कार्ल मार्क्स : जिन्होंने मज़दूर वर्ग की मुक्ति की राह दिखाई

मज़दूरवर्ग के महान शिक्षक व दोस्त कार्ल मार्क्स की 202वीं जयन्ती (5 मई) के अवसर पर

कार्ल मार्क्स मजदूरवर्ग के महान शिक्षक, नेता व दोस्त थे। उन्होंने समाज का वैज्ञानिक परीक्षण किया और मेहनतकशों की मुक्ति की राह बताई। वे दार्शनिक थे, अर्थशास्त्री थे और वैज्ञानिक समाजवाद के महान प्रणेता थे।

उन्होंने मेहनतकश-मज़दूरों के शोषण व ज़िल्लत भरी ज़िदगी के कारणों को वैज्ञानिक तथ्यों और जमीनी संघर्षों की रौशनी में बताया। उन्होंने मुक्ति की वह राह दिखाई, जिसमें मुनाफे व लूट पर टिके इस समाज को बदलकर मेहनतकश वर्ग अपने सच्चे राज को लाकर मानव द्वारा मानव के शोषण का खात्मा करेगा। यह स्थापित किया कि सर्वहारा ही पूँजीवाद के खात्मे के साथ शोषण पर टिके पूरे वर्गीय समाज को खत्म करके पूरी मानवता को मुक्त करेगा।

शुरुआती जीवन यात्रा

मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 को त्रोवेस (जर्मनीद्) के एक यहूदी परिवार में हुआ था। 1824 में इनके परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। उन्होंने कानून की पढ़ाई से लेकर साहित्य, इतिहास, दर्शन व राजनीतिक अर्थशास्त्र का गहन अध्ययन किया। साथ ही व्यक्तिगत जीवन को भी उसी शिद्दत के साथ जीते हुए जेनी को अपना जीवन संगनी बनाया।

व्यवहार से सिद्धांत तक

शिक्षा समाप्त करने के पश्चात मार्क्स समाज का व्यवहारिक अध्ययन करते हुए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े। क्रान्तिकारी विचारों के कारण एक के बाद एक प्रतिबन्ध व देश निकाला झेलते हुए मार्क्स लगातार मज़दूर वर्ग के संघर्ष व विचारों को आगे बढ़ते रहे। उन्होंने जर्मनी के मज़दूर सगंठन और कम्युनिस्ट लीग के निर्माण में सक्रिय योगदान दिया। 1847 में मज़दूरवर्ग के एक और नेता और अनन्य मित्रा फ्रेडरिक एंगेल्स के साथ मज़दूर वर्ग का पहला घोषणापत्र – ‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ लिखा, जो आज भी दुनिया भर के मज़दूरों का घोषणा पत्र बना हुआ है। मार्क्स ने 1864 में विश्व मज़दूर आन्दोलन के लिए पहले अन्तर्राष्ट्रीय मंच कम्युनिस्ट इन्टरनेशनल के गठन में महत्वपूर्ण योगदान किया।

वैज्ञानिक समाजवाद

मार्क्स का दर्शन दुनिया को बदलने, इंसानियत की मुक्ति का दर्शन था। उन्होंने हीगेल के दर्शन से द्वन्दवादी प्रणाली और फायरबाख की भैतिकवादी प्रणाली लेकर दर्शन को मुकम्मल रूप देते हुए द्वान्दात्मक भौतिकवादी दर्शन को स्थापित किया। ‘पूँजी’ (दास कैपिटलद्) की रचना द्वारा राजनीतिक अर्थशास्त्र की वस्तुपरक स्थिति प्रस्तुत की और मुनाफे के कारणों की पड़ताल करते हुए अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत द्वारा मज़दूर वर्ग की लूट की वास्तविकता को स्थापित किया। ‘काल्पनिक समाजवाद’ से ‘वैज्ञानिक समाजवाद’ को स्थापित किया और एक शोषण विहीन वर्गविहीन समाज की वास्तविकता को स्थापित किया। एक ऐसा समाज, जहाँ “हर आदमी अपनी क्षमतानुसार काम करेगा और जिसकी जो आवश्यकता होगी उस अनुरूप उपभोग करेगा।“

