मज़दूर विरोधी लेबर कोड : अप्रैल से लागू करने में जुटी मोदी सरकार

तेजी से बन रही हैं श्रम संहिताओं की नियमावलियाँ

अभी संसद में पारित 3 श्रम संहिताएँ कानूनी रूप ले भी नहीं पाई हैं, लेकिन मोदी सरकार इन संहिताओं की नियमावली (रूल्स) का मसौदा भी तैयार करने में जुट गई है। जबकि मज़दूरी श्रम संहिता की नियमावावली पहले से तैयार। तमाम विरोधों के बावजूद केंद्र सरकार की ओर से लाए गए मज़दूर विरोधी 4 श्रम संहिताएँ 1 अप्रैल 2021 से एक साथ लागू हो सकते हैं।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लेबर सेक्रेटरी अपूर्वा चंद्रा ने विगत दिनों चारो श्रम संहिताएँ (लेबर कोड) 1 अप्रैल, 2020 से लागू होने कि बात कही है। संसद के बीते सत्र में ही औद्योगिक सम्बन्ध संहिता (इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड), सामाजिक सुरक्षा संहिता (सोशल सिक्योरिटी कोड), व्यावासिक संरक्षण स्वास्थ्य एवं कार्यदशाओं कि संहिता (ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ ऐंड वर्किंग कंडिशन कोड) को मंजूरी दी है। जबकि मजदूरी संहिता (वेज कोड) को 2019 में ही मंजूरी मिल गई थी।

ड्राफ्ट रूल्स (नियमावली) का काम शुरू

संवाददाताओं से बातचीत में चंद्रा ने कहा कि हमने हाल ही में संसद से पास हुए तीनों श्रम संहिताओं को लागू करने के लिए ड्राफ्ट रूल्स (नियमावली) का काम शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि नवंबर के मध्य तक नियमावली के मसौदे जारी करने की कोशिश रहेगी। सुझाव के लिए 45 दिन का समय दिया जाएगा। इसके बाद चारों कोड को 1 अप्रैल से लागू करने के लिए अध्यादेश जारी किया जाएगा।

श्रम मंत्री ने दिसंबर से लागू करने की बात कही थी

केन्द्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने पिछले महीने कहा था कि चारों लेबर कोड को दिसंबर तक लागू किया जा सकता है। पिछले साल श्रम मंत्री ने मज़दूरी श्रम संहिता को लागू करने के लिए नियमावली का मसविदा जारी किया था। लेकिन चारों श्रम संहिताओं को एक साथ लागू करने के लिए मंत्रालय ने मसविदा वापस ले लिया था। चारों श्रम संहिताओं के नियमों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए मंत्रालय इन्हें एक साथ लागू करना चाहती है।

कानून लागू होने के लिए नियमावली ज़रूरी

कोई भी कानून नियमावली का शासनादेश जारी होने के बाद ही लागू होता है। नियमों के तहत शुरुआत में नियमावली का मसविदा जारी होते हैं, उसपर सुझाव लिए जाते हैं, उसके आधार पर नियमावली को अंतिम रूप देकर शासनादेश जारी होता है और कानून अमली रूप लेता है।

ये महज औपचारिकताएँ हैं। मोदी सरकार श्रम संहिताओं पर भी लोगों के सुझाव आमंत्रित किए, लेकिन मज़दूरों के सारे सुझाव कूड़ेदान में डालकर मालिकों के मनमुताबिक उसे पारित कर दिया। नियमावली में भी यही होना है।

44 श्रम क़ानून ख़त्म, अब 4 श्रम संहिताएँ

मोदी सरकार ने पूँजीपतियों से किये गये वायदों के अनुसार तमाम मज़दूर विरोधी क़दम उठाए। इनमें सबसे प्रमुख हैं लंबे संघर्षों के दौरान हासिल श्रम कानूनों को मालिकों के हित में बदलना।

जिसका सीधा मतलब है बेहद सस्ते दाम पर मज़दूर उपलब्ध कराना, स्थाई प्रकृति के रोजगार को समाप्त करके फिक्स्ड टर्म करना, कौशल विकास के बहाने फोक़ट के मज़दूर नीम ट्रेनी भरती करना आदि।

इसीलिए केन्द्र सरकार लम्बे संघर्षों के दौरान हासिल मौजूदा 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को खत्म करके 4 संहिताओं में बदलने में सक्रीय रही। ये संहिताएं हैं- मज़दूरी पर श्रम संहिता, औद्योगिक संबंधों पर श्रम संहिता, सामाजिक सुरक्षा व कल्याण श्रम संहिता तथा व्यवसायिक सुरक्षा एवं कार्यदशाओं की श्रम संहिता।

