13 मार्च को टिकरी बार्डर पर मज़दूरों-किसानों का संयुक्त प्रदर्शन

साझे दुश्मन के खिलाफ़ साझे संघर्ष को तेज करो! -मासा

मोदी सरकार के जनविरोधी कृषि कानूनों और मज़दूर विरोधी 4 श्रम संहिताओं के ख़िलाफ़ 13 मार्च को टिकरी बॉर्डर पर मज़दूर-किसान एकजुटता का प्रदर्शन होगा। किसान संगठनों के साथ मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) मंच साझा करेंगे।

मासा ने आह्वान किया है कि मज़दूर-किसान सहित पूरी मेहनतकश आवाम और आम जनता अपने साझे दुशमन सरकार-कॉर्पोरेट गठबंधन के खिलाफ़ साझे संघर्ष को तेज करने के लिए 13 मार्च को दिल्ली की सीमा टिकरी बार्डर पर गोलबंद हों और जारी जंग को गति दें।

काले कृषि क़ानूनों, लेबर कोड और निजीकरण का विरोध करो!

देश भर के संघर्षशील मज़दूर संगठनों के साझा मंच मासा द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि जिन तीन खेती कानूनों के खिलाफ किसानों ने संघर्ष शुरू किया था वह सिर्फ किसानो के खिलाफ ही नहीं है बल्कि मजदूर-मेहनतकशों समेत समूची मनुष्य जाति के खिलाफ है।

यह कानून बहुत ही क्रूरतापूर्ण ढंग से मोदी सरकार ने डब्लूटीओ के फरमान को लागू करते हुए जमीने, फसलें ,अनाज और मंडियों के ऊपर देशीविदेशी कॉर्पोरेटों का कब्जा करने के लिए बनाए हैं। जिनसे किसान सहित खेत मज़दूर और पल्लेदार मज़दूरों को बेरोजगारी की और भी गहरी दलदल में फेक दिया जाएगा। साथ ही जनवितरण प्रणाली भी नष्ट होगा।

दूसरी ओर मज़दूरों को बंधुआ बनाने और मालिकों की खुली लूट के लिए लंबे संघर्षों के दौरान हासिल 44 श्रम क़ानूनों को खत्म करके मोदी सरकार ने 4 श्रम संहिताओं में बदल दिया है। स्थाई रोजगार की जगह फिक्स्ड टर्म, मजदूरी घटाने, काम के घंटे बढ़ाने, ट्रेड यूनियन अधिकारों को संकुचित करने का प्रावधान बना है।

तीसरी ओर मोदी सरकार देश की सरकारी संपत्तियों और संस्थानों को तेजी से बेचने में जुटी है। रेल, बैंक बीमा, कोल खदानों से लेकर पेट्रोलियम, दूर संचार तक निजी हाथों में सौपाने की गति सुपर फास्ट कर दी है।

इन सबसे आम जनता का ध्यान भटकाने के लिए सांप्रदायिक बंटवारे और दंगा-फसाद का संघी एजेंडा तेजी से लागू हो रहा है।

पूरी मेहनतकश आवाम पर तीखा हमला

मासा ने बयान में कहा है कि करोना महामारी की आड़ में मोदी सरकार ने मजदूरो, किसानों, छात्रों, कर्मचारियों, छोटे कारोबारियों, दलितों, अल्पसंख्यक और जनवाद पसंद लोगों के ऊपर लूट और जुल्म का चौतरफा हमला शुरू कर दिया है। जन विरोधी काले कानूनों को पास करने के लिए सभी संवैधानिक सीमाएं तोड दी गई हैं।

मजदूर, किसान और इंसाफपसंद जनता की एकता और संघर्ष ने देसी विदेशी पूँजीवादी कारपोरेट और फासीवादी मोदी सरकार को साझे दुश्मन को लोगों के सामने पेश किया है। इस संघर्ष ने पूँजीपरस्त पार्टियों के जानविरोधी किरदार को भी नंगा कर दिया है।

साजिशों व दमन का विरोध करो!

मासा ने अपने बयान में कहा कि “तीनों काले कृषि कानूनों के खिलाफ किसान लगातार पिछले कई महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर धरना देकर बैठे हुए हैं लेकिन तानाशाह मोदी सरकार  उनकी आवाज को अनसुना करके आंदोलन को तोड़ने की साजिश कर रही है।

किसानों व उनका समर्थन करने वालों- युवाओं, छात्रों, महिलाओं, पत्रकारों पर  देशद्रोह  व यूएपीए जैसे  काले कानून  को लगाकर जेलों में बंद कर रही है, जनवादी अधिकारों पर हमले कर रही है।

मज़दूर-किसान एकता के साथ साझे संघर्ष को गति दो!

मासा ने मज़दूर, किसान और इंसाफपंसद लोगों से आह्वान किया कि इस आंदोलन में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें क्योंकि यह देश की पूरी मेहनतकश आवाम का साझा संघर्ष है।

यह समय है कि देश के मज़दूर-किसान सहित पूरी मेहनतकश आवाम और आम जनता साझे दुशमन के खिलाफ़ मिलकर सरकार-कॉर्पोरेट गठबंधन के साथ साथ मोदी सरकार के फासीवादी नीतियों के खिलाफ खड़ी हों।

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