कोरोना : भारत मे 29 करोड़ बच्चों की शिक्षा प्रभावित

बच्चों का भविष्य अंधकार में : केवल स्कूल ही क्यों बंद?

कोरोना महामारी ने दुनिया भर में स्कूलों को बंद कर दिया है। अकले भारत में इसने 29 करोड़ बच्चों की शिक्षा को प्रभावित किया है। पहले से ही 60 लाख बच्चे स्कूल से बाहर थे। आर्थिक तबाही बढ़ने के चलते कई परिवारों की आर्थिक असुरक्षा के कारण बच्चों की पढ़ाई छोड़ने से यह संख्या और बढ़ सकती है। ब्रुकिंग्स के एक अध्ययन के अनुमानों के मुताबिक, दस करोड़ से ज्यादा लोग अत्यंत गरीबी की अवस्था में पहुंच गए हैं और उनमें से एक बड़ा हिस्सा भारत में है। विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, दोनों के मुताबिक दुनिया ने पिछले अस्सी वर्षों में अर्थव्यवस्था में इस तरह का संकुचन नहीं देखा था। भारत की जीडीपी चालू वर्ष में 10 फीसदी से ज्यादा घटने की आशंका है।

इसके कारण नौकरियां जाएंगी और बेरोजगारी बढ़ेगी। कई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को वेतन कम देने का फैसला किया है। आर्थिक गतिविधियों की इस तीव्र कमी ने बच्चों की शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। स्कूलों में नए बच्चों के दाखिला पर महामारी का तत्काल प्रभाव पड़ा है। असर के ताजा अध्ययन के अनुसार, एक सर्वेक्षण से पता चला है कि कई छोटे बच्चों ने स्कूलों में दाखिला नहीं करवाया है। छह से दस आयु वर्ग के स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों के आंकड़ों में तेज उछाल देखा गया है, 2018 में यह आंकड़ा 1.8 फीसदी था, जो 2020 में बढ़कर 5.3 फीसदी हो गया है। और 16 साल तक के सभी बच्चों में चार से 5.5 फीसदी बच्चे स्कूल से बाहर हैं। कुछ हद तक इसका कारण यह भी है कि कोविड के चलते नामांकन प्रक्रिया अब भी पूरी नहीं हुई है।

लेकिन मुख्य रूप से इसका कारण यह हो सकता है कि माता-पिता ने वायरस के डर से या पढ़ाई का खर्च वहन करने की असमर्थता के चलते अपने बच्चों को घर पर रखने का फैसला किया हो। यहां तक कि दुनिया के अन्य विकासशील क्षेत्रों में भी स्थिति इसी तरह है। नौकरियां जाने और वेतन कटौती के चलते परिवारों की आर्थिक असुरक्षा ने वैश्विक स्तर पर बच्चों को मुसीबत में डाल दिया है। अधिकांश विद्यालयों द्वारा शीघ्रता से अपनाए गए शिक्षा के वैकल्पिक तरीकों ने निम्न आय वर्ग के परिवार के छात्रों के लिए गंभीर समस्याएं पैदा कर दी हैं। इस तरह की समस्याएं दुनिया भर में हैं।

असर के अध्ययन और आईएमएफ की रिपोर्ट, दोनों इस तथ्य को उजागर करते हैं कि शिक्षण के लिए स्मार्टफोन की उपलब्धता अपर्याप्त है, इंटरनेट कनेक्टिविटी कमजोर है तथा टीवी, रेडियो, भेजी गई शिक्षण सामग्री जैसे अन्य साधनों का सहारा लिया गया है। माता-पिता की शिक्षा के स्तर के आधार पर छात्रों के सीखने के स्तर में परिवर्तन होता है। लेकिन ऑनलाइन शिक्षण का भारत में बहुत सीमित प्रभाव पड़ा है। असर का सर्वे बताता है कि 38.2 फीसदी बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं है।