क्यों हैं ये मज़दूर विरोधी श्रम संहिताएँ

1- औद्योगिक संबंध संहिता 2020

बड़े ही चालाकी से मोदी सरकार ने औद्योगिक श्रम संहिता 2019 को वापस लेकर उससे भी खतरनाक औद्योगिक संबंध श्रम संहिता 2020 जारी किया और संसद के दोनों सदनों से पारित करा लिया। ये मज़दूर जमात के लिए सबसे खतरनाक है। नए प्रावधानों में जिस कारखाने में 300 मज़दूरों से कम मज़दूर कार्यरत होंगे वहाँ छँटनी, बंदी, लेऑफ़ की मालिकों को खुली छूट मिल गई।

इसके अलावा एक खतरनाक मामला फिक्सड टर्म यानी नियत अवधि के रोजगार का है। इस औद्योगिक संहिता में फिक्सड टर्म को पूरी तरह से कानूनी मान्यता दी गई है साथ ही जो स्थाई श्रमिक हैं उन्हें भी नियत अवधि में बदले जाने का प्रावधान कर दिया गया है। इस तरीके से ‘हायर एंड फायर’ यानी जब चाहो रखो, जब जाओ निकाल दो की पूँजीपतियों की माँग को पूरा कर दिया है।

इस संहिता में एक और जो सबसे बड़ा हमला है वह ट्रेड यूनियन अधिकारों पर है। मज़दूरों के लिए यूनियन बनाना, हड़ताल करना आदि असंभव स्तर तक कठिन बना दिया गया है। साथ ही हड़ताल को गैरकानूनी घोषित करके भारी जुर्माने या जेल का प्रावधान कर दिया गया है।

हड़ताल के लिए अब 60 दिन यानी 2 महीने की नोटिस देने की अनिवार्यता बनाई गई है। यही नहीं संराधन वार्ता के दौरान हड़ताल प्रतिबंधित होगा और वार्ता समाप्त होने के बाद भी 7 दिन तक हड़ताल नहीं की जा सकती है। प्रबन्धन को किसी भी एक मज़दूर से समझौता कर लेने की भी छूट मिल गई है।

2- व्यवसायिक संरक्षण एवं कार्य दिशा संबंधी संहिता

इसमें कारखाने की परिभाषा ही बदल दी गई है। अब बिजली से इस्तेमाल न होने वाले कारखानों में 40 मज़दूर और बिजली संचालित कारखानों में 50 मज़दूर से कम वाले कारखानों में श्रम कानून के तमाम प्रावधान लागू ही नहीं होंगे। इसके साथ ही साथ यह संहिता ठेकेदारी प्रथा को और तेजी से बढ़ावा देती है। 50 मज़दूरों वाले कारखानों में ठेकेदारों के लिए कोई नियम-कानून नहीं रह जाएगा।

3- समाजिक सुरक्षा एवं कार्यदशाओं पर श्रम संहिता

इस संहिता के तहत ईएसआईसी और ईपीएफओ की जमा राशि को शेयर में उतारने का रास्ता साफ़ होगा। सुरक्षा के बड़े दावों के बीच असुरक्षा और बढेगी।

4- मज़दूरी श्रम संहिता

पूर्व में पारित और कानूनी रूप ले चुके वेतन श्रम संहिता में न्यूनतम वेतन तय करने के मानदंडों को ही समाप्त कर दिया गया है। पीस रेट को बढ़ावा देने के साथ आधे या घंटे के आधार पर भी काम कराने व मज़दूरी देने का क़ानून बना है। काम के घंटे 12 करने और विशेष स्थितियों में 16 घंटे भी काम कराने तक की छूट दे दी गई है।

मोदी सरकार की पक्षधरता साफ, सोचना मज़दूरों को है

मोदी सरकार जितनी तेज गति से देशी-विदेशी मुनाफाखोरों के हित में मज़दूरों को अधिकार विहीन व बंधुआ बना रही है, उससे सरकार की मालिकों के प्रति पक्षधरता दिन के उजाले की तरह साफ़ है। लेकिन मज़दूरों के एक हिस्से के बीच अभी भी मोदी को लेकर भ्रम कायम है, बल्कि यह अंधभक्ति की सीमाओं को भी लाँघ चुकी है।

मज़दूर साथियों के लिए यह अबतक का सबसे विकट दौर है, इसे समझना होगा! उन्हें राष्ट्र-धर्म के जुनूनी माहौल से बहार निकलना होगा और संघर्ष को सही दिशा में आगे बढ़ा रही ताक़तों के साथ कन्धा मिलाना होगा!

अब लड़ाई आर-पार कि है!

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