चिली की जनता को जुझारू संघर्ष से मिली एक बड़ी कामयाबी

मेट्रो किराया बढ़ोत्तरी के खिलाफ संघर्ष से संविधान परिवर्तन तक

बीते 25 अक्टूबर को लातिन अमेरिकी देश चिली में हुए जनमत संग्रह में नया संविधान बनाने की माँग को भारी बहुमत मिला। पिछले साल अक्टूबर में चिली की सड़कों पर उतरे जनसैलाब ने विगत 47 सालों से चली आ रही संविधान तानाशाही मॉडल के खिलाफ़ मतदान करके उसे अलविदा कह दिया है। नया संविधान बनाने की माँग इसी जन आंदोलन से उठी थी।

यह आंदोलन मेट्रो किराये में बढ़ोतरी के विरोध में शुरू हुआ था, लेकिन बाद में बड़े बदलाव की माँग उससे जुड़ गई और यह संविधान परिवर्तन के लिए जनमत संग्रह के निर्णय तक पहुँची। रविवार (25 अक्तूबर, 2020) को चिली में हुए जनमत संग्रह में नया संविधान बनाने के पक्ष में 78 प्रतिशत मतदान हुआ।

जनांदोलनों ने नव-उदारवादी नीतियों को दी चुनौती

मेट्रो किराए के ख़िलाफ़ शुरू यह आंदोलन पिछले नौ साल में हुए दो बड़े आंदोलनों की कड़ी में शामिल हो गया। ये आंदोलन मुफ्त शिक्षा और सरकारी कोष से पेंशन के भुगतान की माँग के समर्थन में हुए थे। इन तीनों जन आंदोलनों ने देश में पिछले चार दशक के दौरान अपनाई गई नव-उदारवादी नीतियों को चुनौती दी। इसी के साथ जनविरोधी संविधान बदलने की माँग आंदोलन का केंद्रीय मुद्दा बन गया।

चिली: मेट्रो किराया बढ़ोत्तरी के खिलाफ संघर्ष बना संविधान परिवर्तन का रास्ता

नए संविधान के लिए जनमत संग्रह के दो मुद्दे

पिछले साल शुरू होकर इस साल मार्च तक चले जबरदस्त जन आंदोलन के बाद चिली की दक्षिणपंथी राष्ट्रपति सिबेस्टियन पिनेरा की सरकार नए संविधान के लिए जनमत संग्रह कराने पर राजी हुई थी। लेकिन कोरोना महामारी के कारण उसमें देर हुई।

जनमत संग्रह दो मुद्दों पर हुआ। पहला मुद्दा था देश को नया संविधान चाहिए। इस योजना के तहत नई संविधान सभा के सभी 155 सदस्य आगे होने वाले स्थानीय चुनाव के दौरान सिविल सोसायटी से चुने जाएंगे।

दूसरा मुद्दा था कि नया संविधान बनाने के लिए संपूर्ण या मिश्रित संविधान सभा गठित की जाए। धनी-मानी और नव-उदारवादी तबके के लोग 172 सदस्यों की मिश्रित संविधान सभा चाहते थे, जिसमें आधे सदस्य मौजूदा सांसद होते। इससे वर्तमान सत्ताधारी तबकों को एक निर्णायक स्थान मिल जाता।

वामपंथी संगठन संपूर्ण संविधान सभा का गठन चाहते थे। जनमत संग्रह का नतीजा वामपंथी ताकतों की माँग के मुताबिक आया। जनमत संग्रह में सत्तर फीसदी से से ज्यादा लोगों ने नए संविधान और संपूर्ण रूप से नई संविधान सभा के पक्ष में मतदान किया।

मेट्रो किराये में बढ़ोत्तरी के खिलाफ शुरु हुआ था आन्दोलन

पिछले साल लैटिन अमेरिकी देश चिली में अक्तूबर के तीसरे सप्ताह में मेट्रो किराया बढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ जबर्दस्त विरोध-प्रदर्शन शुरू हुआ था। दबाव में सरकार ने मेट्रो किराये में बढ़ोत्तरी के फ़ैसले को वापस ले लिया, इसके बावजूद सरकार के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन नहीं रुका। मुद्दा मेट्रो किराया से आगे बढ़कर आर्थिक गैरबराबरी के ख़िलाफ़ तब्दील हो गया।

चिली के लाखों लोग सडकों पर उतारकर आर्थिक गैरबराबरी के खिलाफ़ प्रदर्शन तेज कर दिया। 26 अक्टूबर, 2019 को राजधानी सैंटियागो में क़रीब 10 लाख लोगों ने शांतिपूर्ण मार्च निकालते हुए सरकार के खिलाफ़ जोरदार विरोध दर्ज़ करवाया था।

धीरे-धीरे विरोध-प्रदर्शन का दायरा बढ़ता गया और प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा के इस्तीफे की माँग की। उसके बाद सत्ता के दमन का विकट दौर चला। इस व्यापक जनआंदोलन में 34 लोगों की मौत हो गई, हजारों लोग घायल हुए, 400 से ज़्यादा लोग स्थायी तौर पर विकलांग हो गए। सात हज़ार से ज़्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया।

