बर्बर सत्ता और मरते मज़दूर : 24 मज़दूरों की फिर मौत
रेल हादसों से सड़क हादसों तक मज़दूरों की दर्दनाक मौत का सिलसिला जारी
कोविड-19/लॉकडाउन के बीच मेहनतकश जमात और इंसानियत दाँव पर लग गई है। महामारी से ज्यादा मज़दूर भूख और अपने घर पहुँचाने की ज़द्दोजहद में में मर रहे हैं। महाराष्ट्र के औरंगाबाद रेल हादसे और सड़क हादसों के क्रम में उत्तर प्रदेश के औरैया में 24 प्रवासी मज़दूर घर लौटने के संघर्ष में मारे गए, 37 मज़दूर गंभीर रूप से घायल हैं।
उल्लेखनीय है कि, लॉकडाउन के बीच देश के अलग-अलग राज्यों से प्रवासी मजदूरों का पैंदल और ट्रकों के जरिए अपने घर के लिए सफर जारी है। लोग पैर में छालों और भूख से आँतों में ऐठन के साथ रास्ते में दम तोड़ रहे हैं, प्रसव पीड़ित कोई महिला रास्ते में बच्चे को जन्म देकर उसी अवस्था में नवजात को लादे मंजिल के लिए निकाल पड़ रही है, संकटों से जूझते ये लोग लगातार सड़क व रेल सड़क हादसों का शिकार बन अकाल मौत के मुंह में समा रहे हैं।
डेढ़ महीने से जारी लॉकडाउन में, रोज़गार और पूँजी गंवा कर गाँव लौटने की चाहत जिस तरीके से त्रासदी बन रही है, वह हादसा नहीं, निरंकुश सत्ता के हाथों हत्या है।
औरैया भयावह हादसा
घर लौटते प्रवासी मज़दूरों के साथ यह भयावह हादसा 16 मई सुबह 3 बजे दो ट्रक के आपस में टकराने से हुई। उत्तर प्रदेश के औरैया में हुई इस घटना में ज्यादातर मज़दूर राजस्थान से लौट रहे थे और पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार जा रहे थे।
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जानकारी के मुताबिक, आटों की बोरियों से भरे इस ट्रक में प्रवासी मज़दूर सवार थे। यह ट्रक, ढाबे के बाहर खड़े दूसरे ट्रक से जा टकराया। इस घटना के बाद सामने आई तस्वीर में मजदूरों के सामान के ढेर को भी देखा जा सकता है।
ओरैया की सीएमओ अर्चना श्रीवास्तव ने बताया कि इस हादसे में 24 लोगों की मौत हुई है। 22 घायलों का अस्पताल में इलाज चल रहा है और 15 गंभीर रूप से घायलों को सेफैई पीजीआई रेफर किया गया है।
मौत मे बदलती घर जाने कि तमन्ना
यह अजीब दासताँ बन गई है। रोजी-रोजगार गंवाने के बाद ये प्रवासी मज़दूर घर जाना चाहते हैं, सरकार की बेरुखी से पुलिस की लाठियाँ खाते पैदल ही निकलने को विवश हैं, और तमाम हादसों के शिकार बन रहे हैं। पिछले कुछ दिनों की घटनाएँ देखें-
औरंगाबाद रेल हादस
महज एक सप्ताह पहले महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में रेल की पटरियों पर सो रहे 16 प्रवासी मजदूरों की एक मालगाड़ी द्वारा रौंद देने से दर्दनाक मौत हो गई थी। औरंगाबाद में बदनापुर-करमाड रेलवे स्टेशन के पास हुए इस हादसे में कई अन्य मज़दूर घायल हुए थे।
लगातार बढ़ाते सड़क हादसे
लॉकडाउन के बाद से अब तक सैकड़ों प्रवासी मजदूरों की मौत सड़क हादसे या भूखमरी से हो चुकी है।
मुजफ्फरनगर: लॉकडाउन की वजह से भूखे-प्यासे बिहार जा रहे 6 मज़दूरों को मुजफ्फरनगर में बस ने रौंद डाला। बीते बुधवार की रात उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर-सहारनपुर स्टेट हाईवे पर पंजाब से पैदल ही बिहार लौट रहे मज़दूरों को रोडवेज बस रौंदती हुई निकल गई। हादसे में 6 मजदूरों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया जबकि कई मज़दूर जख्मी हुए।
मध्य प्रदेश के गुना में बायपास पर बुधवार-गुरुवार की मध्य रात्रि को मिनी ट्रक और बस की भिड़ंत में आठ प्रवासी मज़दूरों की मौत हो गई और 49 घायल हो गए। कंटेनर में सवार मज़दूर मुंबई से उत्तर प्रदेश के उन्नाव व रायबरेली जिलों में अपने घरों के लिए लौट रहे थे।
