26 नवंबर के देशव्यापी हड़ताल को सफल बनाओ, उसे निरंतर, जुझारू व निर्णायक संघर्ष में तब्दील करो!

मासा के ऑनलाइन कन्वेंशन में प्रस्ताव पारित, 2 माह के ‘मज़दूर संघर्ष अभियान’ की शुरुआत

18 अक्टूबर को मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) के ऑनलाइन कन्वेंशन में केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर 26 नवंबर 2020 को आहूत अखिल भारतीय आम हड़ताल को सक्रिय समर्थन देने की घोषणा हुई और मज़दूर वर्ग पर बढ़ते हमलों के खिलाफ निरंतर, जुझारू व निर्णायक आंदोलन में इसे तब्दील करने का आह्वान किया गया। मासा ने 18 अक्टूबर से 18 दिसंबर, 2020 तक 2 माह के मज़दूर संघर्ष अभियान के दूसरे चरण की शुरुआत के साथ मज़दूर वर्ग को नए सिरे से जागृत व गोलबंद करने की पहल ली है।

ज्ञात हो कि मज़दूर वर्ग पर बढ़ते हमलों, लंबे संघर्षों के दौरान हासिल श्रम कानूनी अधिकारों को छीनने, 44 श्रम कानूनों के बदले 4 श्रम कोड लाने, सार्वजनिक सरकारी उपक्रमों को बेचने, निजीकरण, बेइंतहां छँटनी-बेरोज़गारी, भयावह महँगाई, प्रवासी व असंगठित मज़दूरों के जीवन-आजीविका के गंभीर संकट, बिगड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा, जातिगत हिंसा व धार्मिक नफ़रत, जनवादी अधिकारों पर तीखे हमलों आदि के खिलाफ मासा ने 9 जुलाई से 9 अगस्त, 2020 तक एक माह के ‘मज़दूर संघर्ष अभियान’ का पहला चरण चलाया था।

लेकिन मोदी सरकार की हठधर्मिता तथा देश की मेहनतकश जमात पर हमले और तेज होते जाने को देखते हुए मासा ने अब 2 महीने के ‘मज़दूर संघर्ष अभियान’ को चलाने का फैसला लिया है। अभियान की शुरुआत 18 अक्टूबर 2020 को ऑनलाइन कन्वेंशन के द्वारा की गई। काकोरी कांड शहीदी दिवस 19 दिसंबर, 2020 को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के साथ यह चरण पूरा होगा।

इस कन्वेंशन में  मासा के घटक संगठनों की ओर से ऑल इंडिया वर्कर्स काउंसिल (AIWC) के कॉमरेड ओ पी सिन्हा; इंकलाबी मजदूर केंद्र (IMK) के कॉमरेड श्यामवीर; ट्रेड यूनियन सेंटर ऑफ इंडिया (TUCI) की कॉमरेड शर्मिष्ठा; ग्रामीण मज़दूर यूनियन, बिहार (GMU) के कॉमरेड अशोक कुमार; स्ट्रगलिंग वर्कर्स कोऑर्डिनेशन कमिटी पश्चिम बंगाल (SWCC) की कॉमरेड ताप्ती; मज़दूर सहयोग केंद्र गुड़गांव (MSK) से रामनिवास; इंडियन फेडरेशन आफ ट्रेड यूनियंस (IFTU) के कॉमरेड एस वेंकटेश्वर राव; इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स-सर्वहारा (IFTU-S) के कॉमरेड सिद्धांत; जन संघर्ष मंच, हरियाणा (JSM) की कॉमरेड सुदेश कुमारी; मज़दूर सहयोग केंद्र उत्तराखंड (MSK) से कॉमरेड मुकुल; कर्नाटका श्रमिक शक्ति (KSS) से कॉमरेड सतीश अरविंद ने अपनी बातें रखीं।

कन्वेंशन के दौरान प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच तथा अरुणोदय सांस्कृतिक मंच की ओर से क्रांतिकारी गीत प्रस्तुत किए गए। कार्यक्रम का संचालन कॉमरेड संजय सिंघवी ने किया।

कन्वेंशन में सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव-

हमारी निम्नलिखित माँगों के साथ :

  • नए श्रम कोड तथा मज़दूर कानूनों में मज़दूर-विरोधी प्रावधान वापस लो!
  • नए कॉर्पोरेट-पक्षीय किसान-विरोधी कृषि बिल वापस लो!
  • सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (पीएसयू) को बेचने के कदम वापस लो!
  • ठेका प्रथा पर रोक लगाओ!
  • महामारी में मज़दूरों के लिए संकट व तमाम मुश्किलें पैदा करना बंद करो!

श्रम कानूनों के बदले श्रम कोड, कृषि बिल, छंटनी-बेरोज़गारी, निजीकरण, प्रवासी व असंगठित मज़दूरों के जीवन-आजीविका का संकट, बिगड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा, बढ़ती महंगाई, जातिगत हिंसा व धार्मिक नफ़रत, जनवादी अधिकारों पर हमला – नहीं सहेंगे!

