बहरोड़: प्रबंधन की प्रताड़ना से तंग आकर मज़दूर ने आत्मदाह का प्रयास किया।

बहरोड़ स्थित ऑटोनेम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के एक मज़दूर वीरेंद्र ने कंपनी प्रबंधन की लगातार प्रताड़ना से तंग आकर 01 मार्च सोमवार को प्लांट के बाहर पेट्रोल पीकर और पेट्रोल छिड़ककर आत्मदाह का प्रयास किया। वीरेंद्र के साथी मजदूरों ने उसे स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया जहां वीरेंद्र आईसीयू में एडमिट किया गया।

श्रमिकों ने बताया कि वीरेंद्र को कंपनी लगातार परेशान कर रही थी। शनिवार को भी वीरेंद्र को गेट पर ही रोक दिया गया था किसी तरह मजदूरों ने दबाव बनाकर उसको काम पर वापस लिया सोमवार को सुबह जब वीरेंद्र ड्यूटी के लिए गेट पर पहुंचा तो उसे फिर से गेट पर ही रोक दिया गया जिसके बाद वीरेंद्र ने यह कदम उठाया।
घटना के बाद बहरोड़ पुलिस मौके पर पहुंची और दो मजदूरों को उठा कर थाने ले गई और प्रबंधन पर कोई कार्यवाही नहीं की गई इसके अलावा 25 मजदूरों का गेट भी बंद कर दिया गया है। घटना से नाराज मजदूरों ने प्लांट में काम रोक दिया और रात भर प्लांट के अंदर ही बैठे रहे, आधी रात के बाद बहरोड़ पुलिस ने प्लांट में जाकर मजदूरों को बाहर निकाल दिया।

फिलहाल वीरेंद्र की हालत स्थिर और सामान्य है। आज एसडीएम बहरोड और स्थानीय पुलिस मामले को निपटाने के लिए तथा प्रबंधन और मजदूर पक्ष के बीच वार्ता कराने के लिए ऑटोनेम प्लांट में पहुंचे। वार्ता के दौरान मजदूरों ने मांग रखी की सभी को काम पर वापस लिया जाए मगर प्रबंधन ने उन्हें काम पर लेने से इनकार कर दिया। एसडीएम ने भी प्रबंधन से मजदूरों को काम पर वापस लेने के लिए कहा मगर ऑटोनेम प्रबंधन ने एसडीएम की बातों को भी मानने से मना कर दिया और वार्ता विफल हो गई।फिलहाल जिन 25 मजदूरों का गेट बंद कर दिया गया है वो प्लांट के बाहर धरने पर बैठे हैं। एसडीएम और स्थानीय पुलिस ने मजदूरों को शांतिपूर्वक धरना चलाने की इजाजत दे दी है।

ऑटोनेम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड 1994 से प्रोडक्शन कर रही है। ऑटोनेम एक वेंडर कंपनी है जो मारुति, होंडा, हुंडई और टाटा मोटर्स के लिए ऑटोमोबाइल पार्ट्स बनाती है। प्लांट के अंदर डैंपिंग और एनबीएच दो हिस्से हैं जहां गाड़ियों में लगने वाले सीट बेल्ट, इनर रूफटॉप मेट और साइड पैनल तैयार होते हैं। बहरोड के अलावा ऑटोनेम का चेन्नई में भी एक प्लांट है।

बहरोड़ स्थित ऑटोनेम के प्लांट में 55 के आसपास स्थाई कर्मचारी हैं और 40 के आसपास कांटेक्ट वर्कर काम करते हैं। प्लांट में स्थाई कर्मचारियों का वेतन 15000 से लेकर ₹35000 तक है और ठेका मजदूरों को 7 से ₹10000 मिलते हैं। प्लांट के अंदर बीएमएस और सीटू से मान्यता प्राप्त दो यूनियन है।
प्लांट के अंदर दूसरी यूनियन का गठन होने के बाद से प्रबंधन लगातार श्रमिकों को परेशान कर रहा है बीएमएस यूनियन की स्थापना 2010 में हुई थी और सीटू की यूनियन 2019 में बनी है।

