सरकार की धमकी के बावजूद हड़ताल को सफल बनाओ!

सरकारी कर्मचारियों को ‘देख लेने’ की धमकी के बीच मेहनतकश विरोधी नीतियो के ख़िलाफ़ देश के सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के मज़दूरों-कर्मचारियों के साथ किसान, छात्र और शिक्षक भी होंगे शामिल

जहाँ एक तरफ देशभर के मज़दूर-कर्मचारी-किसान-छात्र 8 जनवरी की आम हड़ताल को सफल बनाने में जुटे हैं, वहीँ बौखलाए मोदी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को हड़ताल पर जाने पर ‘देख लेने’ और कार्रवाई करने की धमकी दी है, औद्योगिक सुरक्षा बल की ‘निगरानी’ के निर्देश दिए हैं और हड़ताल करने को ही अवैधानिक बताकर यूनियन अधिकारों पर भी हमला बोला है।

ज्ञात हो कि मोदी सरकार के विनिवेश, निजीकरण और मज़दूर विरोधी श्रम सुधार नीतियों के खिलाफ 8 जनवरी को देशव्यापी हड़ताल होगी। हड़ताल का आह्वान वाम और कांग्रेस समर्थित 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने की है। जिसमे ग्रामीण व खेतिहर मज़दूर, किसान, आशा, आंगनबाड़ी, भोजन माता, मेडिकल रिप्रजेंटेटिव, छात्र-शिक्षक आदि व्यापक आबादी शामिल होगी। केवल आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ बीएमएस ने बंद के इस आह्वान का समर्थन नहीं किया है।

यह आन्दोलन की व्यापकता का परिचायक है कि पूरी तरह से कर्ज माफ न होने के कारण देश भर के किसानों ने भी आंदोलन का ऐलान किया है। जबकि बढ़ी फीस और शिक्षा के व्यावसायीकरण के विरोध में छात्रों के 60 संगठनों और कुछ यूनिवर्सिटी के शिक्षकों-कर्मचारियों ने भी हड़ताल में शामिल होने का फैसला किया है। देश के अलग-अलग बैंक संगठनों ने भी हड़ताल की घोषणा की है।

इस देशव्यापी हड़ताल में ट्रेड यूनियनों सीटू, इंटक, एटक, टीयूसीसी, एसइडब्ल्यूए, एआईसीसीटीयू, एचएमएस, एआइयूटीयूसी, एलपीएफ, यूटीयूसी सहित विभिन्न संघ और टीयूसीआइ, इफ्टू इफ्टू (सर्वहारा) आदि फेडरेशन शामिल रहेंगे। जबकि मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) और उसके घटक संगठन भी सक्रिय भागेदारी कर रहे हैं। भारत बंद को सफल बनाने के लिए कांग्रेस सहित कई विपक्षी पार्टियो व अन्य राज्यों की सत्ताधारी पार्टियो ने भी बंद को समर्थन दिया है।

केंद्र सरकार ने नतीजा भुगतने की दी धमकी

हड़ताल से भयभीत केंद्र की मोदी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को चेताया है कि यदि वे 8 जनवरी को हड़ताल में शामिल होते हैं तो उन्हें इसका ‘नतीजा’ भुगतना पड़ेगा। जी बिजनेस में छपी ख़बर के मुताबिक सरकारी आदेश में वेतन काटने के अलावा उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की भी धमकी दी गई है। केंद्र सरकार के सभी विभागों को भेजे गए आदेश में कहा गया है कि मौजूदा निर्देश किसी भी सरकारी कर्मचारी को हड़ताल में शामिल होने से रोकता है, वे व्यापक रूप से ‘आकस्मिक’ अवकाश भी नहीं ले सकते।

हड़ताल प्रतिबंधित करने के दिए संकेत

सरकारी आदेश में कहा गया है कि संघ या यूनियन बनाने का अधिकार हड़ताल या आंदोलन का अधिकार नहीं देता। मंत्रालय ने कहा, ‘‘इस तरह का कोई सांविधिक प्रावधान नहीं है जो कर्मचारियों को हड़ताल पर जाने का अधिकार देता हो।’’ आदेश में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का भी हवाला देते हुए हड़ताल पर जाना एक अनुशासनहीनता बताया गया है।

यही नहीं, इसके खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई की धमकी के साथ केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल और CISF से कड़ी निगरानी सुनिश्चित करने को भी कहा गया है।

उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार द्वारा 44 श्रम कानूनों की जगह लाई गई 4 संहिताएँ यूनियन व हड़ताल के अधिकारों में भी भारी कटौती की है। इसलिए भी हड़ताल जरुरी है, साथ ही इसे लगातार व जुझारू संघर्षों में भी बदलने की ज़रुरत है।

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