नया क़ानून : स्थाई मज़दूर भी अब हो जाएँगे “फिक्स्ड टर्म”

औद्योगिक सम्बन्ध संहिता में स्थाई रोजगार को नियत अवधि में बदलने का प्रावधान

स्थाई नौकरी कर रहे जो मज़दूर अपने को सुरक्षित मान रहे थे, सावधान हों! स्थाई श्रमिकों को भी फिक्स्ड टर्म में बदलने की खुली छूट देकर मोदी सरकार ने उनकी गर्दन पर भी तलवार रख दी है। केंद्र सरकार ने नए श्रम कानूनों के तहत स्थाई श्रमिकों को भी नियति अवधि (फिक्स्ड टर्म) में बदलने की छूट दे दी है, जिसकी घोषणा पिछले सप्ताह हुई थी।

केंद्र सरकार ने औद्योगिक संबंध संहिता के उस सुरक्षा प्रावधान को समाप्त कर दिया है, जिसके तहत नियोक्ताओं को स्थायी रोजगारों को नियत अवधि के रोजगार में बदलने की इजाजत नहीं थी। 29 सितंबर को अधिसूचित औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 में कंपनियों को सीधे निश्चित समय के अनुबंध के जरिये कर्मचारी रखने की अनुमति दी गई है। इसे नियत अवधि का रोजगार भी कहा जाता है।

अधिसूचना में नियत अवधि के लिए अनुबंध पर रखे श्रमिकों को स्थाई श्रमिकों के सामान सभी सुविधाएं देने का चालाकी भरा प्रावधान है, लेकिन स्थायी श्रमिकों की तरह अनुबंध पर रखे कर्मियों को सेवा समाप्त किए जाने पर मिलने वाला मुआवजा एवं अन्य लाभ नहीं दिए जाएंगे।

2016 में सीमित क्षेत्र के लिए बनने से शुरुआत

मोदी सरकार ने किस्तों में रोजगार के इस नये फण्डे को रोजगार का मुख्य आधार बना दिया। 2016 में नोटबन्दी के ठीक पहले यह सीमित क्षेत्रों के लिए हुआ था। अक्टूबर, 2016 में औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम में बदलाव के तहत ‘एपैरल मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर’ (गारमेण्ट एवं टेक्सटाइल्स उद्योग) में निश्चित अवधि के रोजगार की शुरुआत हुई थी।

इस प्रकार ‘फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट’ पर अनुबन्ध आधारित नियुक्ति करने की छूट पहले सिर्फ एपैरल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर (वस्त्र निर्माण) के लिए हुई।

यह मोदी सरकार का एक ‘टेस्टिंग प्वाइंट’ था। एक तो यह पिछले दरवाजे से लागू हुआ था, जिसकी बहुतों को भनक भी नही लगी। दूसरे, उसी समय नोटबन्दी के शोर ने इसके शुरुआती विरोध को भी दबा दिया। मोदी सरकार का लोगों को परखने और दूसरे मुद्दों में उलझाकर खेलने का एक और प्रयोग सफल हो गया। फिर तो उसने सभी क्षेत्रों के लिए ‘फिक्स्ड टर्म’ लागू कर दिया।

कैसे बना “फिक्स्ड टर्म”

केंद्र सरकार ने पहले औद्योगिक नियोजन (स्थाई आदेश) अधिनियम 1946, सपठित केन्द्रीय नियमावली में बदलाव करके ‘फिक्सड टर्म इम्प्लाईमेण्ट’ (नियत अवधि के लिए नियुक्ति का अनुबन्ध) का फण्डा दे दिया था। इसी के साथ औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में संशोधन करके ‘फिक्स्ड टर्म’ का नया शब्द जोड़ दिया।

उसका मक़सद पहले से ही सीमित स्थाई रोजगा़र खत्म करके नियत अवधि के मज़दूर भर्ती करना है। यानी, एक निश्चित अवधि के लिए नियोक्ता और कर्मकार के बीच में एक संविदा होगी और अवधि समाप्त होते ही उसको निकाल दिया जाएगा। वह अपने स्थायीकरण की भी माँग नही कर सकता। यह नया फंडा मालिकों को ’रखने व निकालने’ की खुली छूट देता है।

किस्तों में फिक्स्ड टर्म, स्थाई स्थाई रोजगार ख़त्म

मार्च 2018 में केंद्र सरकार ने सबसे पहले नए नियमों के तहत निश्चित अवधि के रोजगार का प्रावधान किया था और स्पष्ट किया था कि कोई भी नियोक्ता मौजूदा स्थायी कर्मचारियों का पद नियत अवधि के रोजगार में तब्दील नहीं करेगा।

