विभिन्न राज्यों में तेज़ हो रहा किसान आंदोलन

बिहार में उठी मंडियों को वापस स्थापित करने की आवाज़

पंजाब हरियाणा के किसानों का जुझारू संघर्ष पुरे देश में किसानों के प्रतिरोध को मज़बूत कर रहा है। खेती में पिछड़ा माना जाने वाला बिहार भी अब इस संघर्ष की महत्वपूर्ण ज़मीन बनता नज़र आ रहा है। 11 जनवरी को संबोधित किए गए प्रेस कांफ्रेंस में अखिल भारतीय किसान सभा के नेताओं ने तीन काले कानूनों को रद्द कराने, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की ख़रीद पर कानून बनवाने और धान की ख़रीद से सीमा समाप्त करवाने व बिहार में 2006 में ख़त्म कर दी गयी मंडियों को वापस स्थापित करने की मांगों को उठाते हुए आने वाले समय में अपनी संघर्ष की परिकल्पना बतायी।

लगातार चलेंगे प्रतिरोध प्रदर्शन

नेताओं ने ऐलान किया कि गणतंत्र दिवस पर देश की राजधानी में बुलाये गए किसान परेड के समर्थन में इसकी पूर्व संध्या, 25 जनवरी को बिहार में किसान महासभा और भाकपा माले के बैनर तले मशाल जुलूस का आयोजन किया जाएगा। 26 तारिख को राज्य में खेती बचाओ – देश बचाओ – संविधान बचाओ दिवस का पालन किया जाएगा। इसकी तैयारी में पूर्व घोषित 13 जनवरी को कृषि कानूनों की प्रतियां जलायी जाएंगी। 15 जनवरी को विभिन्न जिलाओं में चल रहे धरनास्थलों पर बड़ी महा सभा का आयोजन किया जाएगा। 18 जनवरी को किसान आंदोलन के समर्थन में महिला प्रतिवाद का आयोजन होगा और 23 जनवरी को सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम को पूरे राज्य में मजबूती से मनाया जाएगा।

5 जनवरी से राज्य में विभिन्न जिला और ब्लाक स्तर पर अनिश्चितकालीन धरने चल रहे हैं। इनमें भोजपुर, सिवान, अरवल, दरभंगा, भागलपुर, नालन्दा, गया, जहानाबाद, रोहतास, वैशाली आदि जिले विशेष रूप से सक्रीय हैं और छोटे-बटाईदार किसान और खेत मज़दूरों की इन सभाओं में व्यापक भागीदारी रही है। संघर्षों का पुराना क्षेत्र रहा भोजपुर जिला जन भागीदारी के विषय में सबसे आगे है। साथ ही 7 जनवरी से राज्य की राजधानी पटना के गर्दनीबाग़ में अखिल भारतीय किसान सभा की ओर से अनिश्चितकालीन धरना भी आरंभ हो चूका है। इसके अतिरिक्त महा गठबंधन के आह्वान पर माहात्मा गांधी शाहादत दिवस, 30 जनवरी को पूरे बिहार में मानव श्रृंखला का आयोजन घोषित किया गया है। किसान नेताओं के साथ साथ विपक्ष ने यह भी दावा किया है कि आने वाले विधान सभा सत्र में इन तीन कानूनों के विरोध में अधीयम पास कराये जाएंगे।

आन्दोलन के दबाव से बढ़ा धान ख़रीद का लक्ष्य लेकिन नितीश सरकार द्वारा दमन और धोखाधड़ी जारी

जहाँ आन्दोलन के दबाव के कारण ही सरकार को धान खरीदने की सीमा को 30 लाख मेट्रिक टन से 45 लाख मेट्रिक टन तक बढ़ाना पड़ा। लेकिन ख़रीद की अवधी को 31 मार्च की जगह 31 जनवरी करके सरकार ने धान की ख़रीद में नयी धोखाधड़ी की है क्योंकि मुख्य धान उत्पादन केन्द्रों में फसल फ़रवरी तक ही तैयार हो पाती है और इस तरह फ़सल आ एक बड़ा हिस्सा सरकारी ख़रीद से बाहर रह जाएगा। सरकार द्वारा लिए जा रहे ऐसे पैंतरे यह साफ कर देते हैं की अपने सरे आश्वासनों के बावजूद भाजपा और उसके गठबन्धनों की पार्टियों में किसानों के हितों के संरक्षण के प्रति कोई राजनैतिक प्रतिबद्धता नहीं है।

किसान नेताओं का कहना है कि राज्य में बनी भाजपा – जदयू सरकार ग्रामीण स्तर से ही आन्दोलन में लोगों की भागीदारी पर कई पाबंदियां लगाने की कोशिश कर रही है। राज्य में किसान बिलों के ख़िलाफ़ होने वाले हर प्रदर्शन को लगातार प्रशासनिक दबाव और सरकारी दमन का सामना करना पड़ रहा है। विगत 29 दिसंबर को राजधानी पटना में किसान संगठनों द्वारा राजभवन की ओर पैदल मार्च पर ज़ोरदार लाठीचार्ज और दमन इसका एक हालिया उदाहरण है।

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