अब मज़दूरों की पूरी गर्दन काटने की तैयारी

उद्योग संगठनों व केन्द्रीय श्रम मंत्री की बैठक में उठी माँग- काम के घंटे 12 हो, श्रम क़ानून स्थगित हो

केंद्रीय श्रम और रोज़गार मंत्री के साथ पूँजीपतियों के 12 संगठनों की बैठक में मज़दूरों को बंधुआ बनाने के लिए 12 माँगें प्रस्तुत हुईं। 8 मई की बैठक लॉकडाउन की समस्या और उसके बाद अर्थव्यवस्था को उबारने की चुनौती के मद्देनज़र बुलाई गई थी। जिसमे संकट का पूरा बोझ मज़दूरों पर डालने पर मंत्रणा हुई।

उद्योगपतियों ने सरकार के सामने अपनी माँगों की एक लंबी फेहरिस्त सौंपी है, जिसमें मज़दूरों के अधिकारों को ख़त्म करने और मालिकों को विशेष पैकेज देने की माँग शामिल है। वैसे भी पूँजीपतियों के हित में खड़ी केंद्र की मोदी सरकार से लेकर राज्य सरकारें तेजी से मज़दूरों के अधिकारों पर डकैती डाल रही हैं।

बैठक में केंद्रीय श्रम और रोज़गार मंत्री सन्तोष गंगवार ने इन प्रस्तावों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने का आश्वासन भे दे दिया। साफ़ है कि जल्द ही मोदी सरकार मज़दूरों के ख़िलाफ़ और भी कड़े फैसले ले लेगी।

इससे पूर्व 6 मई को केन्द्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के साथ भी एक बैठक की थी, जिसमे कोविड-19 से उत्त्पन्न उद्योग और मज़दूर समस्याओं पर चर्चा की। ज़ाहिर है, यह माहौल बनाए की तैयारी थी।

राज्य सरकारें कर चुकी हैं मज़दूर विरोधी बदलाव

ज्ञात हो कि मध्यप्रदेश की शिवराज और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने श्रम कानून में सुधार के नाम पर मज़दूरों बड़ा हमला बोलते हुए श्रम कानूनों को स्थगित कर दिया है। वहीँ, गुजरात, पंजाब, हिमांचल, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, गोवा, ओड़िसा आदि राज्य सरकारों ने मालिकों के हित में काम के घंटे बढाकर 12 घंटे करने के फरमान जारी कर दिए हैं। इसी तर्ज पर और राज्य सरकारें भी क़दम उठा रही हैं।

कार्पोरेट की प्रमुख माँगें-

12 घंटे का हो कार्य दिवस

बैठक में नियोक्ता समूहों के ज़्यादातर प्रतिनिधियों ने कामकाज का समय बढ़ाने की मांग की उनका कहना था कि काम करने की समयसीमा रोज़ाना 12 घंटे किया जाना चाहिए ताकि लॉकडाउन में हुए नुकसान की भरपाई की जा सके।

सामाजिक सुरक्षा मद में कटौती

पूँजीपतियों ने सलाह दी गई कि नियोक्ता और कर्मचारी, दोनों ही तरफ़ से सामाजिक सुरक्षा से जुड़े ख़र्चे में कटौती की जाए।

औद्योगिक विवाद क़ानून में दी जाए ढील

उद्योग जगत ने सरकार से औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 में ढील दिए जाने की भी माँग की है। उनका सुझाव है कि क़ानून में ढील बरतते हुए लॉक डाउन की अवधि को कामबंदी (ले ऑफ़) के तौर पर माना जाए। ऐसा करने से मज़दूरों और कर्मचारियों के प्रति उद्योग जगत की देनदारियों पर फ़र्क़ पड़ेगा।

श्रम कानून स्थगित किए जाएं

बैठक में श्रम क़ानूनों को लेकर एक प्रमुख माँग सारे श्रम क़ानूनों को अगले 2 – 3 सालों तक स्थगित रखने की हुई हालांकि न्यूनतम वेतन, बोनस और अन्य क़ानूनी देनदारियों के सम्बंध में इन श्रम क़ानूनों को पहले जैसे ही लागू रखने का सुझाव दिया गया

दरअसल उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों ने पहले ही श्रम क़ानूनों में ढ़ील देने की घोषणा कर दी हैउत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने तो इसके लिए एक अध्यादेश को भी मंज़ूरी दे दी है

