हिंदू कट्टरपंथ के सहारे सत्ता में पूंजीपतियों की सेवा करने की लालसा

प्लेटफार्म के नाम उर्दू की जगह संस्कृत में लिखने का आदेश

देहरादून: सन 2010 में जब भाजपा की सरकार थी तो राज्य में दूसरी भाषा के तौर पर संस्कृत को दर्जा दिया गया। बाद में सुनियोजित तरीके से अब प्लेटफार्मों पर उर्दू को हटाकर संस्कृत में नाम लिखने का नियम बनाया गया है। असल में सिर्फ नाम बदलने का सवाल नहीं है। भाजपा अपने हिंदू कार्ड को खेलकर सत्ता में लंबे समय तक बने रहने के प्रयास में है, जिससे पूंजीपतियों की सेवा कर सके और जनता को ज्यादा से ज्यादा दबाया जा सके। भाजपा हिंदू कंटरपंथ को स्थापित करने के लिए हर प्रकार के साजिश रच रही है। एनआरसी और सीएए भी इसी का एक उदाहरण है।

उत्तराखंड में रेलवे प्लेटफार्मों पर लगे साइन बोर्डों में उर्दू भाषा में लिखे स्टेशनों के नाम को अब बदल कर संस्कृत में लिखाया जाएगा. यानी प्लेटफॉर्म पर हिंदी और अंग्रेजी के साथ अब संस्कृत में स्टेशनों का नाम लिखा नजर आएगा. संस्कृत राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा है.उत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी दीपक कुमार ने कहा कि नाम बदलने का यह कदम रेलवे नियमावली के अनुरूप उठाया जा रहा है, जिसमें कहा गया है कि प्लेटफॉर्म के साइन बोर्ड में रेलवे स्टेशनों का नाम हिंदी और अंग्रेजी के बाद संबंधित राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा में लिखा होना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘अब पूरे उत्तराखंड में रेलवे स्टेशनों के साइन बोर्ड में नाम हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू के बजाए हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत में लिखे जाएंगे.’ अधिकारी ने कहा, ‘चूंकि उत्तराखंड की दूसरी आधिकारिक भाषा संस्कृत है इसलिए रेलवे स्टेशनों में उर्दू में लिखे नामों को बदल कर संस्कृत में किया जाएगा.’

ये नाम अभी भी उर्दू में इसलिए हैं क्योंकि इसमें से अधिकतर नाम तब के हैं जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था. उत्तर प्रदेश की दूसरी आधिकारिक भाषा उर्दू है. जनसंपर्क अधिकारी कुमार ने कहा, ‘हालांकि यह बदलाव साल 2010 में ही हो जाना चाहिए था, जब संस्कृत को राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा बनाया गया था.’

मालूम हो कि साल 2010 जब रमेश पोखरियाल निशंक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे तब संस्कृत को राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा बनाया गया था, जो अब मानव संसाधन विकास मंत्री हैं. हालांकि संस्कृत भाषा में लिखने से बहुत रेलवे स्टेशनों के नाम में बहुत बदलाव नहीं होंगे क्योंकि हिंदी और संस्कृत दोनों में देवनागरी लिपि ही इस्तेमाल होती है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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