18 जनवरी, महिला किसान दिवस : किसान आन्दोलन में क्या कर रही हैं औरतें?
महामहिम, वे एक महाकाव्य, एक शानदार इतिहास लिख रही हैं!
देश की सर्वोच्च अदालत ने पूछा कि किसान आन्दोलन में महिलाएं क्या कर रही हैं? इसकी देशभर में तीखी प्रतिक्रिया हुई। किसान संगठनों ने 18 जनवरी को महिला किसान दिवस, 23 जनवरी को नेताजी सुभाषचंद बोस का जन्मदिवस मनाने और 26 जनवरी को किसान परेड निकालने की घोषणा की है। महामहिम का ज़वाब साथी दिगम्बर ने अपनी वाल पर बड़े ही चुटेले अंदाज़ में दिया है। महिला किसान दिवस पर प्रस्तुत है- किसान आन्दोलन में क्या कर रही हैं औरतें…
फलाने, पुत्र- अलाने ने पूछा कि औरतें किसान आन्दोलन में क्या कर रही हैं?
फलाने, आप उधार की महँगी बम्बूकार्ट से उतर के जमीन पर पाँव धरिये, दिल्ली के चौगिरदे डेरा जमाये किसान जत्थेबंदियों के बीच जाईये, और देखिए कि औरतें क्या कर रही हैं।
वे सदियों से अपने पाँवों में पड़ी बेड़ियों को तोड़ने पर आमादा हैं। वे पाँव की जंजीर की परवाह किये बगैर ताण्डव नृत्य कर रही हैं।
वे फलाने के फैसले में अपने प्रति इस दोयम दर्जे के सलूक और लैंगिक भेदभाव का पूर्वाभास करके कि “किसानों को विरोध प्रदर्शन का अधिकार है,” लेकिन “औरतें वहाँ क्या कर रही हैं?” आन्दोलन की शुरुआत से ही बढचढ़कर हिस्सेदारी कर रही हैं, ताकि यह सनद रहे कि वे मर्दों के बराबर हैं, कि वे किसान हैं और इस जम्हूरी मुल्क में बहुत से जमूरे 2021 में भी उनकी इस बराबरी पर आए दिन सवाल उठाते रहते हैं और उनको घर की शोभा बताते हुए संविधान की अवमानना करते रहते हैं, जैसाकि फलाने के इस फैसले में भी दर्ज हुआ।
वे वहाँ क्या कर रही हैं, ये पूरी दुनिया देख रही है, सिवाये फलाने जी के।
वे आन्दोलन के मंच से भाषण दे रही हैं। वे वहाँ जीवन, संघर्ष, सृजन और उम्मीद के गीत गा रही हैं,
वे समाचार जुटा रही है, वीडियो बना रही हैं और अपने तजुर्बों से हासिल सच्चाई का बयान करते हुए वीडियो बनानेवालों को अचरज में डाल रही हैं, आजकल की भाषा में वे अपने विचारों के साथ वायरल हो रही हैं।
बिकाऊ मीडिया के बेहूदे सवालों के जवाब में वे ठेठ जुबान में समय का सच बोल रही हैं और जनता के पक्ष में दर्शन के नये-नये पन्ने खोल के रख दे रही हैं।
वे सैकड़ों मील दूर से अपनी सहेलियों के साथ ट्रैक्टर चलकर पहुँच रही हैं। वे लंगर में अपने मर्द साथियों के साथ खाना बना रही हैं।
वे साफ-सफाई कर रही हैं। वे लाठी लेकर रात में तंबुओं के बाहर पहरे दे रही हैं।
वे प्रेस नोट टाइप कर रही हैं, वे पोस्टर बना रही हैं।
वे बच्चों को सुला रही हैं, वे बुजुर्गों की मरहम-पट्टी कर रही हैं, उनको दवा खिला रही है। वे शहीद साथियों का मातम कर रही हैं और एक दूसरे को दिलासा दे रही हैं। वे संकल्प में मुट्ठियाँ बाँध रही हैं और चीखकर नारे लगा रही हैं….
वे आने वाले कल की बेहतरी के लिए जी-जान से जुटी हैं।
वे हमारे पूरे कौम को हताशा, निराशा और पस्तहिम्मती के धुंध से निकालकर आशा, उत्साह और सक्रियता की धूप में ला रही हैं।
वे एक महाकाव्य, एक शानदार इतिहास लिख रही हैं।
(मैं चाहता हूँ कि जिन साथियों के पास औरतों के कारनामों से जुड़े आन्दोलन के चित्र हों, वे कमेन्ट में डालकर किसान आन्दोलन में औरतों की नाना प्रकार की भूमिकाओं को प्रमाणित और पुष्ट करें, ताकि फलाने के अनर्गल प्रलाप को समुचित जवाब मिले।)
-दिगम्बर के वाल से