अब आंदोलन के ख‍िलाफ सरकार के प्रचार युद्ध का भी जवाब देंगे क‍िसान

अपनी बात दुन‍िया तक पहुंचाने के ल‍िए सोशल मीड‍िया बना सहारा

कृष‍ि ब‍िलों के ख‍िलाफ लड़ रहे क‍िसान आंदोलन के खि‍लाफ प्रचार युद्ध लड़ने के ल‍िए भी तैयार हो चुके हैं। अपनी बात दुन‍िया तक पहुंचाने के ल‍िए सोशल मीड‍िया पर सक्र‍ियता बढ़ा दी गई है। ट्विटर पर अकाउंट (@kisanektamorcha) खेलसबुक पर भी एक पेज बना है। खोला है, फेसबुक पर पेज बना है, यूट्यूब पर भी पेज बनाया गया है। इनके अलावा अन्‍य सोशल मीड‍िया प्‍लैटफॉर्म पर भी क‍िसानों की बातें रखी जाएंगी। सरकार और सत्‍ताधारी भाजपा ने क‍िसान आंदोलन के ख‍िलाफ समर्थन जुटाने के ल‍िए बड़ी पहल की है। तमाम मंत्र‍ियों, नेताओं को सभाएं संबोध‍ित करने, प्रेस कॉन्‍फ्रेंस करने और क‍िसान चौपाल लगाने में लगाया गया है।

टीवी पत्रकार रवीश कुमार ने भी अपने फसबुक पोस्‍ट में ल‍िखा है क‍ि सरकार ने किसान आंदोलन के ख़िलाफ़ भयंकर प्रचार युद्ध शुरू कर दिया है। किसान सम्मेलनों और प्रेस कांफ्रेंस के ज़रिए क़ानून का प्रचार होगा। जल्दी ही सुरक्षा का एंगल किसान आंदोलन के आस-पास खड़ा कर दिया जाएगा। चीन और पाकिस्तान का नाम लेकर। किसान घिर गए हैं। ऊपर से ठंड और सामने से प्रोपेगैंडा। इस बीच किसान मोर्चा ने भी सरकार के प्रचार युद्ध का सामना करने की तैयारी की है। आईटी सेल से लड़ना आसान नहीं है। गोदी मीडिया की ताक़त एक ऐसी दीवार है जिसके सामने जनता का कोई वर्ग टिक नहीं पाएगा। रवीश कुमार ने किसानों की लड़ाई को शाहीन बाग़ की तरह बताया है, ज‍िसमें धरना तो है लेकिन उसके बाद कुछ नहीं।

रवीश कुमार की ट‍िप्‍पणी पर कई लोग तरह-तरह केे कमेंट कर रहे हैं। Aniruddha Yadav ने ल‍िखा- सर कभी कभी तो मन करता है कि इस सरकारी नौकरी को लात मारकर आ जाउँ सड़क पे। हर तरह से ये तानाशाह सरकार इतनी मजबूत दिखाई दे रही है कि अब सीधी लड़ाई ही एक मात्र उपाय दिख रहा है।

Prem Kumar की राय में- कटु सत्य यही है। विपक्षी दलों में भी अगर लोकतंत्र को जिंदा रखने, जन सरोकारों से वास्ता साबित करने का सिर्फ एक तरीका रह गया है और वो है संसद एवं विधानसभाओं से एक साथ सभी विपक्षी पार्टियों के निर्वाचित प्रतिनिधि इस्तीफा दे और सड़क पर उतरे। वरना जब लोकतंत्र ही खत्म हो जाएगा तो इन पार्टियों का भविष्य भी जनता के अधिकारों की तरह खत्म हो जाएगा। जनता के लिए न सही लोकतंत्र व अपने अस्तित्व को बचाने के लिए इनके पास भी अब यही एक रास्ता है।

Faizanul Haque ने कहा- महंगाई की मार,कालाबाज़ारी से ब्यापार,चोरी-छुपके जनता पर प्रहार-अबकिबार दलालो की सरकार फिर आत्महत्त्या बढ़ेगा सरकार। गरीब,मज़दूर,मजबूर,किसान और जवान पर ज़ुल्म ना करो सरकारों के सरकार। अफ़सोस की किसान पे हो रहा है प्रहार दिनके उजाले में और सब तमाशा देखने में मग्न है और सच-हक़ से कोसो दूर।

Irfan Kazmi ने ल‍िखा- यह किसान वास्तव में अपने लिये नही बल्कि देश के गरीब वर्ग के लिये लड़ रहे है। सरकार जनता के साथ कितना बड़ा छल कर रही है यह शायद लोगो को तब पता चलेगा जब रोटी के लिये तरसने का नम्बर आ जायेगा अफसोस तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। लोग केवल जीवित रहने को ही विकास समझने लगेंगे और अपने पुर्वजो की खुशहाली की कहानियां सुनाई जायँगी। तब भी सरकार हम पर ही इल्ज़ाम लगायेगी। खुद सोचिये की जनतक आलू पूंजीपतियों के पास था 50 रुपये किलो था जैसे ही किसानों के पास आया 20 रुपया किलो हो गया यही फर्क है किसानों और पूंजीपतियों के बाजार का। लोग इसे समझ जाय तो ठीक अन्यथा ऊपर वाला ही हमारा मालिक है।

Sandeep Sharma बोले- मीडीया नहीं यह लश्कर-ए-मीडीया है। लोग जाग जाएं वर्ना देर हो जाएगी ।धन बल और मीडीया के सहारे चलने वाली सरकार भेड़ बकरियों की तरह जनता की बली दे रही है। 20 से ज्यादा लोग किसान आंदोलन में शहीद हो चुके हैं और साहेब दाड़ी बढ़ा कर हठ किए बैठे हैं

Tushar Shriwastava ने राय दी- अगर नोबडी जी ने कृषि बिल वापिस ले लिया तो अम्बानी अड़ानी भी प्रधानमंत्री वापिस ले लेंगे। साला इतने गरीब को ऐसे पद पर पहुँचाओ ही नही की अमीरों का कुत्ता बन कर रह जाए।

जनसत्ता से साभार

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