निम्न आय वर्ग के बच्चों की शिक्षा महामारी से बहुत बुरी तरह प्रभावित हुई है। पहले तो स्मार्टफोन तक उनकी सीमित पहुंच है और उनमें से लगभग चालीस प्रतिशत आबादी ऐसी है, जिनके पास स्मार्टफोन नहीं है। टीवी, रेडियो और पाठ्य पुस्तकों पर निर्भरता भी पहुंच का यही सवाल खड़ा करती है। लेकिन चूंकि वे पारंपरिक पाठ्यपुस्तक के जरिये पढ़ने वालों में से होते हैं, इसलिए घर पर उपलब्ध सीमित समर्थन के साथ उनके सीखने का स्तर पहले की तुलना में खराब होने की आशंका है। इसका एक संकेत इस आंकड़े से उपलब्ध है कि सर्वेक्षण सप्ताह के दौरान लगभग 30 फीसदी छात्रों ने कोई पढ़ाई नहीं की। इसके अलावा मात्र 30 फीसदी छात्रों को ही स्कूल से कुछ शिक्षण सामग्री मिली। इसकी बहुत कम संभावना है कि निर्धन परिवारों के बच्चे उनमें होंगे। हालांकि असर ने महामारी के मद्देनजर शिक्षण स्तर का सर्वे नहीं किया, लेकिन पहले से ही शिक्षण का निम्न स्तर संभवतः उचित सहयोग के अभाव में और खराब हुआ होगा। इसे सुधारने की आवश्यकता होगी।

बच्चों को स्कूल लाने और शिक्षण के स्तर में सुधार के लिए कई उपायों की जरूरत होगी। पहला, महामारी के कारण बड़ी संख्या में बच्चे घर से काम कर रहे हैं। पहले से ही साठ लाख बच्चे स्कूलों से बाहर थे, इनमें दस से पंद्रह लाख बच्चे और जुड़ेंगे। इन सभी को स्कूल में लाने के लिए काम शुरू होना चाहिए। यहां तक कि सामान्य दिनों में भी यह मुश्किल कार्य है। हमें सभी बच्चों के लिए दस साल की शिक्षा का लक्ष्य रखना चाहिए। दूसरी बात, इंटरनेट, स्मार्टफोन और लैपटॉप तक पहुंच इसकी आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है। कई बच्चे ऑनलाइन शिक्षा की सुविधाओं का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं, जिससे स्पष्ट है कि ये चीजें अपर्याप्त हैं। खबरों के मुताबिक, लैपटॉप नहीं होने के कारण कुछ मेधावी लड़कियों ने इसके चलते आत्महत्या तक कर ली। कई बच्चे किसी खास विषय में काफी प्रतिभावान होते हैं, उन्हें समर्थन देने की जरूरत होगी।

तीसरी बात, दूरस्थ शिक्षा प्रणाली का उपयोग जल्दबाजी में बिना तैयारी के किया गया। इससे बहुत मूल्यवान अनुभव प्राप्त हुआ है। अब इस पर आगे काम होना चाहिए। शिक्षण में सुधार का तरीका ढूंढने और वंचित बच्चों तक इसे पहुंचाने का तरीका अब तक नहीं ढूंढा गया है। बेशक टीवी और रेडियो अच्छे साधन हैं, लेकिन हमें दूसरे रास्ते तलाशने होंगे। चौथी बात, बच्चों के सीखने का स्तर देश में लगातार खराब रहा है। असर की सभी रिपोर्टें बार-बार इसे दोहराती हैं। पांचवीं कक्षा के कई बच्चे दूसरी कक्षा के सवाल हल करने या किताबें पढ़ने में सक्षम नहीं हैं। हम अब बच्चों के ज्ञान और सीखने में सुधार के लिए दूरस्थ शिक्षा के अनुभव का उपयोग कर सकते हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है। नई शिक्षा नीति अगले सत्र से या उसके बाद लागू हो सकता है। इसका मतलब तीन वर्ष से ज्यादा उम्र के बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा पर जोर देना है। सरकार को जल्दी से इसके लिए योजना बनानी चाहिए और काम शुरू करना चाहिए। पांचवीं बात, हालांकि नई शिक्षा नीति की घोषणा हो चुकी है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि कब से यह चालू होगी। सीबीएसई को इस पर काम शुरू करना चाहिए।

अमर उजाला से साभार

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