म्यामांर में सैन्य शासन के ख़िलाफ़ आज़ादी का संघर्ष तेज
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने की निंदा, तत्काल रिहाई की माँग
म्यामांर में आजादी के लिए लगातार संघर्ष चल रहा है। लाखों लोग सैन्य तानाशाही के खिलाफ जबर्दस्त प्रदर्शन कर रहे हैं। उधर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने शुक्रवार को सैन्य तख्तापलट की निंदा करते हुए देश में मनमाने ढंग से हिरासत में लिए गए सभीकी तत्काल और बिना शर्त रिहाई और आपातकाल की स्थिति समाप्त करने की माँग की।
यूएनएचआरसी ने जारी एक बयान में कहा कि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को तत्काल बहाल करने और आपातकाल को हटाने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया गया है।
परिषद के सभी सदस्यों ने बिना शर्त रिहाई के लिए आवाज उठाई, जिन्हें तख्तापलट के बाद हिरासत में लिया गया था। जिसमें स्टेट काउंसलर आंग सान सू की और राष्ट्रपति विन म्यिंट और अन्य लोग शामिल है।
यूरोपीय संघ (ईयू) की ओर से यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रिया द्वारा मसौदा प्रस्ताव पेश किया गया था। वोट देने की प्रक्रिया में चीन, रूसी संघ, वेनेजुएला, बोलीविया और फिलीपींस ने खुद को अलग रखा है।
एक फरवरी को हुआ था तख्तापलट
उल्लेखनीय है कि एक फरवरी को सेना ने म्यांमार में चुनी हुई सरकार के ख़िलाफ सैन्य तख्तापलट कर दी, जिसका नेतृत्व सशस्त्र बलों का कमांडर-इन-चीफ मिन औंड हलैंग कर रहा था। सेना ने देश में एक साल का राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया और जनरल को कार्यकारी राष्ट्रपति घोषित कर दिया।
राष्ट्रपति यू विन म्यिंट और स्टेट काउंसेलर आंग सान सू की सहित तमाम सांसदों और कई राजनीतिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया या सेना ने हाउस अरेस्ट किया। सिटी हाल के बाहर सैन्य इकाइयों के साथ यांगून क्षेत्र में कंटीले तारों को लगा दिया गया। सेना द्वारा सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट के मुताबिक शुक्रवार तक म्यांमार में 350 से ज्यादा मानवाधिकार कार्यकर्ता, नेता, संसद और धार्मिक नेताओं को गिरफ्तार किया जा चुका है। तमाम अधिकारियों को भी गिरफ्तार किया गया है, जिन्होंने अपना काम बंद कर मिलिट्री शासन का बहिष्कार किया है।
हालांकि, कुछ ऐसे वीडियो भी म्यांमार से निकलकर सामने आए हैं, जिनसे पता चलता है कि सैकड़ों और लोग अभी गिरफ्तार किए जा चुके हैं, जिनकी जानकारी अभी बाहर निकलकर सामने नहीं आ पाई है।
विरोध–प्रदर्शन हुआ तेज
म्यांमार 1 फरवरी से ही लगातार संघर्ष जारी है जब सेना ने आंग सान सू की की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के खिलाफ तख्तापलट किया। लाखों लोग सैन्य तानाशाही के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और कह रहे हैं कि उन्हें किसी भी कीमत पर सैन्य तानाशाही शासन नहीं चाहिए।
सैन्य कार्रावाई के बाद हजारों लोगों ने राजधानी नेपीडा में प्रदर्शन किया। आम जनता ने घरों से निकलकर बर्तन बजाकर विरोध दर्ज कराया। म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के दो दिन बाद देश भर के 30 शहरों के 70 अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ ने 1 फरवरी को आंग सान सू की की सत्ता पलटने के विरोध में काम करना छोड़ दिया है।
