छंटनी तेज : अब टाटा मोटर्स में भी वीआरएस की घोषणा

हकीक़त क्या है? कुछ तो देखो, अब तो आँखें खोलो!

सरकारी कंपनियों से लेकर निजी कंपनियों तक में कथित वीआरएस के बहाने छंटनी की तलवार तेजी से चल रही है। होंडा, भारत फोर्ज, थर्मेक्स के बाद अब टाटा मोटर्स में कर्मचारियों व अधिकारियों के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) की घोषणा हो गई है। आर्थिक संकट के बहाने टाटा बेहद मामूली रकम पर श्रमिकों से छुट्टी पाना चाहता है।

उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार 50 साल उम्र पार या 30 साल नौकरी कर चुके सरकारी कर्मचारियों को बहार निकाल रही है। इसी तर्ज पर तमाम राज्य सरकारें भी छंटनी तेज कर चुकी हैं। रास्ता तैयार है, सो निजी कम्पनियाँ भी उसी रास्ते पर दौड़ लगा रही हैं। उधर श्रम कानूनों में बदलाव से आ रहे लेबर कोड में नियत अवधि (फिक्स्ड टर्म) का फंडा तैयार है।

टाटा मोटर्स में वीआरएस

11 दिसंबर से टाटा मोटर्स में स्वैच्छिक सेवानिवृत्त योजना (वीआरएस स्कीम) चल रही है। कर्मचारियों का वीआरएस पिछले 27 दिसंबर से जारी है जबकि अधिकारियों के लिए योजना 11 दिसंबर से शुरू है। पहले नौ जनवरी तक वीआरएस स्कीम का लाभ लेने की तिथि थी लेकिन कंपनी ने अब 16 जनवरी तक वीआरएस के लिए आवेदन देने की तिथि बढ़ी है।

ज्ञात हो कि टाटा मोटर्स के पुणे, साणंद, लखनऊ, धारवाड़, पंतनगर और जमशेदपुर में अलग-अलग संयंत्र हैं, जहाँ चार पहिया निजी वाहनों से लेकर भारी कमर्शियल वाहनों का निर्माण होता है।

बीते चार सालों में कंपनी ने तीसरी बार कर्मचारियों को वीआरएस की पेशकश की है। वीआरएस में शामिल करने के लिए टाटा मोटर्स के अधिकारियों व कर्मचारियों की काउंसिलिंग लगातार चल रही है। इस दिशा में जोर-शोर से काम चल रहा है।

लंबे समय से ड्यूटी से अनुपस्थित रहने, मेडिकल अनफिट कर्मचारी और दो-तीन साल सर्विस बचे कर्मचारियों को योजना में शामिल करने का दबाव है। वहीं लगातार तीन साल से डी ग्रेड पाने वाले अधिकारियों को छुट्टी करने की प्लानिंग है। अभी तक 125 कर्मचारी व 35 अधिकारी वीआरएस के लिए चिन्हित किए गए हैं।

इधर, कंपनी के अधिकारियों के कार्यों व उनके प्रदर्शन का आकलन कर स्कीम से जोड़ने की तैयारी चल रही है। अधिकारियों को वीआरएस देने का मापदंड उनके कार्य, ग्रेडिंग, उपलब्धि, प्रदर्शन आदि बनाया गया है। फिलहाल 50 से ज्यादा अधिकारियों को योजना में शामिल होने की चर्चा है।

बेहद कम है वीआरएस की रकम

टाटा मोटर्स मामूली रकम देकर बाहर का रास्ता दिखा रही है। वीआरएस योजना के तहत 22 दिसंबर तक 58 साल से ऊपर वाले कर्मियों को एक लाख और उससे कम उम्र वाले कर्मियों को वीआरएस लेने पर तीन लाख एक मुश्त मिलने की घोषणा हुई थी। लगभग 2,000 लोगों के इस योजना के लिए पात्र होने की संभावना है।

एक अपुष्ट सूत्र के अनुसार 60 वर्ष उम्र के लिए वीआरएस के तहत 40 से 45 वर्ष के लोगों को मूल वेतन (बेसिक प्लस डीए) का 80 फीसदी, 45 से 50 आयु वर्ग के लोगों को मूल वेतन (बेसिक प्लस डीए) का 90 फीसदी, जबकि 50 से 55 आयु वर्ग में मूल वेतन (बेसिक प्लस डीए) का 100 फीसदी मिलेगा। 55 से 60 आयु वर्ग के सभी लोगों के लिए, कंपनी ने 110 फीसदी मूल वेतन (बेसिक प्लस डीए) की पेशकश की है।

कई बड़ी कम्पनियां ने की वीआरएस की घोषणा

भारत फोर्ज ने जुलाई और सितंबर 2020 के बीच पुणे के मुंडवा और सतारा में अपने संयंत्रों में श्रमिकों के लिए वीआरएस की पेशकश की थी, लेकिन केवल 20 श्रमिकों ने इसका विकल्प चुना। भारत फोर्ज ने नवंबर 2020 में 10 या अधिक वर्षों के अनुभव वाले श्रमिकों के लिए दूसरा वीआरएस स्कीम लागू किया है।

पर्यावरण और ऊर्जा कंपनी थर्मैक्स ने भी 40 साल से अधिक उम्र अथवा जिन्होंने संयंत्र में 10 साल पूरे कर लिए हैं, उन सभी कर्मचारियों के लिए वीआरएस की घोषणा की है। 285 श्रमिकों में से 200 इस योजना के लिए पात्र थे, लेकिन महज 47 ने वीआरएस लिया।

होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर्स इंडिया (एचएमएसआई) ने मानेसर प्लांट से वीआरएस के बहाने भारी छंटनी का फरमान जारी कर दिया है।

इससे पूर्व होंडा ने ग्रेटर नोएडा स्थित कार प्लांट को बंद करके क़रीब 1000 स्थाई श्रमिकों को ज़बरदस्ती वीआरएस देकर प्लांट को खाली करा लिया था। 

यही है मोदी दौर का फंडा

देशी-बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हित में लगातार सक्रीय मोदी सरकार जहाँ सरकारी क्षेत्र की कंपनियों व विभागों को तेजी से निजी मुनाफाखोरों को सौंप रही है, वहीं तमाम बदलावों के साथ बेलगाम लूट के रास्ते बना रही है।

उसने मालिकों को मज़दूरों को मनमर्जी रखने व निकालने की खुली छूट के लिए 44 श्रम कानूनों को ख़त्म करके 4 श्रम संहिताएँ थोप दी हैं। सरकारी क्षेत्र में 50 साल उम्र पार या 30 साल नौकरी कर चुके सरकारी कर्मचारियों की छंटनी की योजना थोप दी है। केंद्र से लेकर राज्य कर्मचारियों की छंटनी तेज हो चुकी है।

रास्ता तैयार है, सो निजी कम्पनियाँ भी उसी मार्ग पर दौड़ लगा रही हैं। उधर श्रम कानूनों में बदलाव से आ रहे लेबर कोड में नियत अवधि (फिक्स्ड टर्म) का फंडा तैयार है।

भक्त जनों के लिए तो कुछ फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन असल में देश की व्यापक मेहनतकश अवाम, विशेष रूप से नौजवानों के लिए यह बेहद संकट की घडी है!

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