काले कृषि क़ानूनों के विरोध में क़ैद, जेल में किया अनशन

कोलकाता : जेल के भीतर भी प्रतिरोध जारी

कोलकाताः केंद्र सरकार के तीन नए विवादित कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के आंदलोन के समर्थन में कोलकाता की दमदम केंद्रीय जेल में बंद 10 कार्यकर्ताओं ने रविवार को सांकेतिक भूख हड़ताल शुरू की.इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बहरामपुर जेल के आठ कैदी सोमवार से भूख हड़ताल शुरू कर सकते हैं.

अधिकतर माओवादी मामलों में गिरफ्तार हुए इन कैदियों ने पत्र लिखकर भूख हड़ताल का ऐलान करते हुए केंद्र सरकार पर लॉकडाउन और महामारी का लाभ उठाकर कॉरपोरेट जगत को लाभ पहुंचाने के लिए कृषि कानून पारित करने का आरोप लगाया.

यह भी आरोप लगाया गया है कि इस कड़ाके की ठंड में किसान अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं. सरकार इस मामले को और पेचीदा करने का प्रयास कर रही है.कैदियों ने पत्र में कहा, ‘केंद्र सरकार को किसानों की ओर नरम रुख दिखाना चाहिए.’ इन कैदियों में अखिल चंद्र घोष, अनूप रॉय और आशिम भट्टाचार्य हैं.

लोकतांत्रिक अधिकारों की सुरक्षा संघ (एपीडीआर) के उपाध्यक्ष रंजीत सुर ने कहा, ‘यह उनके विरोध करने का अधिकार है, जिसके लिए हमने अपना समर्थन दिया है. हम यह सुनिश्चित करने के लिए जेल प्रशासन के संपर्क में है ताकि इन कैदियों क उपवास तोड़ने के लिए कोई दबाव नहीं है. आंदोलन कर रहे किसानों के समर्थन में वे रविवार सुबह छह बजे से कल तक उपवास कर रहे हैं. हम नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं. इन्हें रद्द किया जाना चाहिए.’

सुर ने कहा, ‘यह राज्य और केंद्र सरकारों की तुच्छ राजनीति है, जिसका नुकसान आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है. राज्य सरकार, केंद्र सरकार की कुछ योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं कर रही, जिससे किसान न्यूनतम लाभ से वंचित हैं. दूसरी तरफ केंद्र सरकार नए कानूनों के साथ किसानों के साथ अन्याय कर रही है. हर योजना में वे प्रधानमंत्री को बढ़ावा दे रही है, जो सिर्फ तुच्छ राजनीति है.’

इस बीच टीएमसी नेता उज्जवल बिस्वास ने कहा कि वह भूख हड़ताल करने के कैदियों के फैसले का नैतिक रूप से समर्थन कर रहे हैं.बिस्वास ने कहा, ‘मुझे लगता है कि हर किसी का प्रदर्शन करने का अधिकार है. मैं नैतिक रूप से उनका समर्थन कर रहा हूं. कृषि कानून किसान विरोधी हैं.’

उन्होंने कहा, ‘जहां तक केंद्रीय योजनाएं बंगाल में क्रियान्वित नहीं होने का सवाल है तो मैं कहूंगा कि जिन भी योजनाओं के बारे में बात की जा रही है, उन्हें पहले ही बंगाल में क्रियान्वित किया जा चुका है.’

द वायर से साभार

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