भयावह : चमोली में ग्लेशियर फटा, भारी तबाही, 10 की मौत, 170 मज़दूर लापता
घटना रात की होती तो मंज़र और भयावह होता
उत्तराखंड के चमोली जिले में भयावह मंज़र है। चमोली जिले के रैणी गांव में रविवार को ग्लेशियर फटने से धौली गंगा नदी में बाढ़ आ गई। पूरे इलाके में तबाही मची है। ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट तथा तपोवन पावर प्रोजेक्ट ध्वस्त हो गया और यहाँ कार्य कर रहे कम से कम 10 की मौत, 170 मज़दूर लापता बताए जा रहे हैं। यह संख्या और हो सकती है।
घाटी में जारी दो जल विद्युत परियोजनाओं को भीषण नुकसान पहुंचा है। अभी तक की जानकारी के मुताबिक चमोली जिले के रेनी गांव के पास निर्माणाधीन एनटीपीसी लिमिटेड की ऋषि गंगा जल विद्युत परियोजना को भारी नुकसान पहुंचा है।
अपुष्ट रिपोर्ट्स के अनुसार तपोवन डैम भी टूट गया है और यहां काम करने वाले 170 से अधिक मज़दूर लापता हैं। अबतक 10 लोगों कि मौत की ख़बर या चुकी है। सैकड़ों जानवर और लोगों के असियाने बह गए हैं।
स्थानीय लोग अपने इलाके में ऐसे डैम के निर्माण का विरोध करते रहे हैं। जानकारों के मुताबिक पर्यावरणीय दृष्टि से भी इन डैम्स का निर्माण उचित नहीं है। ग्लेशियर फटने के कारण अलकनंदा की सहायक नदी, धौली गंगा नदी का जल स्तर कई मीटर तक बढ़ गया है और बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई।
भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) और राष्ट्रीय आपदा सहायक बल (एनडीआरएफ) ने बचाव अभियान शुरू कर दिया है। धौली गंगा और आस-पास के नदियों के बहाव क्षेत्र में आने वाले गांवों को चेतावनी दी गई है और उन्हें प्रशासन द्वारा खाली कराया जा रहा है।
नैनीताल समाचार में छपी रिपोर्ट में लिखा है कि ग्लेशियर फटा, निश्चय ही यह एक डरा देने वाली खबर है। पर खबर को थोड़ा ठीक से कहा जाए तो ग्लेशियर फटा नहीं बल्कि ग्लेशियर में बनी झील के टूटने से यह दुर्घटना हुई।
इस घटना ने रेणी से धौलीगंगा , विष्णुप्रयाग , जोशीमठ पीपलकोटी, चमोली, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग से देव प्रयाग, होते हुए हरिद्वार तक इस नदी के किनारे रहने वाले लोगों में दहशत पैदा कर दी। इस खबर की जानकारी देते हुए पीपलकोटी के आनंद पाल जी बताते हैं – गनीमत है ये घटना प्रातः 8:00 से 8:30 बजे के लगभग हुई, अगर रात में हुई होती तो शायद मौतों की संख्या बहुत ज्यादा होती।
नंदप्रयाग से पर्यावरणविद भूपेंद्र कंडारी जी बताते हैं कि लोगों ने खबर सुनते ही जरूरी सामान लेकर घरों को छोड़कर वहां से जाना प्रारंभ कर दिया परंतु जब पता चला कि खतरा टल गया है, तब अफरा-तफरी कम हुई और लोग अपने घरों को लौट आए। फिलहाल नंदप्रयाग में नदी का बहाव सामान्य है खतरे की कोई बात नहीं है।
ऋषि गंगा नदी की राह में ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट है, इस पावर प्रोजेक्ट को अत्यधिक क्षति पहुंची है। इस से ज्यादा गम्भीर बात यह है कि इस प्रोजेक्ट के लगभग 50 मजदूर लापता बताए जा रहे हैं। ऋषि गंगा नदी आगे चलकर धौलीगंगा में मिल जाती है। धौलीगंगा पर तपोवन पावर प्रोजेक्ट पर कार्य चल रहा था। इस प्रोजेक्ट के भी 100 लोग लापता बताए जा रहे हैं। अभी तक 3 लाशें बरामद हुई हैं।
विस्तृत रिपोर्ट आने का अभी इंतजार है। केदारनाथ आपदा के बाद से ही पर्यावरणविद और यहां की जनता ने कहना प्रारंभ कर दिया था कि यह पावर प्रोजेक्ट यहां के पर्यावरण के लिए और यहां के जनजीवन के लिए बहुत ही खतरनाक है लेकिन आज तक भी सरकारों ने इस पर ध्यान नहीं दिया है।
ग्लेशियरिस्ट डॉक्टर डी. पी. डोभाल (सेवानिवृत) का कहना है कि हो सकता है हिमस्खलन के कारण यह घटना हुई हो क्योंकि जो मलवा वीडियो में दिख रहा है उसमें मिट्टी की मात्रा बहुत जो हिमस्खलन में पाई जाती है परंतु अभी यह एक अनुमान ही है।
वाडिया हिमालय भूविज्ञान की टीम सोमवार को इस क्षेत्र का दौरा करेगी उसके बाद ही विस्तृत रिपोर्ट मिलने की उम्मीद है।
गनीमत है कि ग्लेशियर के टूटने से जो क्षति हुई वह रैणी से तपोवन तक ही हुई। निश्चित रूप से यह एक बहुत जबरदस्त दुर्घटना है और इसमें संभावित रूप से कई लोगों के प्राण भी चले गए पर यह कहना गलत नहीं होगा कि इस घटना ने इससे अधिक भयावह रूप धारण नहीं किया जिससे जान-माल का नुकसान थोड़ा कम हुआ पर इस दुर्घटना को भविष्य के लिए एक भयंकर चेतावनी के रूप में लिया जाना चाहिए।
उत्तराखंड में 5 बड़े हादसे
- रुद्रप्रयाग के केदारनाथ में 16 जून 2013 की आपदा पूरी मानव जाति को झकझोर गई थी। इसमें 4500 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और कई लापता हो गए थे।
- उत्तरकाशी जिले के मोरी तहसील में अगस्त 2019 में बारिश से उफनाए नालों की वजह से करीब 200 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था और 18 लोगों की जान गई थी।
- साल 2019 में उत्तरकाशी आराकोट में आए आपदा से लगभग 70 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र प्रभावित हुआ था। कई इलाकों में कनेक्टिविटी से लेकर जलसंकट तक गहरा गया था।
- साल 2020 में पिथौरागढ़ में बड़ा हादसा हुआ था जब चैसर गांव में एक मकान ढह गया। घटना सुबह हुई इसलिए बचने का मौका तक नही मिल पाया था।
- उत्तरकाशी में ही 1991 में आए भूकंप की वजह से यहां की चट्टानें कमजोर हो गई थीं, जिसके बाद ज्यादा बारिश के कारण चट्टानें जगह-जगह से दरक गई थीं।