पांच दिनों तक ट्रेन के टाॅयलेट में सड़ती रही मजदूर की लाश

रेलवे की लापरवाही और प्रशासन की उदासीनता की हकीकत

झांसी। लाॅकडाउन मजदूरों पर भारी पड़ता जा रहा है। मोदी सरकार की अव्यवहारिक और अदूरदर्शी नीतियों का सीधा असर मजदूरों पर पड़ा है। सरकार और पूंजीपति वर्ग चैन की बंशी बजा रहे हैं और आज मजदूरों की एक भारी आबादी को सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया है। मेहनतकश वर्ग प्रवासी मजदूर बनकर दर दर भटक रहा है।


ऐसी ही एक अमानवीय घटना पिछले दिनों झांसी में एक प्रवासी श्रमिक के साथ घटी। रेलवे यार्ड में खड़ी श्रमिक एक्सप्रेस के एक कोच के शौचालय में बुधवार की रात मजदूर का शव मिला। खोजबीन करने के बाद पता चला कि वह श्रमिक 23 मई को झांसी से गोरखपुर के लिए रवाना हुआ था। रास्ते में उसकी शौचालय में मौत हो गई और उसका शव झांसी तक लौटकर वापस आ गया।
वह बस्ती जिले के गौर थाना क्षेत्र के हलुआ गांव का रहने वाला था। इस ट्रेन से जिला बस्ती के थाना हलुआ गौर निवासी मोहन शर्मा (38) भी सवार होकर गए थे। वे मुंबई से झांसी तक सड़क मार्ग से आए थे। यहां बॉर्डर पर रोके जाने के बाद उनको ट्रेन से गोरखपुर भेजा गया था। वे जब चलती ट्रेन में शौचालय गए थे, तभी उनकी तबीयत बिगड़ गई और मौके पर उन्होंने दम तोड़ दिया।


ट्रेन के 24 मई को गोरखपुर पहुंचने के बाद उनके शव पर किसी की नजर नहीं पड़ी। ट्रेन के खाली रैक को 27 मई की रात 8.30 बजे गोरखपुर से झांसी लाया गया। यार्ड में जब ट्रेन को सैनिटाइज किया जा रहा था, तभी एक सफाई कर्मचारी की नजर शौचालय में पड़े शव पर पड़ी। सूचना पर जीआरपी, आरपीएफ, स्टेशन कर्मचारी व चिकित्सक मौके पर पहुंच गए।

जांच के बाद जीआरपी ने पंचनामा भरकर शव को पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कॉलेज भेज दिया। मजदूर के पास मिले आधार कार्ड के आधार पर उसकी पहचान की गई। मजदूर के बैग व जेब से 28 हजार रुपये नकद मिले। साथ ही, एक मोबाइल नंबर मिला, जो गांव के सरपंच का था। सरपंच की मदद से परिजनों को हादसे की सूचना दी गई। शव का सैंपल भी कोरोना जांच के लिए भेजा गया है।

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