सुप्रीम कोर्ट : जो सत्ता पक्ष के अनुकूल, उसे ही अभिव्यक्ति की आज़ादी

अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सुप्रीम कोर्ट के ताजा 10 मामले

बोलने और लिखने की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को लागू करने का मामला अब विशेष तौर पर नागरिक-बनाम-राज्य का मुकदमा बन चुका है। जनवरी से लेकर अब तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े सुप्रीम कोर्ट में आए 10 मामलों की स्क्रूटनिंग से एक नए पैटर्न का पता चलता है। इन मामलों में उन्हीं याचिकाकर्ताओं को कोर्ट ने राहत दी है, जिनकी याचिका का सरकारी वकील ने कोई विरोध नहीं किया बल्कि दोनों ने एक ही लाइन पर बहस की लेकिन छह मामले ऐसे थे जहां स्टेट की तरफ से आपत्ति जताई गई थी। ऐसे मामलों में कोर्ट ने उन्हें राहत नहीं दी। सुप्रीम कोर्ट ने इन दस मामलों में अरनब गोस्वामी और अमीष देवगन को राहत दी है लेकिन विनोद दुआ, हर्ष मंदर और शरज़ील इमाम को राहत नहीं दी।

पहला मामला रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अरनब गोस्वामी से जुड़ा है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें राहत दी है। गोस्वामी ने अपनी याचिका में महाराष्ट्र में दाखिल एफआईआर रद्द करने की मांग की थी। पालघर में हुई दो साधुओं और एक ड्राइवर की लिंचिंग के बाद अरनब ने अपने टीवी डिबेट शो में 21 अप्रैल को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर सवाल खड़े किए थे। इसके खिलाफ अरनब पर कई जगह एफआईआर दर्ज की गई थी। 19 मई को सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार को राहत देते हुए सिर्फ एक एफआईआर को छोड़कर सभी को रद्द करने का आदेश दिया था और कहा था कि एक ही घटना से संबंधित कई एफआईआर दर्ज करना “प्रक्रिया का दुरुपयोग है” और इसे रद्द किया जाना चाहिए।

25 जून को अदालत ने पत्रकार अमीश देवगन के खिलाफ उनके शो में धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में एफआईआर पर रोक लगा दी। SC ने जांच को स्थगित करते हुए कई स्थानों पर दायर एफआईआर को नोएडा स्थानांतरित कर दिया।गोस्वामी और देवगन दोनों के मामलों में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने किया। उन्होंने केस में मल्टीपल एफआईआर को समाप्त करने और उसे एक जगह रखने का समर्थन किया था। गोस्वामी के मामले में तो केंद्र सरकार के प्रतिनिधि वकील ने महाराष्ट्र पुलिस द्वारा मामले की जांच की आलोचना की और उसकी जांच सीबीआई को ट्रांसफर कराने तक की मांग की।

26 जून को, सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की अवकाश पीठ ने पत्रकार नूपुर जे शर्मा और पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा दायर तीन अन्य लोगों के खिलाफ कई एफआईआर पर एक पक्षीय रोक लगाने की अनुमति दी और आगे की किसी भी सख्त कार्रवाई को निलंबित कर दिया। हालाँकि, शर्मा की याचिका ने मामले में केंद्र को प्रतिवादी के रूप में सूचीबद्ध किया था लेकिन अदालत ने उसकी दलीलें सुने बिना पहली ही सुनवाई में राहत दे दी।हालांकि, इसी तरह के छह अन्य मामलों में जहां केंद्र ने अर्जी के खिलाफ आपत्ति जताई, वहां अदालत ने याचिकाकर्ता को कोई राहत नहीं दी।कांग्रेस नेता पंकज पुनिया से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 30 मई को हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले मल्टीपल एफआईआर को रोकने के लिए दायर याचिका में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। पुनिया के एक ट्वीट पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में इन जगहों पर एफआईआर हुई थीं।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र शरज़ील इमाम पर देशद्रोह और हेट स्पीच के आरोप में इस साल जनवरी में कम से कम पांच राज्यों: असम, अरुणाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और मणिपुर में एफआईआर दर्ज की गई थी, उसके खिलाफ शरज़ील ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। 26 मई को, शरज़ील ने अपने खिलाफ मुकदमों को दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की, लेकिन अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं किया गया है । पिछले सप्ताह ही सुप्रीम कोर्ट ने शरज़ील की याचिका पर सुनवाई एक सप्ताह के लिए स्थगित कर दी है।

अरनब गोस्वामी, अमीष देवगन और नुपूर शर्मा के मामलों के विपरीत सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ आपराधिक जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। दुआ पर हिमाचल प्रदेश में भाजपा नेता श्याम कुमारसैन ने देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कराया है। शुक्रवार को इस मामले को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अनुरोध पर स्थगित कर दिया गया और सिर्फ दुआ के वकील की दलीलें सुनी गईं। मेहता ने पिछली सुनवाई में दुआ के केस का विरोध किया था और कहा था कि इसकी तुलना अरनब और अमीष के मामलों से नहीं की जा सकती।

इसी तरह का विरोधाभास नुपूर शर्मा और गोरखपुर के बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर कफील खान के मामले में देखने को मिलता है। नुपूर के मामले के विपरीत सुप्रीम कोर्ट ने 18 मार्च को कफील खान के खिलाफ कथित तौर पर भड़काऊ भाषण के दर्ज प्राथमिकी को चुनौती देने के लिए उसकी की मां नुज़हर परवीन को  इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जाने का आदेश दिया। नागरिकता संशोधन कानून 2019 के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के मामले में कफील खान के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत केस दर्ज किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद इलाहाबाद हाईकोर्ट में आजतक कफील खान की रिहाई पर फैसला नहीं हो सका है।

कोविड-19 महामारी के मद्देनजर शाहीनबाग में  100 दिन के धरने को रोकने वाले प्रदर्शनकारियों ने भी सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है और आरोप लगाया है कि पुलिस ने प्रदर्शन स्थल को साफ कर दिया है और संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में एक वार्ताकार टीम नियुक्त किया था। इस टीम ने प्रदर्शनस्थल पर जाकर बातचीत की थी। तब प्रदर्शकारियों ने विरोध स्थल पर एक हिस्से को खाली कर दिया था। मार्च में याचिका दायर करने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट में यह अब तक सूचीबद्ध नहीं हो सका है।मार्च में ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में सांप्रदायिक दंगों से जुड़े एक मामले में सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर का केस सुनने से इनकार कर दिया था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मंदर की याचिका पर आपत्ति जताई थी और कहा था कि वह लोगों को भड़काते हुए देखे गए थे। इसके बाद मंदर के वकील को अदालत ने मामले में बहस करने की अनुमति नहीं दी थी।

अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने के बाद संचार माध्यमों पर लगाए गए प्रतिबंधों से वहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन से जुड़े एक मामले में हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं का हवाला देते हुए मामले के तथ्यों पर फैसला नहीं दिया। संयोग से, देश के अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान तर्क दिया कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर निर्णय लेते समय, अदालत को “राज्य में आतंकवाद की पृष्ठभूमि” को ध्यान में रखना चाहिए।

मगर दिलचस्प बात यह है कि राजस्थान में कांग्रेस के 19 बागी विधायकों की अयोग्यता से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए पिछले महीने 23 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला दिया। जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली खंडपीठ ने कहा कि ‘लोकतंत्र में असंतोष की आवाज को दबाया नहीं जा सकता।’ हालांकि, मामले में केंद्र को पक्षकार बनाए जाने से पहले ही याचिका वापस ले ली गई।

जनसत्ता से साभार

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