नवगठित म्यांमार सविनय अवज्ञा आंदोलन के अनुसार इस समूह की कोई समय सीमा नहीं है कि ये हड़ताल कब तक चलेगी। हालांकि म्यांमार में स्वास्थ्य कर्मचारी अपने उद्देश्य को लेकर स्पष्ट हैं। उन्होंने कहा कि वे “अवैध सैन्य शासन से किसी भी आदेश का पालन करने से इनकार करते हैं क्योंकि उनके पास गरीब मरीजों के लिए कोई चिंता नहीं है।”
म्यांमार की औद्योगिक राजधानी यंगून में हजारों की तादाद में प्रदर्शनकारी जमा होकर अलग अलग अंदाज में प्रदर्शन किया तो राजधानी नेपीडो में भी हजारों प्रदर्शनकारी देश को सैन्य शासन से मुक्ति दिलाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं और लोगों का गुस्सा लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
म्यांमार के एक शहर मेंडेल में एक प्रदर्शनकारी ने एक सैनिक जवान के पैरों पर गुलाब का फूल रख दिया और सैन्य तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाने के लिए अपील करने लगा, तो मेंडेले में ही हजारों प्रदर्शनकारी म्यांमार की पारंपरिक पोषाक पहनकर प्रदर्शन करते नजर आए।
ये प्रदर्शनकारी म्यांमार की पारंपरिक डांस कर रहे थे और मिलिट्री शासन को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करने के लिए अपना विरोध जता रहे थे। अलग अलग स्कूल भी मिलिट्री शासन के खिलाफ विरोध में रैलियां निकाल रहे हैं, जिनमें लिखा है कि हम अपने बच्चों को डिक्टेटर शासन नहीं देना चाहते हैं।
म्यांमार में नागरिकों ने इस तख्तापलट का समर्थन करने वाले देश नेपाल, हांगकांग और अन्य देशों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।
क्रूरता कर रही म्यांमार पुलिस
प्रदर्शनों के बीच पुलिस का दमन और क्रूरता बढती जा रही है। जगह-जगह प्रदर्शनों पर पानी की बौछारों के साथ लाठी-गोली का भी वह बेशर्मी से इस्तेमाल कर रही है।
शुक्रवार को हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शन अब तक देश में हुए सबसे बड़े प्रदर्शनों में से एक थे। इस दौरान पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर रबर बुलेट्स को दागा। ये प्रदर्शन देश के दक्षिणपूर्व में स्थित शहर मवालमाइन में हुए। रेडियो फ्री एशिया द्वारा प्रसारित किए गए फुटेज में देखा जा सकता है कि पुलिस प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज कर रही हैं।
मवालमाइन में पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया हजारों की संख्या में लोग पुलिस स्टेशन के बाहर खड़े हो गए और रिहाई की मांग करने लगे। इसके बाद पुलिस ने गिरफ्तार किए गए लोगों को रिहा करना पड़ा।
शुक्रवार को देश के सबसे बड़े शहर यंगून में सैकड़ों की संख्या में डॉक्टर्स ने ‘गोल्डन श्वेदागोन पैगोडा’ तक मार्च किया। वहीं, नेपिडा, देवाई और मईतकिना जैसे शहरों में भी बड़ी संख्या में लोगों ने प्रदर्शन किया।
सैन्य शासन का इतिहास पुराना
म्यांमार (बर्मा) 4 जनवरी 1948 को ब्रिटिश शासन से मुक्त हुआ था। 1962 तक यहां पर लोकतंत्र के तहत देश की जनता अपनी सरकार चुनती थी। लेकिन 2 मार्च, 1962 को सेना के जनरल ने विन ने लोकतान्त्रिक सरकार का तख्तापलट करते हुए देश की सत्ता पर कब्जा कर लिया था और यहाँ के संविधान को निलम्बित कर दिया था।
इसके बाद म्यांमार में सैन्य शासन (मिलिट्री जुंटा) का लंबा दौर चला। 26 वर्षों तक चले इस शासन के दौरान लगातार दमन चला और बेइनतहां मानवाधिकार उल्लंघन हुए थे।
80 के दशक से पहले इसका नाम बर्मा था, लेकिन बाद में इसका नाम म्यांमार कर दिया गया।
फ़िलहाल यहाँ जनता का संघर्ष एकबार फिर तेज हो रहा है और जनता का प्रदर्शन व सैन्य शासन से मुठभेड़ जारी है।