23 दिसंबर 2019 को प्रबंधन ने प्लांट के अंदर सात-आठ साल से काम कर रहे करीब 50 कॉन्ट्रैक्ट वर्करों को काम से निकाल दिया था जिसे लेकर प्लांट के अंदर मजदूरों ने 2 दिनों तक हड़ताल कर दी थी। ठेका मजदूरों का मामला श्रम न्यायालय, अलवर में विचाराधीन है। एसडीएम की मध्यस्थता में हुए समझौते के बावजूद कर्मचारियों के 2 दिन का वेतन काट लिया गया।

जनवरी 2020 में जब श्रमिकों ने अपना मांग पत्र प्रबंधन को सौंपा तो प्रबंधन ने मांग पत्र लेने से इनकार करते हुए वार्ता करने से मना कर दिया। फिलहाल मांग पत्र और सुरक्षित कर्मकार का मामला श्रम विभाग में लंबित चल रहा है। उसके बाद से श्रमिकों को तरह-तरह के बहाने लगाकर प्लांट के अंदर तंग किया जाने लगा। प्रबंधन आए दिन श्रमिकों के वर्क स्टेशन चेंज कर देता और लाइन चेंज कर देता। यूनियन पदाधिकारियों को ट्रांसफर पर जाने का दबाव बनाया जाने लगा, कंपनी गेट के ऊपर और कार्यस्थल पर श्रमिकों खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग किया जाने लगा।

श्रमिकों का मनोबल तोड़ने के लिए यूनियन के अध्यक्ष जितेंद्र का 2020 में लॉकडॉउन के दौरान ही प्लांट के आंध्र प्रदेश स्थित वेयरहाउस में ट्रांसफर कर दिया गया। जितेंद्र यादव अलवर के बहरोड़ तहसील के माचल गांव के रहने वाले हैं और 1994 में प्लांट की स्थापना के बाद से ही प्लांट में कार्यरत हैं। कंपनी प्रबंधन यूनियन अध्यक्ष जितेंद्र को किसी भी तरीके से प्लांट से बाहर करना चाहती थी इसलिए रातों रात जितेंद्र के घर कंपनी की गाड़ी उनको स्टेशन छोड़ने के लिए पहुंच गई। जितेंद्र ने जब ट्रांसफर पर जाने से मना किया तो उनके खिलाफ पिछले 6 महीने में तरह-तरह के मुकदमे दर्ज करा दिया गया है। जितेंद्र सामाजिक रूप से सक्रिय है इसलिए उन्होंने प्रबंधन के दबाव के आगे झुकने से मना कर दिया।

आत्मदाह का प्रयास करने वाले योगेंद्र यूनियन के उपाध्यक्ष है और राजस्थान के झुंझुनू जिला के रहने वाले हैं। कंपनी प्रबंधन के अनुसार योगेंद्र को कस्टमर रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर प्लांट में नियुक्त किया गया था और शुरुआती दिनों में वह ग्रेटर नोएडा स्थित होंडा के प्लांट में प्रतिनियुक्ति पर थे मगर पिछले चार-पांच साल से वह बहरोड़ स्थित प्लांट में क्वालिटी डिपार्टमेंट में कार्यरत है। लॉकडाउन के समय से ही योगेंद्र को भी लगातार परेशान किया जा रहा था उन्हें भी ट्रांसफर पर जाने को लेकर दबाव बनाया जा रहा था और पिछले 1 सप्ताह से लगातार किसी ना किसी बहाने उनका गेट बंद कर दिया जा रहा था जिससे तंग आकर सोमवार को योगेंद्र ने पेट्रोल पीकर जान देने की कोशिश की।
22 फरवरी को यूनियन ने बहरोड एसडीएम को ज्ञापन सौंपते हुए प्लांट के अंदर प्रबंधन द्वारा मजदूरों को प्रताड़ित किए जाने से अवगत कराते हुए हस्तक्षेप करने का आवेदन किया था। मगर ऑटोनेम प्रबंधन तानाशाही रवैया अपनाते हुए प्रशासन की बातों को भी सुनने को तैयार नहीं है। फिलहाल इस घटना की खबर लगते हैं डाइकिन और ट्योडा यूनियन के प्रतिनिधि लगातार धरनास्थल पर मौजूद है।

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