कोलकाता : बीएसएनएल ठेका मज़दूरों ने की भूख हड़ताल

कठिन स्थितियों में ठेका मज़दूर हुए संगठित, जलाई संघर्ष की नयी मशाल

कोलकाता। दूरसंचार को कार्पोरेट हाथों में देने कि शुरुआत के बाद से ही बीएसएनएल के मज़दूरों, विशेष रूप से कैजुअल व ठेका मज़दूरों कि स्थिति लगातार बदतर होती गई है। ऐसी स्थिति में कोलकाता के बीएसएनएल ठेका मज़दूरों ने अपने को संगठित किया, यूनियन बनाई और अपने संघर्ष को नयी गति दी है। इसी क्रम में उन्होंने 15-17 अक्टूबर को 48 घंटे का भूख हड़ताल करके अपनी आवाज़ बुलंद की।

बीएसएनएल ठेका मज़दूरों के दुर्दश की कहानी

केंद्रीय सरकारी संस्था बीएसएनएल के कोलकाता टेलीफोन में पिछले 25 वर्षों से काम करने वाले मज़दूरों के ऊपर एक बड़ा आक्रमण शुरू हुआ। करीब पाँच हजार मज़दूर कोलकाता टेलिफोन में पहले बदली मज़दूर के हिसाब से काम करते थे। तब यह भारतीय दूरसंचार विभाग था।

साल 2001 में केंद्र कि बाजपेयी सरकार ने दूरसंचार विभाग को तोडकर तीन निगमों- बीएसएनएल, एमटीएनएल व वीएसएनएल बना दिया। नव उदारीकरण के दौरान देश में जितने सारे बदलाव आ रहे थे, उसमें ये महत्वपूर्ण है। कॉरपोरेट इंडिया का हिस्सा बनके बीएसएनएल भी कॉरपोरेट बनने लगा। पूरे देश के साथ साथ पश्चिम बंगाल में भी यह बदलाव होने लगा।

गैरकानूनी नए ठेका प्रथा कि शुरुआत

कोलकाता टेलीफोन विभाग ने 6 फरवरी, 2002 को गैज़ेट नोटिफिकेशन (शासनादेश) जारी किया। उसमे कई सारे कामों में ठेका मज़दूर नियोजित करना मना हो गया। इसी दौरान कोलकाता टेलिफोन ने नए तरीके का ठेका प्रथा चालू किया। इसको नाम दिया गया जॉब कॉन्ट्रैक्ट स्कीम। उस दौरान जो बदली मज़दूर इसमें काम करते थे, उनको ही ठेका मज़दूर के रूप में काम पर लगाया गया। ऐसे शुरू हुया था बीएसएनएल कोलकाता टेलिफोन में गैर कानूनी ठेका प्रथा।

पिछले 16 सालों में गंगा में बहुत पानी बह गया। लेकिन इन ठेका मज़दूरों के जीवन में कोई बदलाव नहीं आया।

पिछले साल से शुरू हुआ नये रूप में आक्रमण

बड़े ही शातिराना ढंग से बीएसएनएल प्रबंधन ने ठेका मज़दूरों को टारगेट किया। पूर्व में सभी मज़दूर महीने में 26 दिन काम करते थे। उसको बदलकर पहले 20 दिन और बाद में 13 दिन कर दिया गया। जिससे मज़दूरों का वेतन आधा हो गया। साथ साथ रिटायरमेंट की उम्र बदलकर 55 साल कर दिया गया।

इसी के साथ आउटसोर्सिंग का एक नया तरीका लाया गया, जिसका नाम दिया एसएलए (service level agreement)। इसमें मज़दूरों के सारे अधिकार छीन लिये गये। इसमें पीएफ, ईएसआई की सुविधा के साथ साथ 3 साल बाद काम से निकाल देने की शर्त भी है।

कुल मिलाकर मज़दूरों की बर्बादी के लिए प्रबंधन पूरी तैयारी से उतर गया। लेकिन यही वे मज़दूर हैं, जिन्होंने इतने साल बीएसएनएल को जिन्दा रखा था। ये मज़दूर ही मैदान में हरदिन सारे पेरिनियल नेचर का काम करते हैं।

कठिन स्थितियों में यूनियन बनाकर संघर्ष की जलाई मशाल

पिछले 15 सालों में कोलकाता टेलिफोन में ठेका मज़दूरों की किसी यूनियन ने इसके लिए सही तरीके से लड़ाई नही लड़ी। मज़दूरों ने हताश होते होते अंत में आखरी लड़ाई लड़ने का संकल्प ले लिया। मज़दूरों को इसमें काबू करने के लिए प्रबंधन ने पिछले 15 महीने में कोई वेतन भी नही दिया। इन हालात में 12 मज़दूरों ने आत्महत्या भी कर ली।

इस बीच जुझारू मज़दूरों ने मिलकर एक नई यूनियन बनाने का निर्णय ले लिया। और इस काम में मदद करने के लिए पश्चिम बंगाल के एसडब्लूसीसी से सहयोग लेना शुरू किया। मज़दूरों ने अपनी एक नयी यूनियन- कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन ऑफ़ बीएसएनएल (सीडब्लूयू ऑफ़ बीएसएनएल) का गठन किया।

काफी संघर्षों के बाद पिछले लॉकडाउन के दौरान यूनियन का पंजीकरण हो गया। फिर यूनियन ने कोलकाता हाईकोर्ट में 1000 मज़दूरों की बकाया वेतन भुगतान के लिए रिट लगाई। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने आदेशित किया कि बीएसएनएल को अपनी संपत्ति बेच कर वेतन देना होगा।

इस फैसले के ख़िलाफ़ बीएसएनएल प्रबन्धन हाईकोर्ट की डिवीज़न बेंच में गया। डिवीसन बेंच ने भी आदेश दिया कि 8 सप्ताह में बीएसएनएल को बेतन दे देना होगा। फिर भी प्रबन्धन उस फैसले को मानने के लिए तैयार नहीं है।

इन हालत में यूनियन ने लड़ाई को और तेज करने का निर्णय लिया है।

नये जोश में नये संघर्ष कि शुरुआत

यूनियन ने संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए पिछले 30 सितंबर को राज भवन अभियान का कार्यक्रम लिया। राज्यपाल ने जब मज़दूरों के डेलिगेशन से मिलने से इनकार कर दिया, तब यूनियन ने कोलकाता शहर में धिक्कार जुलूस निकाला।

मज़दूरों ने की 48 घंटे की भूख हड़ताल

अपने संघर्ष को गति देते हुए सीडब्लूयू ऑफ़ बीएसएनएल की तरफ से 15-17 अक्टूबर तक 48 घंटा भूख हड़ताल का कार्यक्रम लिया गया। करीब 50 मज़दूरों ने इस आम भूख हड़ताल में भाग लिया।

दूसरी यूनियनें जब मैनेजमेंट के साथ गलबहियां कर रही हैं, तब अकेला सीडब्लूयू ऑफ़ बीएसएनएल इस लड़ाई को आगे ले जाने का काम कर रही है। ऐसे में यूनियन के ऊपर मज़दूरों का भरोसा बढ़ रहा है और एकजुटता के साथ आन्दोलन गति पकड़ रहा है।

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