प्रतिरोध सभा में मज़दूरों की आवाज़ हुई बुलंद

रुद्रपुर (उत्तराखंड), 2 फरवरी। पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार रुद्रपुर के अंबेडकर पार्क में प्रतिरोध सभा का आयोजन हुआ और मुख्य बाजार में मज़दूरों व महिलाओं ने जुलूस निकाला। जुलूस की समाप्ति पर पुलिस बल ने  मजदूरों को बगैर अनुमति जुलूस निकालने का सवाल उठाया, लेकिन मज़दूरों और महिलाओं के व्यापक विरोध के पश्चात पुलिस को अपने कदम पीछे हटाने पड़े।

सभा में गुजरात अम्बुजा, शिरडी, बजाज मोटर्स, माइक्रोमैक्स, वोल्टास सहित तमाम कंपनियों की श्रमिक समस्याओं के तत्काल समाधान और दमन रोकने की माँग बुलंद हुई और हक़ के लिए संघर्ष तेज करने का आह्वान हुआ।

इस प्रतिरोध सभा  का आयोजन गुजरात अंबुजा कर्मकार यूनियन, शिरडी श्रमिक संगठन, बजाज मोटर्स कर्मकार यूनियन ने संयुक्त रूप से किया था, जिसमें सिडकुल पंतनगर की कई यूनियनों व संगठनों ने भागीदारी की। पिछले दो दशक से लगातार मज़दूरों पर हो रहे दमन-उत्पीड़न पर लोगो ने आक्रोश प्रकट किया।

सभा मे शिरडी श्रमिक संगठन के अध्यक्ष मनोज जोशी ने शिरडी के मज़दूरों की गैरकानूनी छँटनी और जारी संघर्ष पर बात रखने के साथ कहा कि गुजरात अंबुजा के मज़दूरों, महिलाओं व नन्हे मुन्ने बच्चों के ऊपर पुलिस का दमन व लाठीचार्ज की घोर निंदा करते हैं। उत्तराखंड सरकार व भारत सरकार द्वारा संवैधानिक अधिकार को छीना जा रहा है। मजदूर अपने अधिकारों के प्रति ना बोले इसलिए उन्हें बँधुआ मज़दूर बनाया जा रहा है। सरकार शासन प्रशासन आदि की मिलीभगत साठगांठ साफ-साफ उजागर होती है।

गुजरात अंबुजा कर्मकार यूनियन के अध्यक्ष कैलाश चंद पांडे ने कहा कि 20 जुलाई से माँग पत्र पर प्रबंधन द्वारा कोई सकारात्मक रुख ना रखने के चलते मामला श्रम विभाग में चल रहा है। यूनियन पंजीकरण की फाइल पर भी तमाम तरह की अड़चन आई। प्रबंधन द्वारा उपाध्यक्ष को निलंबित कर दिया गया। हाई कोर्ट में जाने के बाद ही यूनियन रजिस्टर्ड हो पाई। वर्तमान में मांग पत्र को लेकर भी प्रबंधन का अड़ियल रवैया है। प्रबंधन द्वारा मजदूरों को 8-10 साल से काम कराने के बावजूद नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया। कुछ मज़दूरों को गैरकानूनी तरीके से गेट बंद कर दिया गया। इसी गेट बंदी व मांग पत्र को लेकर शांतिपूर्ण संघर्ष पर प्रबंधन के इशारे पर पुलिस प्रशासन द्वारा महिलाओं बच्चों सहित 180 मजदूरों पर लाठीचार्ज कर अलग-अलग थानों में रखा गया, 4 मज़दूर नेताओं पर मशीनों में तोड़फोड़ आदि के मुकदमे दर्ज की है।

ऑटोटेक के मज़दूरों ने कहा कि कंपनियों द्वारा खुलेआम शोषण किया जा रहा है। श्रम कानूनों में दर्ज मूलभूत अधिकार, न्यूनतम वेतन, 8 घंटे की ड्यूटी, साप्ताहिक अवकाश आदि नहीं दिया जाता। यहां तक कि राष्ट्रीय त्योहारों पर कंपनी में जबरन कार्य कराया जाता है। उपरोक्त अधिकारों की मांग करने पर मज़दूरों की गेटबंदी होती है। श्रम विभाग कंपनी में गैरकानूनी गतिविधियों पर रोक लगाने से के बजाय उल्टा उन्हें सह देता है।