रस्मअदायगी नहीं, मजदूर आंदोलन को मजदूर वर्ग के निरंतर, जुझारू और निर्णायक संघर्ष में तब्दील करो!

जिस दौर में हम यह कन्वेंशन करने जा रहे हैं, उसमें हमारे प्रिय देश के मजदूरों-किसानों पर केंद्र सरकार द्वारा अभूतपूर्व हमले हो रहे हैं। दरअसल सरकार ने इस महामारी के आगमन के पहले ही मज़दूरों पर हमले शुरू कर दिए थे। अगस्त 2019 में सरकार मज़दूर वर्ग की आवाज़ों को पूरी तरह नज़रंदाज़ करते हुए मज़दूरी कोड बिल को सामने लायी। इसके बाद समस्त श्रम कानूनों में गंभीर बदलाव करने हेतु तीनों श्रम कोड को जनता के प्रतिरोध से बचने के लिए महामारी के दौरान ही संसद के दोनों सदनों में तीव्रता से पारित किया गया।

इन बदलावों का मुख्य कारण था पूँजीपतियों को मुनाफ़ा कमाने में अड़चन डालने वाले और मज़दूरों को कुछ सुरक्षा प्रदान करने वाले नियामक संरक्षणों व कानूनों को रास्ते से हटाना और मज़दूरों को मालिकों के समक्ष अपना पक्ष रखने की ताकत को अत्यंत कमज़ोर कर देना।

यह सब जानते हैं कि अच्छे श्रम कानून मज़दूरों के लिए फैक्ट्रियों, मिलों व कारपोरेशनों के मालिकों व पूँजीपतियों द्वारा घोर शोषण के खिलाफ नियामक संरक्षण व सुरक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यक हैं। पूँजीपतियों के पास मज़दूरों से कई गुना अधिक पैसे व ताकत होते हैं और उनके हित मज़दूरों के हित से ज़रा भी मेल नहीं खाते। अतः खुद को घोर शोषण से बचाने के लिए एक आम मज़दूर को इन सहायक कानूनों की सुरक्षा की ज़रूरत होती है।

हमें यह याद रखना चाहिए कि ये सहायक कानून पिछले कई दशकों के निरंतर व जुझारू संघर्ष के ही नतीजे हैं। इसके बावजूद वर्तमान सरकार ने इन संरक्षणों को एक झटके में ध्वस्त कर दिया।

श्रम कानूनों में इन मज़दूर विरोधी बदलावों व श्रम कोड के आगमन से मज़दूरों को ही बड़ी क्षति पहुंची है – स्थाई नौकरी की माँग करने की क्षमता, यूनियन बनाने व संगठित होकर शोषण के खिलाफ और न्यायपूर्वक व सम्मानजनक परिस्थितियों के अधिकार के लिए हड़ताल व विरोध प्रदर्शन के अधिकार आदि को लेकर। श्रम कानूनों में यह बदलाव केवल पूँजीपति वर्ग को ही फायदा और मज़दूर वर्ग को क्षति पहुंचाने के साथ वर्तमान सत्तासीन पार्टी, जिनके नेता अपने कॉर्पोरेट आकाओं के सेवक हैं, के वर्ग चरित्र को भी पूरी तरह बेनकाब करते हैं।

अतः यह कन्वेंशन स्पष्ट रूप से केंद्र सरकार के इस कदम की भर्त्सना करता है और श्रम कानूनों में हटा दिए गए कानूनी संरक्षणों की तत्काल बहाली की माँग करता है।

हम देख सकते हैं कि किसान आज कृषि बिलों के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने ‘सुधार’ के इस कदम से ‘फार्म-टू-फोर्क’ सप्लाई चेन से मध्यस्थ को हटा कर कृषि बाजार को बाधित कर दिया है। यह बिलकुल स्पष्ट है कि यह नया विनियमन बाजार से ग्रामीण बिचौलिए को हटाता है, परंतु उसी की जगह पर बड़े कॉर्पोरेटों को ले आता है।

सरकार अब से ना ही किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रदान करेगी और ना ही उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए आवश्यक वस्तुओं के दामों को नियंत्रित रखने हेतु कोई कदम उठाएगी। अतः सरकार ने पूरी तरीके से किसानों व उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा करने की उसकी ज़िम्मेदारी से पड़ला झाड़ लिया है और माँग-आपूर्ति को पूरा करने व दाम तय करने का ज़िम्मा बाजार की शक्तियों पर छोड़ दिया है।

