किसान आंदोलन विशेष : दिल्ली की सरहदों पर जंग के 100 दिन

सरकार-कॉर्पोरेट गठबन्धन के खिलाफ़ बना जन-आन्दोलन

26 नवम्बर से दिल्ली की सरहदों पर लाखों-लाख किसान सरकार-कॉरपोरेट के खिलाफ़ जंग में हैं। इस संग्राम के आज 6 मार्च को 100 दिन पूरे हो गए। मोदी सरकार के जनविरोधी कृषि क़ानूनों का पुरजोर विरोध करके पंजाब और हरियाणा से आगे बढ़ता यह आंदोलन पूरे देश में विस्तारित हो चुका है।

21 सितंबर को संसद मे पारित जनविरोधी तीन कृषि कानूनों के ख़िलाफ जारी किसान आंदोलन का खेती-किसानी की तबाही के साथ देश की खाद्य सुरक्षा, बेरोज़गारी व सरकार द्वारा देशी-विदेशी पूँजी के हित में व्यापक मेहनतकश तबके के विरुद्ध काम करने जैसे विभिन्न मुद्दों के साथ भी सीधा सम्बन्ध है।

100वें दिन नाके बंदी के साथ आंदोलन नए चरण में  

इस आंदोलन के 100वें दिन आज दिल्ली-एनसीआर के केएमपी एक्सप्रेस-वे की सुबह 11 बजे से 5 घंटे नाकेबंदी होगी। शेष भारत में, आंदोलन के समर्थन और सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिए, घरों और कार्यालयों पर काले झंडे लहराए जाएंगे।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को ‘महिला किसान दिवस’ मनाया जाएगा। देशभर के सभी धरना स्थल 8 मार्च को महिलाओं द्वारा संचालित होंगे। इस दिन महिलाएं ही मंच प्रबंधन करेंगी और वक्ता होंगी।

इसी क्रम में 15 मार्च को ‘निजीकरण विरोधी दिवस’ पर प्रदर्शन होगा। विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में बीजेपी को दंडित करने की अपील जारी होगी। 12 मार्च को बंगाल में किसानों की रैली में ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के नेता भी शामिल होंगे।

षणयंत्रों के बीच विस्तारित आंदोलन

किसान आंदोलन को पटरी से उतारने के लिए मोदी सरकार अपनी चिरपरिचित घृणित हरकतों के साथ लगातार सक्रिय है। हर रोज षड्यंत्र रचने, हिंसा भड़काने, दमन के जरिये आंदोलन को कुचलने का क्रम जारी है।

इन सब के बीच संघर्षरत किसान पूरी बहादुरी से इनका डटकर मुक़ाबला कर रहे हैं। सरकार प्रायोजित हिंसा, दमन व मीडिया के दुष्प्रचारों को झेलकर भी वे अपने आंदोलन को मुक़ाम तक पहुंचाने के प्रति संकल्पबद्ध हैं।

नुकीले तारों की बाडेबन्दियाँ, नेटबंदी काम ना आई

26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान दिल्ली व लाल किले पर हुई हिंसा के पीछे सरकार की ही साजिश उजागर हुई। इस बहाने आंदोलन के सभी प्रमुख नेताओं को आपराधिक षडयंत्र व हत्या के प्रयास सरीखे संगीन मुकदमों में नामजद कर डराने का प्रयास किया गया।

मोदी सरकार हाइवे की खुदाई, सड़कों पर खड्ढे खोदने, कंटीले तारों की बाड़ लगाने, इंटरनेट सेवाओं व ट्विटर अकाउंट बंद करने, बीजेपी-संघ के कार्यकर्ताओं के माध्यम से हमले, जरूरी सुविधाओं को रोकने, ट्रेनों के रूट बदलने, पत्रकारों को गिरफ्तार करने जैसे क़दमों से आंदोलन कुचलने पर आमादा रही। लेकिन जज्बे के आगे सब ध्वस्त हो गया।