श्रम संबंधी विषय समवर्ती सूची में आता है, इसलिए कई राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार की अधिसूचना का पालन किया और निचित अवधि के रोजगार का धंधा शुरू कर दिया।

औद्योगिक संबंध, 2020 में इस प्रावधान का (यानि स्थाई को फिक्स्ड टर्म ना करने का) कहीं उल्लेख नहीं है, जिसके बाद तय है कि इससे स्थायी रोजगार खत्म हो जाएगा। यही नहीं, सरकार ने यह भी नहीं कहा है कितनी बार ऐसे अनुबंधों का नवीकरण हो सकता है।

साफ़ है कि अब स्थाई नौकरी कर रहे जो मज़दूर अपने को सुरक्षित मान रहे थे, उन्हें भी फिक्स्ड टर्म में बदलने की खुली छूट देकर मोदी सरकार ने स्थाई श्रमिकों की गर्दन पर भी तलवार रख दी है।

44 श्रम क़ानून ख़त्म, अब 4 श्रम संहिताएँ

मोदी सरकार ने पूँजीपतियों को किये गये वायदों के अनुसार तमाम मज़दूर विरोधी क़दम उठाए। इनमें सबसे प्रमुख हैं लंबे संघर्षों के दौरान हासिल श्रम कानूनों को मालिकों के हित में बदलना।

जिसका सीधा मतलब है बेहद सस्ते दाम पर मज़दूर उपलब्ध कराना, स्थाई प्रकृति के रोजगार को समाप्त करके फिक्स्ड टर्म करना, कौशल विकास के बहाने फोक़ट के मज़दूर नीम ट्रेनी भरती करना आदि।

इसीलिए केन्द्र सरकार लम्बे संघर्षों के दौरान हासिल मौजूदा 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को खत्म करके 4 संहिताओं में बदलने में सक्रीय रही। ये संहिताएं हैं- मज़दूरी पर श्रम संहिता, औद्योगिक संबंधों पर श्रम संहिता, सामाजिक सुरक्षा व कल्याण श्रम संहिता तथा व्यवसायिक सुरक्षा एवं कार्यदशाओं की श्रम संहिता।

इनमे से एक, मज़दूरी (वेतन) श्रम संहिता पारित होकर क़ानूनी रूप भी ले चुकी है। बाकि 3 श्रम संहिताएँ तमाम विरोधों के बावजूद मोदी सरकार ने आनन-फानन में बीते 22 सितम्बर को लोक सभा से और 23 सितम्बर को राज्य सभा से पारित करा लिया है, जिसपर राष्ट्रपति की मोहर लगने की महज औपचारिकता बाकी है।

बदलाव का मूल मन्त्र – “हायर एंड फायर”

2014 में केंद्र की गद्दी पर आसीन होने के बाद से ही मोदी सरकार ने तेज गति से रोजगार के जिन कथित नए रूपों का सृजन किया, उसके मूल में है ‘हायर एंड फायर’ यानी जब चाहो रख लो, जब चाहो निकाल दो।

इसी के तहत फोकट के मज़दूर नीम ट्रेनी को मान्यता दी और दूसरी तरफ स्थाई रोजगार की जगह नियत अवधि के रोजगार (फ़िक्स्ड टर्म) की शुरुआत की।

मोदी सरकार की पक्षधरता साफ, सोचना मज़दूरों को है

मोदी सरकार जितनी तेज गति से देशी-विदेशी मुनाफाखोरों के हित में मज़दूरों को अधिकार विहीन व बंधुआ बना रही है, उससे सरकार की मालिकों के प्रति पक्षधरता दिन के उजाले की तरह साफ़ है। लेकिन मज़दूरों के एक हिस्से के बीच अभी भी मोदी को लेकर भ्रम कायम है, बल्कि यह अंधभक्ति की सीमाओं को भी लाँघ चुकी है।

मज़दूर साथियों के लिए यह अबतक का सबसे विकट दौर है, इसे समझना होगा! उन्हें राष्ट्र-धर्म के जुनूनी माहौल से बहार निकलना होगा और संघर्ष को सही दिशा में आगे बढ़ा रही ताक़तों के साथ कन्धा मिलाना होगा!

यही बचाव का एकमात्र रास्ता है!

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