उद्योग जगत के लिए पैकेज का हो ऐलान

बैठक में उद्योग जगत को इस संकट से निकलने के लिए एक पैकेज के ऐलान की माँग की गई

वेतन का बोझ सरकार उठाए

संगठनों ने माँग की कि कर्मचारियों को दिया जाने वाला वेतन भी कम्पनियों के सीएसआर यानि कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व के तहत लाया जाना चाहिए इसका फ़ायदा कम्पनियों को टैक्स पर छूट के रूप में मिल सकता है

सस्ती दर पर मिले बिजली

उद्योगपतियों ने सस्ते दर पर बिजली मुहैया कराने की भी माँग रखी

दो जोन बनाने का प्रस्ताव

बैठक में देश में रेड, ओरेन्ज और ग्रीन ज़ोन बनाने की जगह कंटेन्मेंट और नॉन कंटेन्मेंट ज़ोन बनाने की सलाह दी गई उद्योग जगत का कहना था कि नॉन कंटेन्मेंट इलाकों में सभी आर्थिक गतिविधियां शुरू की जानी चाहिए।

ज्ञात हो कि लॉकडाउन-2 की घोषणा से पूर्व उद्योगपतियों ने ही तीन जोन में बाँटने का सुजाव दिया था

पूँजीपतियों के 12 संगठन बैठक में हुए शामिल

बैठक में उद्योग जगत की सबसे बड़ी संस्था फिक्की के साथ साथ सीआईआई, एसोचैम, पीएचडी चैंबर्स ऑफ कॉमर्स और लघु उद्योग भारती समेत 12 संगठनों ने भाग लिया

श्रम मंत्री सन्तोष गंगवार ने कहा कि वो उद्योग जगत और नियोक्ता समूहों की बात पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे ताकि इस संकट से निकल कर आर्थिक विकास की गति बढ़ाई जा सके।

केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के साथ केन्द्रीय मंत्री की बैठक

6 मई को केन्द्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के साथ भी एक बैठक की थी, जिसके मुख्य मुद्दे कोविड-19 के मद्देनजर श्रमिकों और प्रवासी श्रमिकों के हित का संरक्षण,  रोजगार सृजन के उपाय, आर्थिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने के उपाय स्थिति में सुधार के उपाय एमएसएमई थे।

श्रम और रोजगार मंत्री ने केन्द्रीय श्रम संघों से सुझाव माँगे और कहा कि कोविड-19 के कारण लगाए गए राष्ट्रीय तालाबंदी के परिणामस्वरूप श्रमिकों के लिए चुनौतियों का समाधान खोजने की आवश्यकता है।

केन्द्रीय श्रम संघों के सुझाव-

देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे हुए प्रवासी कामगारों के परिवहन के लिए और अधिक गाड़ियाँ उपलब्ध कराना, इन मजदूरों को अपने परिवार को चलाने के लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान की जा सकती है और स्थिति के नियंत्रण में आने के बाद काम पर लौटने की सुविधा भी दी जा सकती है। पोर्टेबिलिटी और डेटा ट्रांसफर की सुविधाओं के साथ प्रवासी श्रमिकों/असंगठित श्रमिकों के लिए एक राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार करना रोजगार और अन्य सहायता प्राप्त करने में प्रवासी श्रम; एमएसएमई, विशेष रूप से छोटे और मझोले उद्योगों को ब्याज पर छूट/ऋणों के पुनर्गठन, सब्सिडी आदि देने का सुझाव दिया।

आशा/आंगनवाड़ी स्वयंसेवक को प्रोत्साहित करने, तालाबंदी के कारण नौकरी गंवाने वाले लोगों को नकद प्रोत्साहन भी दिया जाना चाहिए।

श्रम संघों ने श्रमिकों के काम के घंटे न बढ़ाने, वेतन के भुगतान और वेतन में कटौती के संबंध में मौजूदा श्रम कानूनों के सख्त कार्यान्वयन, मौद्रिक सहायता, असंगठित श्रमिकों और दिहाड़ी मज़दूरों को राशन और चिकित्सा सुविधाओं की मुफ्त आपूर्ति, फार्मरों की सहायता, ताकि खेतिहर मजदूरी का भुगतान कर सके, प्रवासी श्रमिकों को उनके घर वापस जाने के लिए ट्रेन का किराया नहीं लेने आदि माँगें रखीं।

रहे सहे अधिकार भी होंगे ख़त्म

ज़ाहिर है कि अभी तक मोदी की केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारों का जो मालिक पक्षीय रुख और करनी है, उसमे तय है कि मज़दूरों के रहे-सहे क़ानूनी अधिकार भी ख़त्म होने वाले हैं!

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