सप्ताह की कविता : राजेश जोशी की पांच कविताएँ !

शासक होने की इच्छा / राजेश जोशी

वहाँ एक पेड़ था
उस पर कुछ परिंदे रहते थे
पेड़ उनकी आदत बन चुका था

फिर एक दिन जब परिंदे आसमान नापकर लौटे
तो पेड़ वहाँ नहीं था
फिर एक दिन परिंदों को एक दरवाजा दिखा
परिंदे उस दरवाजे से आने-जाने लगे
फिर एक दिन परिंदों को एक मेज दिखी
परिंदे उस मेज पर बैठकर सुस्ताने लगे
फिर परिंदों को एक दिन एक कुर्सी दिखी
परिंदे कुर्सी पर बैठे
तो उन्हें तरह-तरह के दिवास्वप्न दिखने लगे

और एक दिन उनमें
शासक बनने की इच्छा जगने लगी !


यह समय / राजेश जोशी

यह मूर्तियों को सिराये जाने का समय है ।

मूर्तियाँ सिराई जा रही हैं ।

दिमाग़ में सिर्फ़ एक सन्नाटा है
मस्तिष्क में कोई विचार नहीं
मन में कोई भाव नहीं

काले जल में, बस, मूर्ति का मुकुट
धीरे-धीरे डूब रहा है !


जुनेद को मार दो / राजेश जोशी

बहाना कुछ भी करो
और जुनेद को मार डालो।

बहाना कुछ भी हो, जगह कोई भी
चलती ट्रेन हो, बस, सड़क, शौचालय या घर
नाम कुछ भी हो अख़लाक, कॉमरेड जफर हुसैन या जुनेद
क्या फर्क पड़ता है
मकसद तो एक है
कि जुनेद को मार डालो!

जरुरी नहीं कि हर बार तुम ही जुनेद को मारो
तुम सिर्फ एक उन्माद पैदा करो, एक पागलपन
हत्यारे उनमें से अपने आप पैदा हो जायेंगे
और फिर,वो एक जुनेद तो क्या, हर जुनेद को
मार डालेंगे।

भीड़ हजारों की हो या लाखों की क्या फर्क पड़ता है
अंधे बहरों की भीड़ गवाही नहीं देती
हकला हकला कर उनमें से कोई कहेगा
कि हादसा बारह बजकर उन्नीस मिनिट पर हुआ
पर वो तो उस दिन ग्यारह बजकर अट्ठावन मिनट पर
घर चला गया था, उसने कुछ नहीं देखा
ये डरे हुए लोगों की भीड़ है
जानते हैं कि अगर निशानदेही करेंगे
तो वो भी मार दिये जायेंगे

जुनेद को मारना उनका मकसद नहीं
पर क्या करें तानाशाही की सड़क
बिना लाशों के नहीं बनती !


मारे जाएँगे / राजेश जोशी

जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे, मारे जाएँगे

कठघरे में खड़े कर दिये जाएँगे
जो विरोध में बोलेंगे
जो सच-सच बोलेंगे, मारे जाएँगे

बर्दाश्त- नहीं किया जाएगा कि किसी की कमीज हो
उनकी कमीज से ज्यादा सफ़ेद
कमीज पर जिनके दाग नहीं होंगे, मारे जाएँगे

धकेल दिये जाएंगे कला की दुनिया से बाहर
जो चारण नहीं होंगे
जो गुण नहीं गाएंगे, मारे जाएँगे

धर्म की ध्वजा उठाने जो नहीं जाएँगे जुलूस में
गोलियां भून डालेंगी उन्हें, काफिर करार दिये जाएँगे

सबसे बड़ा अपराध है इस समय निहत्थे और निरपराधी होना
जो अपराधी नहीं होंगे, मारे जाएँगे


अँधेरे के बारे में कुछ वाक्य / राजेश जोशी

अन्धेरे में सबसे बड़ी दिक़्क़त यह थी कि वह क़िताब पढ़ना
नामुमकिन बना देता था।

पता नहीं शरारतन ऐसा करता था या क़िताब से डरता था
उसके मन में शायद यह संशय होगा कि क़िताब के भीतर
कोई रोशनी कहीं न कहीं छिपी हो सकती है।
हालाँकि सारी क़िताबों के बारे में ऐसा सोचना
एक क़िस्म का बेहूदा सरलीकरण था।
ऐसी क़िताबों की संख्या भी दुनिया में कम नहीं,
जो अन्धेरा पैदा करती थीं
और उसे रोशनी कहती थीं।

रोशनी के पास कई विकल्प थे
ज़रूरत पड़ने पर जिनका कोई भी इस्तेमाल कर सकता था
ज़रूरत के हिसाब से कभी भी उसको
कम या ज़्यादा किया जा सकता था
ज़रूरत के मुताबिक परदों को खींच कर
या एक छोटा-सा बटन दबा कर
उसे अन्धेरे में भी बदला जा सकता था
एक रोशनी कभी कभी बहुत दूर से चली आती थी हमारे पास
एक रोशनी कहीं भीतर से, कहीं बहुत भीतर से
आती थी और दिमाग को एकाएक रोशन कर जाती थी।

एक शायर दोस्त रोशनी पर भी शक करता था
कहता था, उसे रेशा-रेशा उधेड़ कर देखो
रोशनी किस जगह से काली है।

अधिक रोशनी का भी चकाचौंध करता अन्धेरा था।

अन्धेरे से सिर्फ़ अन्धेरा पैदा होता है यह सोचना ग़लत था
लेकिन अन्धेरे के अनेक चेहरे थे
पाँवर-हाउस की किसी ग्रिड के अचानक बिगड़ जाने पर
कई दिनों तक अंधकार में डूबा रहा
देश का एक बड़ा हिस्सा।
लेकिन इससे भी बड़ा अन्धेरा था
जो सत्ता की राजनीतिक ज़िद से पैदा होता था
या किसी विश्वशक्ति के आगे घुटने टेक देने वाले
ग़ुलाम दिमाग़ों से !
एक बौद्धिक अँधकार मौका लगते ही सारे देश को
हिंसक उन्माद में झोंक देता था।

अन्धेरे से जब बहुत सारे लोग डर जाते थे
और उसे अपनी नियति मान लेते थे
कुछ ज़िद्दी लोग हमेशा बच रहते थे समाज में
जो कहते थे कि अन्धेरे समय में अन्धेरे के बारे में गाना ही
रोशनी के बारे में गाना है।

वो अन्धेरे समय में अन्धेरे के गीत गाते थे।

अन्धेरे के लिए यही सबसे बड़ा ख़तरा था।



कवि : राजेश जोशी

जन्म : 18 जुलाई 1946 को मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले में हुआ।

साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी साहित्यकार हैं। राजेश जोशी की कविताएँ गहरे सामाजिक अभिप्राय वाली होती हैं। वे जीवन के संकट में भी गहरी आस्था को उभारती हैं। उनकी कविताओं में स्थानीय बोली-बानी, मिजाज़ और मौसम सभी कुछ व्याप्त है। उनके काव्यलोक में आत्मीयता और लयात्मकता है तथा मनुष्यता को बचाए रखने का एक निरंतर संघर्ष भी। दुनिया के नष्ट होने का खतरा राजेश जोशी को जितना प्रबल दिखाई देता है, उतना ही वे जीवन की संभावनाओं की खोज के लिए बेचैन दिखाई देते हैं।


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