धरना स्थल पर लॉकडाउन हैं माइक्रोमैक्स के संघर्षरत मज़दूर

सबको वेतन देने की घोषणा से छँटनी/बर्ख़ास्त मज़दूर आखिर वंचित क्यों हैं?

रुद्रपुर (उत्तराखंड)। विश्वव्यापी कोरोना महामारी के बीच सबसे अधिक संकटग्रस्त हैं मेहनतकश मज़दूर। कहीं रोजगार का संकट, तो कहीं रोजगार छीने जाने के ख़िलाफ़ संघर्षरत मज़दूरों का संकट। इन्हीं संकटग्रस्त मजदूरों में से सवा साल से गैरकानूनी छँटनी के खिलाफ संघर्षरत भगवती (माइक्रोमैक्स) के मज़दूर भी है, जो अपने धरना स्थल पर लॉकडाउन हैं।

छँटनी हुई ग़ैरकानूनी, लेकिन कोरोना संकट से खड़ी हुईं नई मुश्किलें

विडंबना यह है की 27 दिसंबर, 2018 से गैरकानूनी छँटनी के खिलाफ संघर्ष में भगवती प्रोडक्ट्स लिमिटेड (माइक्रोमैक्स) के मज़दूरों को औद्योगिक न्यायाधिकरण से एक महत्वपूर्ण जीत मिली थी, जिसमें कोर्ट ने छँटनी अवैध करार दिया था। अभी कार्यबहाली के लिए प्रयास आगे ही बढ़ रहा था कि इसी दरमियान पैर पसरते कोरोना संक्रमण से पूरे देश में लॉकडाउन घोषित हो गई।

उल्लेखनीय है कि माइक्रोमैक्स के मज़दूरों का कंपनी गेट पर लगातार धरना चलता रहा है। तमाम दिक्कतों के बावजूद प्रबंधन और प्रशासन कंपनी गेट से उन्हें हटा नहीं सका था। अभी इन नई स्थितियों में 5 मज़दूर साथी अपने धरना स्थल पर लॉकडाउन हो होकर डटे हुए हैं।

किराए का माकन छूटा, धरना स्थल बना था ठिकाना

दरअसल,  गैरकानूनी छँटनी के बाद लगातार संघर्षों के बीच कई मज़दूरों ने, जो किराए के मकानों में रहते थे, अपने कमरों को छोड़ने को मजबूर हुए थे।  उनमें से कुछ मज़दूर अपने सामान के साथ कंपनी गेट स्थित धरना स्थल पर ही आ गए और उनके रहने का ठिकाना भी धरना स्थल बन गया था।

इस तरह धरना जारी है

ऐसे में मज़दूरों ने समझदारी से काम लिया। 5 मज़दूर साथी धरनास्थल पर रुक गए और कुछ और मज़दूर साथी, जिनके पास रहने का ठिकाना नहीं था, वे अन्य साथियों के साथ समायोजित हो गए। इससे एक तरफ मज़दूरों के रहने की समस्या का समाधान एक हद तक हुआ, दूसरी तरफ इन स्थितियों में भी धरने की निरंतरता बनी रही।

डाइकिन यूनियन ने दिया आर्थिक सहयोग

तमाम मज़दूर साथी इन साथियों के लिए राशन व खाने की व्यवस्था कर रहे हैं और अपना मज़दूर भाईचारा निभा रहे हैं। अभी डाइकिन एयरकंडीशनिंग मज़दूर यूनियन, नीमराना, अलवर (राजस्थान) के साथियों ने भी संकट की इस घड़ी में सहयोग के लिए 2100 रुपए का योगदान भेजा है।

लेकिन मज़दूरों की सुविधा के लिए सरकार मौन

यहाँ  यह भी गौरतलब है कि जहाँ तमाम मज़दूर संकटों के बावजूद अपना भाईचारा निभा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बड़ी-बड़ी घोषणाओं के बावजूद, केंद्र सरकार, राज्य सरकार या स्थानीय प्रशासन इनकी सुरक्षा सहायता तो दूर, भोजन तक का भी इंतजाम करने की ज़रूरत तक नहीं करते।

माइक्रोमैक्स ही नहीं वोल्टास, गुजरात अंबुजा, शिरडी आदि के मज़दूर भी अलग-अलग रूपों में, इन्हीं हालातों से जूझ रहे हैं। देश के विभिन्न कोनों में तमाम तमाम ऐसे मज़दूर भाई मौजूद हैं, जो ऐसी ही विकट स्थितियों में है। सबको वेतन देने की घोषणा में यह मज़दूर आखिर वंचित क्यों हैं?

लेकिन थाली थाली पिटवाने, मोमबत्ती या दीपक जलवाने के नाम पर हो रही नौटंकीयों के बीच इस समाज में सब कुछ जिनकी मेहनत से खड़ा होता है, उनके लिए कुछ भी मयस्सर नहीं है।

दरहकीक़त, मज़दूरों के लिए इस मुनाफ़ाखोर व्यवस्था में असल में कोई जगह नहीं होती है। मुनाफे की अपनी एक संस्कृत है, जहाँ इंसानियत नहीं, मुनाफे की हवस होती है। जिसका एक ही धर्म है- जिससे जितना निचोड़ सकते हो निचोड़ लो और फिर सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दो!

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