इतिहास को समझने की दृष्टि

मार्क्स ने इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या प्रस्तुत की और हर क्षेत्र में वैज्ञानिक रूप से यह प्रतिपादित किया कि “अबतक का ज्ञात समाज एक वर्ग समाज है।“ उन्होंने बताया कि कैसे पृथ्वी की उत्पत्ति हुई, कैसे जीव पैदा हुए, कैसे स्तनधारी पशुओं में बानर से नर बनने का मुक़ाम आया। मार्क्सवाद ने बताया कि आदिम कबिलाई समाज (आदिम साम्यवादी व्यवस्था) एक बराबरी का समाज था। लेकिन समाज विकास की अगली मंजिल में पहला वर्गीय समाज दास व्यवस्था आई। मुक्तिकामी संघर्षों से इस बर्बरता का अन्त हुआ, लेकिन सामन्ती शोषण का नया तन्त्र बना। स्वतंत्रता, समानता व भातृत्व के नारे के साथ पूँजीवादी क्रान्ति ने शोषण की सामन्ती व्यवस्था का अन्त किया। अब पूँजीवादी शोषण की जो नयी व्यवस्था कायम हुई, वह ज्यादा साफ व ज्यादा बारीक है। लेकिन इसी के साथ मुनाफाखोर पूँजीवाद ने अपने भस्मासुर सर्वहारा वर्ग को भी पैदा किया है। सर्वहारा ही पूँजीवाद के खत्मे के साथ शोषण पर टिके पूरे वर्गीय समाज को खत्म करके पूरी मानवता को मुक्त करेगा।

खोने के लिए महज बेड़ियां हैं!

मार्क्स ने बदलाव के वैज्ञानिक सत्य को स्थापित करते हुए कहा था कि “मज़दूर वर्ग की मुक्ति मज़दूर वर्ग के हाथों ही सम्पन्न होगी।“ उन्होंने मज़दूरों का आह्वान किया कि “तुम्हारे पास खोने के लिए महज बेड़ियां हैं और पाने के लिए पूरा संसार!”

उल्लेखनीय है कि समाज बदलाव के साथ क्रान्तियां ज्यादा सचेत होती गयीं। हर अगली क्रान्ति और ज्यादा सचेत होगी। जिसकी एक महत्वपूर्ण झलक पिछले शताब्दी में सोवियत रूस से चीन तक की क्रान्तियों ने दिखलाया है।

एक तूफानी जीवन का अन्त

विचारों में दृढ़ता, कर्म में सजीवता, गलत के साथ कठोरता, तर्क में विश्वास और अन्याय पर टिके समाज को बदलकर शोषण विहीन समाज की स्थापना के संघर्षमय तूफानी जीवन का अध्याय 14 मार्च, 1883 को समाप्त हो गया। लेकिन उनके मुक्तिकामी विचार आगे बढ़ते रहे… मज़दूर जमात को आज भी रौशनी दे रहे हैं और मज़दूरवर्ग की सम्पूर्ण मुक्ति तक प्रासंगिक रहेंगे!

दुनिया के मजदूरों एक हो!

मार्क्स ने जिल्लत और गुलामी से मुक्ति की जो मशाल जलाई, उसे आज भी दुनिया भर के मेहनतकश अवाम थामे हुए हैं। आज जब दुनिया के पूँजीवादी लुटेरे मेहनतकशों पर हमलावर हैं, जब मज़दूर वर्ग पराजय झेलते हुए अपने मुक्तिकामी नये संघर्षों की तैयारी कर रहा है, तब मज़दूरवर्ग के लिए कॉमरेड मार्क्स और ज्यादा प्रासंगिक हैं।

मार्क्स ने मज़दूर वर्ग की मुक्ति के जो विचार दिये हैं, उसकी रौशनी में आज के दौर को समझकर, अतीत की क्रान्तियों से सबक व शिक्षा लेकर नये दौर की क्रान्तियों की रणनीति और रणकौशल बनानी होगी।

मार्क्स द्वारा मज़दूर जमात की वर्गिय एकता को मजबूत करने का प्रतीक नारा ‘दुनिया के मज़दूरों, एक हो!’ आज भी शोषक पूँजीपतियों के दिल में ख़ौफ पैदा करता है।

मशालें थाम कर चलना, की जबतक रात बाकी है…

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