इस सप्ताह : मिस्र के क्रान्तिकारी कवि अल-फ़ाग़ोमी की कविताएँ !

अल-फ़ाग़ोमी के नाम से प्रसिद्ध मिस्र के क्रान्तिकारी कवि अहमद फ़ोआद नेग़्म (1929-2013) की दो कविताएं !

हम आपका समर्थन करते हैं महामहिम

हम आपका समर्थन करते हैं महामहिम
एक और अवधि के लिये
जिसमें जारी रखेंगे हम उमंग-भरा जुलूस यह
शायद हम बेच ही सकते हैं फुटपाथ
क्योंकि कुछ और बचा ही नहीं जिसे बेचा जा सके

हम आपका समर्थन करते हैं महामहिम
ताकि उससे और अधिक हासिल कर सकें
निश्चित रूप से जितना कर चुके हैं
आपके पूर्व शासनकाल में
आखि़रकार हम अब भगवान के भरोसे हैं
और अकेले भगवान ही हैं
जो कर सकते हैं दया हमारे ऊपर

हम वचन देते हैं महामहिम पूरी निष्ठा का
सिर्फ़ आपके प्रति, किसी और के प्रति नहीं
हमारे लिए तो यही बहुत है कि
बने रहें आपके ऐशो-आराम के तमाशाई
मिस्र की जनता सो रही है गहरी नीन्द में
जैसे आह्वान कर रही हो चोरों का
कि आओ और लूट लो हमें जल्दी से जल्दी

हम निष्ठा का वचन देते हैं महामहिम,
आपके, आपके बेटे और उसके भी बेटे के प्रति
ऐसा कुछ भी नहीं होगा कि
पुराने इरादे की जगह लेगा नया कोई इरादा
जिसके हाथों होगा हमारा सम्पूर्ण सर्वनाश

हम चूम लेंगे आपके हाथों और पांवों को
हमारे ऊपर अपना साया
बनाये रखिये, महामहिम राष्ट्रपति
आपकी मौज़ूदगी अनिवार्य है,
बाध्यता है समय की
आपकी मौज़ूदगी के बग़ैर,
हम सच में हो जाएंगे तबाह
यह मिस्र सिर्फ़ आपका ही है
और हम तो सिर्फ़ मेहमान हैं यहां

हमारे लिए तो यही बहुत है
कि हम देखते रह सकें शक़्लो-सूरत आपकी
हमें मुआफ़ कर दें महामहिम,
हम ख़ूब समझते हैं आपके हालात
आपके बस हुक़्म करने की देर है,
हम एहसानमंद रहेंंगे

आपके कुत्ते जो पांव चूमते हैं महामहिम के
वे रौंद कर चला करते हैं निर्बल-शक्तिहीनों को
महामहिम अवाम की ज़िन्दगी में रह गया है
तो सिर्फ़ निरादर, कड़वाहट और अपमान

जब तक कि जनता हैं हम आपके मातहत
और जब तक बने रहते हैं यों पैदल अक़्ल से
किसी भी सूरत में मत दें तवज्जो हमें
महामहिम को पूरा इख़्तियार है,
और आप आज़ाद भी हैं ऐसा करने के लिये

संविधान, क्या बला है यह संविधान?
मायने नहीं रखता अब यह कुछ भी
यह पूरी तरह एक बकवास क़िताब है
इतना क्या काफ़ी नहीं है कि भ्रष्टाचार
चूसता जाता है हमारी हाड़तोड़ मेहनत को,
इसने जमा ली है अपनी जड़ मज़बूती से
और ये जड़ें सब तरफ़ फैलती ही जाती हैं
क्या हुआ, अगर यातनाएं देती हैं रोजाना़ हमें
आपदाएं, घोटाले, और रिश्वतख़ोरियां मार तमाम

हम बैठा करेंगे कॉफ़ी-हाउस की मेज़ों के इर्द-गिर्द
आपके उत्तराधिकारी की प्रतीक्षा करते हुए
जिसके पीछे-पीछे चलना है हमें।


हमारे राष्ट्रपति की परेशानी क्या है?

मैं नहीं घबराता, और कहता ही रहूंगा
वह बात, जिसके लिये ज़िम्मेदार हूं मैं
कि राष्ट्रपति एक दयालु आदमी हैं

रात-दिन मसरूफ़ ही रहते हैं वे जनता के लिये
मसरूफ़, उनसे पैसों की उगाही करने में
बाहर, स्विट्ज़रलैंड में, उन्हें जमा कर रहे हैं वे
हमारे लिये गुप्त बैंक खातों में

बेचारे, व्यथित रहते हैं हमारे भविष्य के लिये
आह, क्या तुम देख नहीं पा रहे उनकी दयालुता को?
पूरी निष्ठा और सदाशयता के साथ
वे भूखा रखते हैं तुम्हें,
ताकि वजन कम रहे तुम्हारा
और हे कमाल लोगो!
तुम हो कि मरते रहते हो निवाले के लिये

हा री मूढ़ता! तुम बात करते हो ‘बेरोज़गारी‘ की
और इस बारे में भी कि
स्थितियां किस तरह होती जा रही हैं बेहद गम्भीर
भलामानुष बस देखना चाहता है आपको आराम में
सोचो कि इससे पहले क्या कभी
इस क़दर बोझिल हुआ करता था आराम???

और ये कानाफूसियां विश्रामगृहों को लेकर
आखि़र क्या सोच कर कहते हैं वे
राजनीतिक काराग़ार इन्हें??
आखि़र ज़रूरत ही क्या है आपको
इतना सशंकित होने की?

वे तो बस इतना चाहते हैं कि आनन्द लें
आप भी इस ‘कुर्सी‘ का, मगर अदब के साथ
इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं कि
यह सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारा ही गुनाह है!!
क्या हम दे नहीं सकते
उनको ‘टैफ़लॉन‘ की एक कुर्सी ख़रीद कर?

कसम से, आप ग़लत बर्ताव कर रहे हैं
उस दीन-हीन आदमी के साथ
उसने अपनी ज़िन्दगी लगा दी किसके लिये?
यहां तक कि तुम्हारा निवाला तक,
उसे ही निगलना पड़ता है तुम्हारे लिये!

वह भकोसता जा रहा है,
जो कुछ भी पाता है सामने
आखि़र परेशानी क्या है हमारे राष्ट्रपति की?


(अंग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र, 22 नवम्बर, 2018)
(साथी जितेन्द्र विसारिया के फेसबुक पेज से साभार)


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