किसान आंदोलन ने अबतक सत्ता तंत्र के दमन व सरकार की तिकड़मों का मजबूती से मुकाबला किया है। खालिस्तानी-माओवादी के आरोपों से लेकर ‘गणतंत्र के अपमान’ तक की तोहमतों का बहादुरी से सामना कर रहे हैं। पुलिस संरक्षण में संघ-भाजपा के हिंसक गिरोहों के हर हमले को वे झेल रहे हैं और संघर्ष मे मुस्तैदी से डटे हुए हैं।

5 जून से विरोध, 21 सितंबर से जंग

कोरोना के विकट दौर में 5 जून, 2020 को मोदी सरकार की कैबिनेट ने जब 3 काले कृषि क़ानूनों को पारित किया, तबसे देश के किसान, विशेष रूप से पंजाब के किसानों ने विरोध की शुरुआत की।

तमाम विरोधों के बावजूद 21 सितंबर 2020 को जब सारे संसदीय मर्यादाओं को तोड़कर गैर जनतान्त्रिक तरीके से संसद में पारित होकर ये कानूनी रूप लिया तो पंजाब के किसानों ने नए जंग का ऐलान कर दिया।

26 नवंबर को देशव्यापी आम हड़ताल के साथ लयबद्ध होकर किसानों ने राजधानी दिल्ली कूच किया। सरकारी दमन के बीच तबसे किसान दिल्ली की सरहदों पर डेरा डाले हुए हैं।

पूरे देश में विस्तारित, बढ़ा जनसमर्थन

26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड को पूरे देश में समर्थन मिला। पूँजीवादी मीडिया के सारे दुष्प्रचारों के बावजूद देश भर में आंदोलन का जनसमर्थन बढ़ रहा है। दमन के बीच 30 जनवरी के उपवास के आह्नान का असर पूरे देश में रहा। 6 फरवरी को देशभर में तीन घंटे का चक्का जाम रहा। रेल के चक्का जाम का कार्यक्रम पूर्णतः सफल रहा।

किसान आंदोलन फैलता जा रहा है। हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखण्ड में खाप पंचायतें आंदोलन का ताप बढा़ रही हैं। जबकि महाराष्ट्र से लेकर उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड, राजस्थान, बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना कर्नाटक तक पूरे देश में किसान आंदोलन तेज हो रहा है।

क़ौमी नफ़रत की दीवार टूटी, कार्पोरेट से गठबन्धन हुई उजागर

इस आन्दोलन ने संघ-भाजपा के कई एजेण्डों को एक साथ ध्वस्त कर दिया। ऩफ़रत की सौदागिरी पर इसने प्रहार किया। आन्दोलन से पैदा सामुहिकता की संस्कृति ने हिन्दू-मुस्लिम, अगड़ा-पिछड़ा के भेदभाव को तोड़ दिया। आन्दोलन लोगों की राजनीतिक चेतना को उन्नत कर रहा है।

पिछले सालों में यह पहला आन्दोलन है जो सीधे सरकार के पीछे खड़े अडानी-अंबानी जैसे बड़े पूँजीपतियों पर निशाना साधा और सरकार-कार्पोरेट मिलीभगत का पर्दाफाश कर रहा है। मोदी सरकार के पूरे कार्यकाल में उनकी जनविरोधी नीतियों और लुटेरे पूँजीपतियों को ऐसी चुनौती पहली बार मिली है।

बदलाव की पठकथा तैयार

किसानों का दृढ़ और जुझारू संघर्ष आज़ादी के बाद होने वाले सबसे बड़े जनआंदोलनों में गिना जा रहा है। बदलाव की एक नई राजनीति की पठकथा तैयार हो रही है। संघर्ष एक नए मुक़ाम पर है।

आन्दोलन का विकास और सफलता भारत की पूरी मेहनतकश आबादी के संघर्षों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण है।

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