इस सप्ताह : खेमकरण ‘सोमन’ की सात कविताएँ !

मजदूर निहार रहे थे

उस दिन
मजदूर निहार रहे थे अपनी पत्नियों को
पत्नियाँ समझ नहीं पाईं
आज इनको ये क्या हुआ

उस दिन
मजदूर निहार रहे थे
छोटी जवान होती अपनी लड़कियों को
लड़कियाँ भी समझ न पाईं
पिताओं को आज ये क्या हुआ
समझ न पाए मजदूरों के लड़के भी कुछ
मजदूर निहार रहे थे जब उन्हें

उस दिन
मजदूर निहार रहे थे
घरों में जरूरी सामान, खाने-पीने की चीजें
राशन कपड़े लत्ते बर्तन आदि
निहार रहे थे मजदूर
दिवंगत माताओं-पिताओं की फोटो
निहार रहे थे मजदूर,
ग्रुप फोटो में खुद की फोटो
परिवार में प्रत्येक सदस्यों की फोटो
निहार रहे थे मजदूर सबको

उस दिन
जाने लगे मजदूर जब काम पर
तो आँगन में पहुँच, निहारने लगे रूककर
अपने घर मकान आँगन-पेड़
निहारने लगे हाथों में पकड़े खाना

उस दिन
मजदूर समझ नहीं पा रहे थे
आज हमें ये क्या हुआ
या क्या होने वाला है आज

उस दिन
औद्योगिक इलाके में आठ मंजिला जर्जर इमारत गिरी
उस दिन गिर गए
सैकड़ों मजदूर भी लाश बनकर।


गन्ने अब खोई बन चुके हैं

गन्ने डाल दिए जाते हैं कोल्हू में
गन्ने देते हैं गाढ़ा मीठा रस

गन्ने डाल दिए जाते हैं फिर से
गन्ने हैं कि चूकते नहीं हैं
रस देने में

गन्ने डाल दिए जाते है फिर
गन्ने भी दे देते हैं अब अपना अंतिम बूंद

इतना हो जाने के बाद भी गन्ने
डाल दिए जाते हैं फिर से कोल्हू में
गन्ने अब खोई बन चुके हैं
टूट-टूट कर गिरने-बिखरने लगते हैं
छोटे-बड़े टुकड़ों में
खोई भी डाल दी जाती है अन्त में
भट्टी में या चूल्हे में

मजदूर भी
गन्ने ही होते हैं।


हमारे कदमों की नाप है अलग

हम लड़के हैं
हम जानते हैं हम हो गए हैं अब बड़े
हम जानते हैं बातें भी बड़ी-बड़ी

हम जानते हैं
हमारे कदमों की नाप है अलग
हम जानते हैं दहाड़ना
अच्छी तरह प्यार करना भी

हम जानते हैं
समाज की समस्याओं पर जोरदार बहस करना
विकास के लिए विभिन्न विषयों पर एक होना

हम जानते हैं
सहमतियों के बीच उजाला तलाशना
उफनती नदी पार करना
सूरज बनकर उजाला करना
बादल बनकर गरजना
और आसमान काला करना

हम जानते हैं यह भी कि कहाँ जरूरत है हमारी
कहाँ जरूरत है शिक्षा-स्वास्थ्य की
कहाँ जरूरत है रोटी-दाल की
कहाँ जरूरत है नमक की
कहाँ जरूरत है चमक-धमक की
कौन बेचता है पानी, कौन करवाता है दंगा
किसकी सोच है साम्प्रदायिक

हम लड़के सीख चुके हैं
पढ़ना-लिखना, जानना, समझना
और कुछ कहना

लेकिन
इतना हो चुकने के बाद भी
हम लड़के अभी सीख नहीं पाए हैं
अपना हक लेना-छीनना लड़-के

हम लड़-के!


चूक

फैक्ट्री के अन्दर
वजनी डाईयों में फँसकर
मजदूरों का पता नहीं चलता है
न ही उनकी चीखों का

टनों वजनी डाईयाँ कभी नहीं चूकतीं
चूक जाते हैं अक्सर
मजदूर ही।


जमीनें देख रही थीं

किसान देख रहे थे
केन्द्र और राज्य सरकारों की ओर

केन्द्र और राज्य सरकारें
देख रही थीं
राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की ओर

राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ देख रही थीं
किसानों की जमीनों की ओर

किसानों की जमीनें देख रही थीं
किसानों की ओर

किसान देख रहे थे
केन्द्र और राज्य सरकारों की ओर।


जहाँ से लौटता नहीं है कोई भी

रास्ते जाते हैं मंजिलों की ओर
मंजिले देती हैं सुख शान्ति और इज्जत

कभी-कभी रास्ते जाते हैं उधर भी
जिधर मंजिलें नहीं होती

जिधर मंजिलें नहीं होती
उधर होती हैं- भयानक खाइयाँ या ब्लैक हॉल
जहाँ से लौटता नहीं है कोई भी

इधर कुछ दिनों से उधर
जा रहे हैं बेरोजगार।


पटरी लाल है

आठ मई 2020 को
बहती हुईं नदियाँ भी स्वतः लाल हो गईं!
जब सुना उन्होंने
औरंगाबाद की दुखद घटना के बारे में

जब सुना
औरंगाबाद से मध्य प्रदेश तक
पैदल ही अपने घर जा रहे मजदूरों के बारे में
जो चालीस-पचास किलोमीटर चलने के बाद
थक-हारकर औरंगाबाद-जालना रेलवे पटरी पर
सो गए थे

फिर
उनकी आँखों की नींद
क्षण-क्षण गहरी होकर इस प्रकार गहराई कि
मालगाड़ी भी बिना देरी किए, बिना रहम,
उन सबके ऊपर से गुजरती चली गई

तमाशबीन भीड़ में
एक आदमी ने अचम्भित होकर कहा-
देखो ताजा खून! खून से पटरी लाल है!

मैंने कहा-
खून तो तुम्हारे अंदर भी है, लेकिन तुम तो कभी लाल नहीं हुए
यहाँ खड़े प्रत्येक आदमी के अन्दर ताजा खून हैं

लेकिन उनमें भी कोई लाल नहीं
देश में आम आदमी से लेकर खास आदमी
सबके अंदर ताजा खून हैं,
परन्तु उन्हें भी तो कभी लाल होते नहीं देखा!
जरा आसमान का चेहरा देखो!
उसके शरीर में खून नहीं फिर भी वह लाल है!

उसने मुझे ध्यान से निहारा
फिर दूर तक जाती पटरी को

अब वह समझ गया कि पटरी खून से नहीं
बल्कि आदमी गुस्से में लाल क्यों नहीं,
इसलिए लाल है!



खेमकरण ‘सोमन’
द्वारा श्री बुलकी साहनी,
प्रथम कुँज, अम्बिका विहार कॉलोनी, भूरारानी, वार्ड नम्बर-32,
रूद्रपुर, जिला ऊधम सिंह नगर, उत्तराखण्ड-263153

मोबाइल: 09045022156
ईमेल: khemkaransoman07@gmail.com


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