काम पर वापस लौटते मज़दूर झेल रहे हैं धार्मिक भेदभाव और प्रशासनिक अव्यवस्था

गुड़गांव की अग्रणी गारमेंट कम्पनी ऋचा ग्लोबल में मज़दूरों ने उठाई धर्म के आधार पर भेदभाव की शिकायतें

काम शुरू होने पर भी आवागमन की इजाज़त ना होने व वापस भर्ती की नीति अस्पष्ट होने ने बढ़ाई अफरातफरी

देश में विकसित हो रही चिंताजनक परिस्थितियों का एक और उदाहरण देते हुए गुर्ग्राम के उद्योग विहार में कुछ मज़दूरों ने बताया की उन्हें मुसलमान होने के आधार पर कंपनी में वापस नहीं लिया गया है| श्रमिकों का दावा है की 50 से अधिक मज़दूरों को इस तरह वापस भेजा जा चूका है| यह खबर ऋचा ग्लोबल से आई है जो इस क्षेत्र के गारमेंट उद्योग की सबसे बड़ी कंपनियों में गिनी जाती है|

मज़दूरों का कहना है की कंपनी को सीमित श्रम बल के साथ काम करने की अनुमति मिलने पर जब वे गेट पे पहुंचे तो उनके हिन्दू सहकर्मियों को अंदर काम पर दाखिल कर लिया गया पर मुसलामानों को बहार ही छोड़ दिया गया| एक श्रमिक ने बताया की उनके नाम एक दूसरी कागज़ पर लिखे हुए थे, और उनपर लाल निशान लगाए हुए थे| साथ ही उनसे कहा गया की “नमाज़ पढ़ने वालों और रोज़ा रखने वालों को” फिलहाल काम नहीं मिलेगा और अगर उन्हें रखा जाएगा भी तो वो ऊपर से सूचना आने पर रमजान के बाद ही किया जाएगा| वापस भेजे गए मज़दूरों में से ज्यादार इस कंपनी में 2-6 साल तक कार्यरत रह चुके हैं|

कंपनी प्रबंधन इस प्रकार की किसी भी नीति की मौजूदगी को नकार रही है| उनका कहना है की कंपनी एक गैर-विभेदकारी भर्ती नीति का पालन करती है और कंपनी में सालों से बड़ी तादात में मुसलमान मज़दूर काम करते आये हैं| प्रबंधन के प्रतिनिधि ने मीडिया से कहा की ऐसी किसी विभेदकारी घटना के घटने की जांच भी करेंगे और उपयुक्त कदम उठाएंगे|

लॉकडाउन व तनख्वाह न मिलने पर पहले से चल रही थी लूट, नौकरी छिन जाने पर लगेगा एक और धक्का

मज़दूरों ने यह भी बताया की लॉकडाउन की पूरी अवधी में इन्हें कोई तनख्वाह नहीं मिली थी, और यहाँ तक की पहले लॉकडाउन में भी तनख्वाह नहीं मिली थी| लॉकडाउन के असर में सभी मज़दूरों की आर्थिक स्थिति पहले से ही बेहद मुश्किल है| इन परिस्थितियों में काम नहीं मिलना उनके और उनके परिवारों के गुज़ारे के सारे साधनों को ख़त्म करदेगा|

कोरोना माहामारी के दौर में मुसलमान समुदाय के खिलाफ मीडिया, सोशल मीडिया  और राजनैतिक नेताओं द्वारा व्यापक दुष्प्रचार देश भर में ऐसी ख़बरों का आधार बना है जहाँ ना केवल मुसलमान समुदाय पर सामाजिक हिंसा बढ़ रही है बल्कि उनके रोज़गार पर सीधा और घातक असर पड़ा है| सब्ज़ी बेचने वालों, दूध बेचने वालों सिक्यूरिटी गार्ड व अन्य कई पेशों में इस तरह के भेदभाव की खबरें आती रही हैं| कोरोना का कहर, मालिकों की मज़दूरों का खून पसीना चूसने की नीतियां और अब सोची समझी साज़िश के तहत समाज में बढ़ाई जा रही सांप्रदायिक भावना यह सब मज़दूर वर्ग की आर्थिक सामाजिक सुर्षा पर नित दिन नए हमले कर रहे हैं|  

प्रशासन और कम्पनी प्रबंधन के बीच पिस रहे मज़दूर: कल सुबह कपासहेडा बॉर्डर पर भी हुई झड़प

प्रबंधन के मुताबिक़ असल समस्या “मूवमेंट पास” की है| जहाँ कम्पनी को 200 मज़दूरों से काम लेने की अनुमति है, सरकार द्वारा इनमें से केवल 65 को ही “मूवमेंट पास” दिए गए हैं| इस कारण कुछ मज़दूरों को वापस भेजना पड़ा है| दिल्ली गुड़गांव बॉर्डर पर स्थित उद्योगविहार के औद्योगिक और कापसहेड़ा के रिहायशी क्षेत्रों में यह बड़ा विवाद बन कर खड़ा है|  

गुड़गांव स्थित उद्योग विहार में काम कर रहे अधिकतर मज़दूरों का आवास दिल्ली में पड़ते कपास हेडा में है| किन्तु यहाँ पिछले हफ्ते में कई कोरोना के केस आने के कारण आवागमन में सरकार बेहद सख्ती बरत रही है| इसलिए कंपनियां खुलने के बावजूद पुलिस मज़दूरों को बॉर्डर पार कर के काम पर आने की अनुमति नहीं दे रही| ना ही पुलिस प्रशासन ने अब तक इस द्वन्द का समाधान करने की कोई सुचारू प्रक्रिया बनायी है|

इस अव्यवस्था ने मज़दूरों के अन्दर गुस्से को भी बढ़ाया है| डेढ़ महीनों से बिना आमदनी शहर में पड़े मज़दूरों के लिए अंततः काम पे वापस जाने की संभावना बनने के बाद भी वे काम नहीं शुरू कर पा रहे, वहीँ दूसरी ओर प्रवासियों को गाँव भेजने की व्यवथा के कुछ ऐलान होने के बावजूद अब तक गाँव लौटने की भी कोई स्पष्ट प्रक्रिया मज़दूरों को नहीं बताई गई है| इन परिस्थितियों में पिछले हफ्ते में 2 बार कापसहेड़ा बॉर्डर पर पुलिस काम पर जा रहे मज़दूरों को लाठियों से भगा चुकी है|  

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