मारुति कांड के 8 साल : अन्याय के विरुद्ध संघर्ष जारी है

maruti mazdoor neta

18 जुलाई : वर्ग संघर्ष के राजनीतिक क़ैदी, मारुति मज़दूरों को रिहा करो!

18 जुलाई, मारुति मानेसर के मज़दूरों के दमन का 8वां प्रतीक दिवस है। आज भी मारुति सुजुकी मज़दूर यूनियन के 13 नेतृत्वकारी साथी अन्यायपूर्ण उम्र क़ैद झेल रहे हैं। इन 13 मज़दूरों में से जियालाल को कैंसर और अजमेर को ब्रेन टयूमर हो चुका है। आपासी मदद से मज़दूर उनके मुक़म्मल इलाज में जुटे हैं। 2500 अस्थाई-स्थाई मज़दूर कार्यबहाली का संघर्ष कर रहे हैं। मज़दूर आज भी ज़िंदादिली के साथ खड़े है, लड़ रहे है, जिससे कठिन वक्त में भी उम्मीद जगती है।

अन्याय की दास्तान

18 जुलाई,  2012 को मारुति सुजुकी, मानेसर प्लांट में हुई साजिशपूर्ण घटना में एक मैनेजर की मौत का सहारा लेकर कंपनी प्रबंधन व हरियाणा सरकार की मिलीभगत से 148 मज़दूरों को जेल के अंदर डाल दिया गया था। लगभग 5 साल बाद 18 मार्च 2017 को सेशन कोर्ट गुडगांव ने 117 मज़दूरों को बाइज्जत बरी किया व 31 लोगों को दोषी करार दिया। जिनमें से 13 मज़दूर आज भी जेल की कालकोठरी में अन्यायपूर्ण उम्रक़ैद की सजा भुगत रहे हैं।

इस मजदूर विरोधी फैसले का तमाम यूनियनों ने पुरजोर विरोध किया था और एक निष्पक्ष न्यायिक जाँच की माँग की थी। लेकिन 8 साल बीत जाने के बावजूद अभी तक कोई न्यायिक जांच नहीं हुई। 13 मज़दूरों की रिहाई का संघर्ष जारी है। जबकि बर्खास्त मज़दूर आज भी अपनी न्यायिक मांगों को लेकर सड़कों पर हैं वह कानून के चक्कर काट रहे हैं।

यह वर्ग युद्ध है

अन्जाने में छिडे इस वर्ग युद्ध को मालिक तो समझ गए थे लेकिन मज़दूर न समझ सके और उनके द्वारा फैलाए जाल में फंसकर 18 जुलाई 2012 को मैनेजमेंट की साजिश का शिकार हो गए। प्रबंधन ने मज़दूर हितैशी मैनेजर अवनीश देव की बलि चढ़ाकर आरोप मज़दूरों पर लगा दिया। लगभग 2500 मज़दूर काम से निकाले गए और 148 मज़दूर जेल की कालकोठरी में डाल दिये गये।

इस पूरे दौर में मज़दूरों ने देखा कि कैसे भाजपा हो या कांग्रेस, केंद्र की हो या राज्य सरकार, पुलिस व प्रशासन हो या श्रम विभाग, निचली अदालत हो या सर्वोच्च अदालत; पूँजीपतियों के पक्ष में खुलकर खड़ी हैं और उन्हीं की सेवा में लगी हुई हैं।

लड़ाई आज भी जारी है…

मारुति प्रबंधन व हरियाणा सरकार के इतने बड़े हमले के बाद आज भी मज़दूर संघर्षरत हैं। जहाँ 13 मज़दूर विभिन्न अपराधिक मामलों में आज भी न्याय की उम्मीद में जेल काट रहे हैं वहीं लगभग 400 मज़दूर अपने गैर कानूनी बर्खास्तगी के खिलाफ लेबर कोर्ट में अपना मुकदमा लड़ रहे हैं।

मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन व मानेसर प्लांट के अंदर कार्यरत मज़दूर लगातार अपने साथियों की रिहाई वह गैरकानूनी बर्खास्तगी के खिलाफ यथासंभव प्रयत्न कर रहे हैं और हर वर्ष 18 जुलाई के दिन मारुति प्रबंधन व सरकार के खिलाफ अपनी एकजुटता प्रकट करते हैं।

मारुति कांड महज एक बानगी है

बर्खास्त मजदूरों की मारुति सुजुकी प्रोविजनल कमेटी के साथियों ने कहा कि मज़दूर प्रबंधन की गलत नीतियों का शिकार हुए हैं और आज बेरोजगार हैं। मारुति कांड महज उदहारण है। आज लगभग हर उद्योग के मज़दूर इन्हीं हालत में पीड़ित हैं। कोविड-19 महामारी ने मालिकों की मनमानी को खुली छूट दे दी है।

आज गुड़गांव से धारूहेड़ा तक कंपनियों के मालिक अपने वेंडरों का काम अन्य जगह शिफ्ट करके मजदूरों को काम से बाहर निकाल सकता है। आज श्रम क़ानूनी अधिकारों को जिस तरह से ख़त्म किया जा रहा है, उसने मालिकों को बेलगाम कर दिया है।

वर्तमान हालत में उद्योग जगत के तमाम मज़दूरों को एकजुट होकर लड़ने की जरूरत है तभी हम इन गलत नीतियों का डटकर सामना कर पाएंगे।

मारुति मज़दूरों की रिहाई और कार्यबहाली का संघर्ष देश के मज़दूर आन्दोलन का अहम हिस्सा है और वर्ग संघर्ष का ही रूप है। यह संघर्ष एक ठोस मिसाल हैं, जिससे मज़दूर आंदोलन ही नही, सामाजिक आंदोलन भी प्रेरित है।

वर्ग संघर्ष के राजनैतिक कैदियों को रिहा करो!

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