ऐसा कदम आम जनता को छोड़ बड़े कॉर्पोरेटों को ही अपार फायदा पहुंचाएगा। मुट्ठीभर अमीर किसान, जिन्हें इन नए कानूनों से फायदा हो सकता है, को छोड़ देश के ज़्यादातर किसानों को गुलामी कर जीवन चलाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। आम तौर पर किसानों को अब “बड़ी पूंजी” के हितों के आगे नतमस्तक रहना पड़ेगा, जो कि अंग्रेजी शासन की यादें ताज़ा करता है।

यह कन्वेंशन यह माँग करता है कि केंद्र सरकार भारत के किसानों को नियामक सुरक्षा देने के लिए तत्काल कदम उठाए।

केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (पीएसयू) व सरकार प्रायोजित उद्यमों का निजीकरण करने की भी हड़बड़ी में है। हालांकि यह सरकार यहाँ अपने पूर्ववर्ती सरकारों के ही नक्शेकदम पर चल रही है, लेकिन इसके कदम और अधिक तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। यह सब कुछ शीघ्र अतिशीघ्र बेच देने की तरफ बढ़ रही है – चाहे वह रेलवे हो या डिफेन्स, दूरसंचार, बीमा, बैंक हों या कोयला, लौह अयस्क, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस आदि। जहाँ पूरी अर्थव्यवस्था कोविद-19 महामारी के कारण भयंकर मंदी का सामना कर रही है, इस सरकार ने इन सभी को बेचने की होड़ शुरू कर दी है।

इस पैमाने पर विनिवेशीकरण से अर्थव्यवस्था में ठेका मज़दूरों की संख्या कई गुना बढ़ जाएगी जिनके पास नए श्रम कानूनों के तहत ना के बराबर अधिकार व संरक्षण होंगे। प्रवासी मज़दूर इन ठेका मज़दूरों की नई पीढ़ी का एक बड़ा हिस्सा बनेंगे और उन्हें अमानवीय व असह्य जीवन व कार्य परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा वो भी कानूनी संरक्षणों के अभाव में।

यह कन्वेंशन देश के ठेका मज़दूरों की दयनीय जीवन व कार्य परिस्थितियों के खिलाफ विरोध दर्ज करता है। हम माँग करते हैं कि इन मज़दूरों को सम्मानजनक जीवन जीने के लिए उचित राहत व सुरक्षा मिले।

जैसे-जैसे रोज़गार का स्वरूप स्थाई से ठेका की तरफ बढ़ता जा रहा है, हम देश भर में बेरोज़गारी व छंटनी के लगातार बढ़ते मामले देख सकते हैं। मज़दूरों की एक बड़ी आबादी को महामारी के दौरान वेतन नहीं दिया गया है और उनमें से कई की छंटनी हुई है, और आज बेरोज़गारी के आंकड़े चरम पर हैं। इन गंभीर परिस्थितियों में ये मज़दूर अपने पीएफ के पैसों का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हैं।

यह कन्वेंशन भयंकर बेरोज़गारी को अंजाम देने वाली सरकारी नीतियों का सख्त विरोध करता है। कन्वेंशन देश के मज़दूरों से यह आह्वान भी करता है कि वे इन नीतियों के विरुद्ध प्रतिरोध के लिए एकजुट हों।

कोविड-19 महामारी के दौरान ‘आपदा को अवसर’ में बदलते हुए, पूँजीपतियों और केंद्र सरकार में उनके भक्त नेताओं ने मज़दूर वर्ग को एक अनिश्चित व काले भविष्य की ओर धकेल दिया है। समय आ चुका है कि देश भर के मज़दूर और किसान आम जनता पर हो रहे इन हमलों के खिलाफ एकजुट होकर उठ खड़े हों। दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने संयुक्त रूप से श्रम कोड, श्रम कानूनों में मजदूर-विरोधी प्रावधानों और नए कृषि बिल के किसान-विरोधी प्रावधानों के विरुद्ध 26 नवंबर 2020 को देशव्यापी आम हड़ताल की घोषणा की है।

यह कन्वेंशन इस हड़ताल को समर्थन देता है और मासा इस हड़ताल को सफल बनाने के लिए हर संभव कदम उठाएगा!

यह कहते हुए हमारा मानना है कि आज केवल एक प्रतीकात्मक हड़ताल काफ़ी नहीं है। इन जन-विरोधी नीतियों का डट कर विरोध करने के लिए हमें आम जनता की व्यापक एकता और एक देशव्यापी निरंतर संघर्ष की ज़रूरत है।

इस मत के साथ, 18 अक्टूबर से 18 दिसंबर तक मासा आम मेहनतकश जनता के बीच देशव्यापी मजदूर संघर्ष अभियानआयोजित कर रहा है जिसमें जमीनी, डिजिटल, हस्ताक्षर अभियान आदि शामिल होंगे।

आइये इस कन्वेंशन को हम इस संघर्ष को आगे बढ़ाने की तरफ अपना पहला कदम बनाएं!

प्रतिरोध में एकात्मता की कामनाओं के साथ,

मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (MASA)

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