहनतकश आवाम पर जुल्म करने की इसके मंसूबे को उजागर करता है।

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