सत्ता का प्रतिशोध : सीएए विरोधियों पर हमले और तेज

जेएनयू शिक्षकों को नोटिस, पत्रकारों पर FIR, तो पिंजरा तोड़ की देवांगना पर यूएपीए

कोरोना संकट से निपटने में असफल मोदी सरकार अपने विरोधियों से निपटने हेतु सत्ता का खुलेआम दुरुपयोग पर उतर पड़ी है। 3 जून के देशव्यापी विरोध से बौखलाई सरकार ने जेएनयू शिक्षकों को नोटिस जारी किया है, वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ व आकार पटेल पर मुक़दमा ठोंका है, तो पिंजरा तोड़ की देवांगना पर यूएपीए लगा रही है।

जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन को नोटिस

सीएए विरोधी आन्दोलनकारियों/छात्रों की अन्यायपूर्ण गिरफ्तारियों के ख़िलाफ़ 3 मई के देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का समर्थन करने वाले जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (जेएनयूटीए) को यूनिवर्सिटी प्रशासन ने प्रतिशोधवश नोटिस जारी किया है।

नोटिस में कहा गया है कि प्रशासन के नोटिस में आया है कि जेएनयू के कुछ फैकल्टी मेंबर्स ने 3 जून 2020 को कैंपस में सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है लेकिन इस माहमारी में कोविड19 गाइडलाइंस का उल्लंघन करने से देश के सामने गलत उदाहरण पेश हो रहा है। नोटिस में लिखा है कि वे यूनिवर्सिटी की इमेज खराब ना करें।

हालाँकि इस नोटिस को जारी करने से पहले प्रशासन को केंद्र सरकार से यह पूछना चाहिए कि कोरोना महामारी से निपटने की जगह गैर संवैधानिक नीतियों का विरोध करने वालों से निपटने का यह समय चुनकर मोदी सरकार कौन सा इमेज बना रही है?

जेएनयूटीए ने दिया ज़वाब

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (जेएनयूटीए) इस नोटिस का प्रतिवाद किया है। जेएनयूटीए का कहना है कि उन्होंने किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया है और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया है। जेएनयूटीए ने सीएए-एनआरसी का विरोध करने वाले जामिया मिल्लिया इस्लामिया और जेएनयू के छात्रों की गिरफ्तारी का संवैधानिक रूप से विरोध किया है।

जेएनयू के अलावा बेंगलुरू के मौर्या सर्कल में भी बुधवार को सीएए-एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए जामिया के छात्रों सफूरा जरगर, मीरान हैदर, आसिफ इकबाल और जेएनयू के छात्रों नताशा नरवाल और देवांगना कलिता को सामाजिक कार्यकर्ता इशरत जहां, खालिद सैफी, गुलिफ्शां फातिमा आदि की रिहाई की मांग की गई।

वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ और आकर पटेल पर मुक़दमें

दिल्ली पुलिस ने भाजपा के प्रवक्ता नवीन कुमार की शिकायत पर शुक्रवार को वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ कथित तौर पर ‘‘सार्वजनिक गड़बड़ी पैदा करने वाले बयान देने’’ के लिए प्राथमिकी दर्ज की। यह भी आरोप लगाए कि दुआ ने प्रधानमंत्री को ‘‘कागजी शेर’’ बताया था।

विनोद दुआ टीवी के बेहद प्रतिष्ठित एंकर-पत्रकार हैं। दुआ ने कहा है कि ‘प्रधानमंत्री दंतविहीन व्यक्ति है, जिनमें देश की समस्याओं से निपटने की क्षमता नहीं है।’

मानवाधिकार कार्यकर्ता, पत्रकार-स्तंभकार और एमनेस्टी इंटरनेशनल के पूर्व अध्यक्ष आकार पटेल के ख़िलाफ़ मामला दर्ज सिर्फ इसलिए किया गया है कि उन्होंने अमेरिका में चल रहे विरोध प्रदर्शन की तरह ही भारत में भी प्रदर्शन करने की बात की।

पिंजरा तोड़ की देवांगना पर यूएपीए

सीएए विरोधी आन्दोलन में सक्रिय रही छात्रा और पिंजरा तोड़ की कार्यकार्ता नताशा नरवाल फर्जी आरोपों में गिरफ़्तारी और बाद में यूएपीए थोपने के बाद अब देवांगना कलिता पर चौथी एफआइआर के तहत यूएपीए लगाया जा रहा है।

पिंजरा तोड़ ने जारी किया बयान

इसके विरोध में पिंजरा तोड़ ने विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि छात्र कार्यकर्ताओं और अन्य सीएए-एनपीआर-एनआरसी विरोधी प्रदर्शनकारियों पर झूठे मुकद्दमे लगाना बंद करो!

जारी बयां में कहा गया है कि छात्राओं पर चल रहे हमले और लोकतान्त्रिक आवाज़ों को दबाने की कोशिश के सिलसिले में अब दिल्ली पुलिस ने जेएनयू की छात्रा और पिंजरातोड़ कार्यकर्ता देवांगना कलिता पर यूएपीए का आरोप लगा दिया हैं| देवांगना पर गिरफ्तारी के बाद यह चौथी एफआईआर है, जिसमें प्रत्येक नए एफआईआर में पहले से ज़्यादा गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं।

अब उसे FIR 59/20 में भी आरोपित किया गया है, जिसमें उमर खालिद, इशरत जहां, खालिद सैफी, सफूरा जरगर, गुलफिशा, नताशा और अन्य सीएए-विरोधी आन्दोलनकारी भी शामिल है, जिनपर दिल्ली में दंगे की “साजिश” रचने का आरोप लगाया जा रहा है।                

कई कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों को पहले ही जेल में बंद दो महीने गुज़र चुके हैं, और अब भी इस सूची में नए नामों का जोड़ा जाना जारी है।

बयान में लिखा है कि कल सफूरा ज़र्गर की जमानत इनकार करने के बाद, सरकार की यह चाल यह स्पष्ट कर देती है कि छात्र कार्यकर्ताओं को शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए दण्डित करने का तरीका है| संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए चल रहे सामाजिक आंदोलनों के साथ एकजुटता दिखाने और मौजूदा शासकों की विभाजनकारी नीतियों को चुनौती देने वालों को कठोर कानूनों द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है।

सबूतों की अनुपस्थिति पर अदालतों द्वारा बार-बार टिप्पणी के बावजूद जनांदोलन के प्रदर्शनकारियों पर “आपराधिक षड्यंत्र” के इलज़ाम बेहद चिंताजनक हैं। यह न केवल सरकार के खिलाफ किसी भी राय को व्यक्त करने वाले सभी लोगों के ऊपर बने हुए खतरे को दर्शाते हैं, बल्कि एक लोकतंत्र के मूलाधार को कमजोर कर रहे हैं।

पिंजरा तोड़ ने दिल्ली पुलिस के इस कदम की कड़ी निंदा करते हुए मांग की हैं कि छात्र कार्यकर्ताओं और अन्य सीएए-विरोधी प्रदर्शनकारियों पर लगाए गए सभी झूठे आरोपों को तुरंत वापस लिया जाए, शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के लिए जेल गए सभी कार्यकर्ताओं को तुरंत रिहा किया जाए और दिल्ली में हुई हिंसा के असली अपराधियों की जांच की जाए और उनके खिलाफ कार्रवाई हो।                                                                    

झूठ पर झूठ से इमारत खड़ी नहीं होती, टूट जाएगी… आवाज़ें जो उठ चुकी हैं।

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