किसानों को मदद करने वालों को जाँच एजेंसियां कर रहीं है उत्पीड़ित

किसानों में आक्रोश, सरकार अड़ियल, वार्ता बेनतीजा

सुप्रीम कोर्ट द्वारा कमेटी बनाने के बाद सरकार और किसानों के बीच आज पहली बैठक हुई। नौवें दौर की इस वार्ता में कोई नतीजा नहीं  निकली जैसा कि उम्मीद थी। बस फिर बात करने को लेकर बात बनी। 19 जनवरी को अगली बैठक होगी। किसानों ने साफ़ कर दिया कि वे कृषि कानूनों से कम किसी बात पर राज़ी नहीं होंगे वहीं सरकार संशोधन का टुकड़ा फेंकती रही जिसके पीछे की साज़िश को किसान अच्छी तरह समझ रहे थे। उन्होंने बैठक में सरकार के प्रतिनिधियों से तल्ख अंदाज़ में कहा कि पंजाब में तमाम ऐसे लोगों को परेशान किया जा रहा है जो आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं। करनाल में किसान आंदोलनकारियों पर एफआईआर का भी मुद्दा उठा।

सरकार से वार्ता के बाद ‘सयुंक्त किसान मोर्चा’ ने कहा कि आज की बैठक बेनतीजा रही क्योंकि किसान तीन कृषि कानूनों को रद्द करवाने की मांग करते रहे और सरकार के प्रतिनिधि इन कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव देते रहे।

संयुक्त मोर्चे का कहना है कि किसान संगठनों द्वारा 13 जनवरी व 14 जनवरी को विभिन्न त्योहारों पर कृषि कानूनों की प्रतियां जलाने के कॉल पर देश-दुनिया से आये भारी समर्थन से किसानों का उत्साह बढ़ा है। अब यह आंदोलन देशव्यापी और जनांदोलन बनता जा रहा है। हम उन तमाम संगठनों और व्यक्तियों का शुक्रिया अदा करते है जिन्होंने किसी भी रूप में किसान आंदोलन का समर्थन किया है।

‘सयुंक्त किसान मोर्चा’ ने कहा कि सरकार किसानों की मांग को सुनने की बजाय आंदोलन में शामिल लोगों को परेशान करने पर तुली है। जो समाजसेवी दिल्ली के लिए बसें भेज रहे हैं या शहीद किसानों को आर्थिक मदद कर रहे हैं उन्हें NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) द्वारा बार बार जांच के नाम पर परेशान किया जा रहा है। हम इस मानसिक प्रताड़न का विरोध करते हैं।

हम सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रस्तावित कमेटी के प्रस्ताव को पहले ही अस्वीकार कर चुके हैं। कमेटी के सदस्यों की सरकार की तरफ झुकाव की खबरें किसी से छुपी नहीं हैं। सदस्य भूपिंदर मान के कमेटी से बाहर होने के फैसले का हम स्वागत करते हैं, साथ ही हम अन्य सदस्यों से भी अपील करते हैं कि अंतरात्मा की आवाज़ सुनते हुए, इन कृषि कानूनों की असलियत को स्वीकार करते हुए वे भी अपना विरोध प्रकट करें और कानूनों को सिरे से रद्द करने की मांग रखें।

‘सयुंक्त किसान मोर्चा’ ने कहा कि मुम्बई फ़ॉर फार्मर्स के बैनर तले महाराष्ट्र के किसान संगठन, अन्य प्रगतिशील संगठनों के साथ मिलकर 16 जनवरी को विशाल रैली और आम सभा का आयोजन कर रहे हैं। ‘सयुंक्त किसान मोर्चा’ अपील करता है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोग इसमें भाग लें।

‘सयुंक्त किसान मोर्चा’ द्वारा घोषित 26 जनवरी की किसान गणतंत्र परेड के संबंध में अनेक भ्रांतियां फैल रही हैं। हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि किसानों की इस परेड से भारत सरकार की परेड को नुकसान पहुचाने का हमारा कोई मकसद नहीं है। 17 जनवरी को किसान संगठनों की मीटिंग में और 18 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद ही इस परेड की विस्तृत योजना बताई जाएगी।

मंत्रियो के समूह द्वारा यह दावा करना कि इन कानूनों को रद्द करने संबधी फैसला सुप्रीम कोर्ट ले, हम इस बयान का विरोध करते हैं। लोकसभा भारत के लोगों द्वारा चुने गए नेताओ का सदन है। ये कानून भी संसद ने बनाये हैं और इनको रद्द भी ससंद करे, यही हमारी मांग है।सयुंक्त किसान मोर्चा “सिक्ख फोर जस्टिस” नाम से एक संस्था द्वारा भड़काऊ बयानों की कड़ी निंदा और विरोध करता है। हम किसानों से आग्रह करते है इस तरह के संगठनों से जागरूक रहें।

‘सयुंक्त किसान मोर्चा’ ने कहा कि दिल्ली के सभी बॉर्डर्स पर लगातार किसान बड़ी संख्या में आ रहे हैं। ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ द्वारा दिल्ली में सभी धरना स्थलों पर मुलताई में 12 जनवरी 1998 को शहीद हुए 24 किसानों को श्रंद्धाजलि दी गई। उत्तराखंड और राजस्थान में लगातार ट्रैक्टर मार्च हो रहे हैं और सेंकडों की संख्या में किसान दिल्ली कूच कर रहे हैं। बिहार और मध्यप्रदेश में किसानों के पक्के मोर्चे लगे हुए हैं।

“किसान दिल्ली चलो यात्रा” आज 15 जनवरी को ओड़िशा से शुरू हुई। यह यात्रा सात दिनों में ओड़िशा से पश्चिम बंगाल, झारखंड , बिहार , उत्तर प्रदेश होते हुए दिल्ली बॉर्डर पर बैठे हुए अपने किसानों के पास 21 तारीख को पहुंचेगी। “किसान ज्योति यात्रा” 12 जनवरी से पुणे से शुरू हुई है और यह 26 जनवरी को दिल्ली पहुँचेगी।

‘सयुंक्त किसान मोर्चा’ ने कहा कि  सुप्रीम कोर्ट की महिला विरोधी टिप्पणी का जवाब देने महाराष्ट्र के जलगांव से महिलाओं का एक जत्था दिल्ली रवाना होगा। 500 से ज्यादा की संख्या में केरल से किसान शाहजहांपुर बॉर्डर पर पहुंचे हैं। तमिलनाडु के किसानों ने भी कृषि कानूनों की कॉपी जलाकर भारत सरकार के इस तर्क का जवाब दिया है कि केरल और तमिलनाडु में किसान इन कानूनों का समर्थन करते हैं।

मीडिया विजिल से साभार

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