अयोध्या-बहराइच मोड़ पर ट्रक से उतरकर सड़क पार करते समय तीन मज़दूरों को तेज रफ्तार ट्रक ने रौंद दिया, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई, जबकि 4 अन्य मज़दूर गंभीर रूप से घायल हो गए। ये मज़दूर गुजरात के सूरत से बहराइच जा रहे थे।
जौनपुर : इलाहबाद से बस्ती जनपद की तरफ जा रहा ट्रक जौनपुर में सड़क किनारे पलट गया। हादसे में एक प्रवासी मज़दूर की मौके पर ही मौत हो गई, ट्रक के नीचे दबे 7 प्रवासी मज़दूरों को नाजुक हालत में जिला अस्पताल भेजा गया।
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मुजफ्फरपुर : एक भीषण हादसे में बस चालक सहित दो लोगों की मौत हो गई, वहीं 7 से अधिक लोग घायल हैं जिसमें दो की हालत गंभीर बनी हुई है। दरअसल, मुंबई से स्पेशल ट्रेन से प्रवासी मज़दूर बिहार के मुजफ्फरपुर पहुंचे थे, जहाँ से बस के माध्यम से उन्हें कटिहार ले जाया जा रहा था। इसी दौरान सातनपुर में सामने से तेज रफ्तार से आ रहे ट्रक के साथ भीषण टक्कर हो गयी।
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में पाठा गांव के पास ट्रक पलटने से 5 मज़दूरों की मौत हो गई। दरअसल, एक ट्रक में सवार होकर कई मज़दूर यूपी जा रहे थे, तभी ये हादसा हुआ। ये घटना शनिवार-रविवार रात की है। ट्रक में ड्राइवर और कंडक्टर सहित 18 लोग सवार थे, ये लोग हैदराबाद से यूपी जा रहे थे।
मध्य प्रदेश के गुना में कैंट पीएस इलाके में एक अनियंत्रित ट्रक ने बस को टक्कर मार दी, जिससे 8 मज़दूरों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि 50 लोग घायल हुए। यह हादसा गुरुवार सुबह 3 से 4 बजे के बीच हुआ। सभी मृतक उत्तर प्रदेश और बिहार के रहने वाले थे और अपने घर ही जा रहे थे।
ये दुर्घटना नहीं, हत्या है!
ये चंद घटनाएँ महज बानगी हैं, जो हालत की भयावहता की तस्वीर देते हैं।
दरहकीक़त, ये दुर्घटना नहीं हत्या है। कातिलों में सत्ता में बैठे लोग शामिल है जिन्होंने ऐसे मज़दूरों की मौत की परिस्थिति बनाई और बनाते ही जा रहे हैं।
संक्रमण से ज्यादा हादसों में मरते मज़दूर
लॉकडाउन के बाद नॉन-कोविड मृतकों की संख्या आज 550 के ऊपर हो गयी है। भूखमरी से 73, पैदल चलते थकान से 33, घर वापसी करते समय दुर्घटनाओं से 162, पुलिस की मार से 12, चिकित्सा न मिलने पर 53, आत्महत्या से 104, शराब के जुड़े 46, लॉकडाउन से जुड़े क्राइम के कारण 15, और 52 कई और कारणों से। ये सभी ज़्यादातर मज़दूर वर्ग के लोग हैं।
हालाँकि ये आंकड़े निश्चित ही और ज्यादे होंगे, क्योंकि तमाम घटनाएँ सामने ही नहीं आ रही हैं।जबकि कोरोना से 15 मई तक 2752 लोग मर चुके है।
इस संक्रमण के शुरुआती दौर में आशंका थी कि अमीर भी मरेंगे, कि वायरस कोई धर्म, जाति, लिंग, वर्ग नहीं देखती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि अब दो महीनों बाद सत्ता में बैठे लोगों ने सुनिश्चित कर दिया हैं कि मज़दूर वर्ग के ऊपर इस संकट को पूरी तरह थोपना है। अब उन्हें कोई चिंता नहीं।
सत्ता का निरंकुश चेहरा खुलकर उजागर
कोरोना ने इस व्यवस्था के मूलभूत चरित्र को सामने लाकर रख दिया है। सत्ता का मेहनतकशद्रोही चेहरा खुलकर सामने आ चुका है। मालिकों के हित में मज़दूरों की दुर्दश की भयावह तस्वीर रोज ब रोज सामने आ रही है।
यह साफ़ है कि मज़दूर वर्ग के लिए झूठे विकास के सपनों के आड़ में वेतन गुलामी, मौत और अंधकार से भरे हुए भविष्य के अलावा कुछ भी नहीं। मज़दूर वर्ग के लिए, मज़दूर वर्ग द्वारा, पूर्ण सामाजिक आर्थिक राजनीतिक बदलाव से, पूंजीवाद से परे एक व्यवस्था में ही हम सबकी मुक्ति संभव है।
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