इंकलाबी मज़दूर केंद्र के दिनेश चंद ने कहा कि विगत समय में भी यूनियनों के मांग पत्र पर समाधान की जगह मामले को लंबा खींच कर लेबर कोर्ट में पहुंचाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। अगर समय रहते बातचीत के माध्यम से मामलों को निपटाया जाते तो हालात कुछ और होते। मंदी का बहाना करके मज़दूरों के ऊपर हमले बोले जाते हैं। सरकार भी मज़दूरों के बजाय पूंजीपतियों के हितों को आगे बढ़ा रही है। मज़दूर आंदोलनों पर पुलिस द्वारा दमन करने की नीति को मदद मज़दूर बर्दाश्त नहीं करेंगे।

मज़दूर सहयोग केंद्र के मुकुल ने गुजरात अंबुजा के मज़दूरों व महिलाओं के संघर्ष को सराहा, पुलिस के दमनात्मक कार्रवाई का विरोध किया। कहा कि मोदी सरकार द्वारा श्रम कानूनों में मज़दूर विरोधी बदलाव कर अधिकारों को छिनने, फिक्सड टर्म, नीम ट्रेनी जैसे फोकट के मज़दूरों को उपलब्ध करा रहे हैं। मोदी सरकार कानूनी अधिकारों पर हमले बोल रही है और दूसरी तरफ सीएए, एनआरसी, एनपीआर, कश्मीर आदि के बहाने मज़दूरों को बांट रही है। मज़दूरों को इसे समझना होगा और अपनी व्यापक एकता से संघर्ष को मजबूत करना होगा।

वोल्टास इम्पलाइज यूनियन के अध्यक्ष मनोज कुमार ने वोल्टास में माँग पत्र पर 2 साल से समाधान की जगह 9 मज़दूरों की गैरकानूनी गेटबन्दी व वेतन बंदी पर श्रम विभाग की मिलीभगत को उजागर करते हुए अपने जारी संघर्ष को बताया।

इंट्रार्क मज़दूर संगठन के अध्यक्ष दलजीत सिंह ने कहा कि जब तक मजदूरों के खिलाफ संघर्ष करते हैं तब दमन की नीति कंपनी प्रबंधन अपना ले लेती है इसमें आगे बढ़कर संघर्ष ही एकमात्र रास्ता है।

गुजरात अंबुजा की महिला नेत्री सरिता देवी ने कहा कि कंपनी प्रबंधन हमें कम न समझे हम महिलाएं मज़दूरों के संघर्ष में कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं।

भगवती श्रमिक संगठन के दीपक सनवाल ने कहा कि कंपनी में गैरकानूनी छँटनी और बंदी के खिलाफ13 महीने से संघर्ष जारी है, लेकिन सरकार-प्रशासन मालिको के हित दमन का रास्ता अपनाती रही है। उन्होंने कहा की सरकारी सब्सिडी और रियायतें हड़पकर मज़दूरों के पेट पर लात मारकर भागना कंपनियों का धंधा बन गया है।

मज़दूर प्रतिरोध सभा में वोल्टास इम्पलाइज यूनियन, ऑटो लाइन इंप्लाइज यूनियन, माइक्रोमैक्स (भगवती श्रमिक संगठन), याजाकी वर्कर्स यूनियन, गौ रक्षा केंद्र, नेस्ले कर्मचारी संगठन, एलजीबी वर्कर्स यूनियन, बजाज मोटर्स कर्मकार यूनियन, रॉकेट रिद्धि सिद्धि कर्मचारी संघ आदि के चंदन सिंह, दीपक सनवाल, कैलाश चंद्र पांडे, हरि सिंह सतवाल, रणजीत सिंह, निरंजन लाल गंगवार, राकेश यादव, महेंद्र यादव, मिथिलेश कुमार, जयपाल सिंह, मनोज कुमार, मिथिलेश सिंह, जयपाल सिंह, धीरज जोशी आदि ने भी संबोधित किया।

सभा में यह ऐलान किया गया कि यदि श्रमिक समस्याओं का समाधान नहीं होता है, तो श्रम विभाग पर हल्ला बोला जाएगा और उसके बाद भी नहीं हुआ तो कलेक्टर का घेराव होगा।

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