अक्तूबर, 2019 से शुरू होकर मार्च 2020 तक चले जोरदार जन आंदोलन से पूरे देश में उथल-पुथल मच गया था। ऐसे हालत में राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा की सरकार को नए संविधान के लिए जनमत संग्रह कराने की हामी देनी पड़ी थी।

1973 में हुए खूनी तख्ता पलट से तानाशाही बरकरार

1971 में चिली में समाजवादी व जनप्रिय नेता सल्वादोर अलेंदे राष्ट्रपति चुने गए थे। उन्होंने देश में समाजवादी नीतियों पर तेजी से अमल किया। ज़हिरातौर पर इससे देशी धनिकों सहित अमेरिकी साम्राज्यवादियों की भी मुश्किलें बढ़ गईं थीं।

चिली के राष्ट्रपति सल्वाडोर आइयेंदे (1908-1973)
चिली के समाजवादी व जनप्रिय नेता राष्ट्रपति सल्वाडोर अलंदे (1908-1973)

ऐसे में अमेरिका अपनी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए के संरक्षण में सेना द्वारा खूनी तख्ता पलट करवाया। तत्कालीन सेनाध्यक्ष तानाशाह ऑगस्तो पिनोशे की अगुवाई में चिली की सेना ने 11 सितंबर, 1973 को एक ख़ूनी फौजी अभियान के तहत राष्ट्रपति भवन ‘ला मोनेदा’ पर फैजी धावा बोल दिया, भारी बमबारी व गोलाबारी के साथ सल्वादोर अलेन्दे और उनके सैकड़ों सहयोगियों का कत्ल कर दिया गया।

चिलीः एक सैनिक विद्रोह की कहानी - BBC News हिंदी
तानाशाह ऑगस्तो पिनोचे, जो खूनी तख्तापलट कर खुद देश का राष्ट्रपति बन गया था

जनता द्वारा चुने गए राष्ट्रपति और उनकी जनवादी सरकार को खुनी दरिया में डुबोकर सैनिक तानाशाह ऑगस्तो खुद चिली की सत्ता पर काबिज हो गया।

तख़्तापलट के बाद पिनोशे ने भीषण दमन चक्र की शुरुआत की, चिली के पूँजीपतियों, भूस्वामियों और अमेरिकी बहुराष्‍ट्रीय निगमों के हित में आर्थिक नीतियाँ लागू कीं। नतीजतन आम मेहनतकश जनता की ज़िन्दगी बदतर बनती गयी।

यह दौर मानवाधिकारों के घोर हनन के साथ-साथ नव उदारवादी नीतियों पर तेजी से अमल का शुरूआती दौर था। उसी समय मौजूदा संविधान लागू किया गया था, जो पिछले एक दशक से जनता के आक्रोश का निशाना बना हुआ था।

सत्ता बदला लेकिन बागडोर अमेरिकी हाथों में

ऑगस्तो पिनोशे की सैनिक तानाशाही सत्रह साल तक चली। 1989 में एक जनमत संग्रह के बाद एक तथाकथित नागरिक सरकार अस्तित्व में आयी जिसकी बागडोर भी अन्तत: अमेरिकी साम्राज्यवादियों के ही हाथों में थी। अमेरिकी साम्राज्यवादियों और मुनाफाखोरों के हितपोषण में ही नए सत्ताधारी भी जुटे रहे, इससे देश में आम जनता कि बदहाली और ग़ैरबराबरी लगातार तेज होती गई। जिससे पैदा आक्रोश से जनता के नए संघर्षों ने गति पकड़ी।

अक्टूबर, 2019 में उमड़ा जनसैलाब

लातिन अमेरिका में नए बदलावों की शुरुआत

पिछले हफ्ते दक्षिण अमेरिकी देश बोलिविया में सोशलिस्ट पार्टी की बड़ी जीत हुई थी। पिछले साल तख्ता पलट से सत्ता से बाहर हुई पूर्व राष्ट्रपति इवो मोरालेस की मूवमेंट टूवार्ड्स सोशलिज्म पार्टी फिर से वहाँ सत्ता में लौट आई है। उसके तुरंत बाद चिली में आए जनमत संग्रह के नतीजे को लैटिन अमेरिका में नए बदलाव का सूचक माना जा रहा है।

पहले बोलिविया और अब चिली, दक्षिण अमेरिका में पूँजीवादी सुपर पॉवर संयुक्त राज्य अमेरिका समर्थित दक्षिणपंथ के लिए बड़ा झटका है। हालाँकि ये परिवर्तन इसी व्यवस्था के भीतर जुझारू बदलाव जैसे हैं, जिससे आम मज़दूर आवाम कि मुक्ति के रूप में देखना एक भ्रम ही होगा, जैसाकि विगत वर्षों में लातिन अमेरिकी देशों में हो चुका है। फिर भी यह आम जनता के जुझारू संघर्ष का प्रतीक और उसके बदलाव की आकांक्षा का दर्पण है।

फिलहाल वर्त्तमान आन्दोलन के साथ संविधान बदलने का रास्ता साफ हो गया है। हालाँकि व्यवस्था परिवर्तन के लिए, मेहनतकश वर्ग की आम मुक्ति के लिए अभी एक बड़े व निर्णायक संघर्ष की दरकार है, फिर भी यह परिवर्तन चिली की मेहनतकश जनता के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है।

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