मोदी राज में डूबती बैंकिंग व्यवस्था
नोटबंदी और जीएसटी के बाद से कई गुना बढ़ गया बैंक फ्राड
देश की अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही है। और दूसरी ओर प्रधानमंत्री और भाजपा लोगों को हिंदू मुस्लिम में बांटने में जुटी हुई है। नागरिकता कानून और दूसरे गैर जरूरी मुद्दों से लोगों को बांटने और राज करने का काम कर रही है।
आज कुछ अखबारों में हेडलाइन है कि वित्त वर्ष 2018-19 में बैंकिंग क्षेत्र ने 71 हजार 542.93 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के 6,801 मामले सामने आए हैं, लेकिन आप आश्चर्य चकित रह जाएंगे जब जानेंगे कि वर्ष दर वर्ष मोदी सरकार में बैंक फ्रॉड की यह रकम कैसे बढ़ती जा रही है………
2013-14 में मात्र 10 हजार 70 करोड़ रुपए
2014-15 में लगभग डबल 19 हजार 361 करोड़
2015-16 में 18 हजार 698 करोड़ रुपये
2016-17 में 23 हजार 984 करोड़ रुपये
2016-17 में ही नोटबन्दी की गई थी अब दिल थाम कर अगले तीन आँकड़े देखिए
2017-18 में 41 हजार 167 करोड़ रुपये
2018-19 में 71 हजार 500 करोड़ रुपये
2019 -20 में 1 अप्रैल- 30 सितंबर 2019 में 95 हजार 760.49 करोड़ रुपये
कुछ दिनों पहले ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यसभा में बताया है कि ‘आरबीआई के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, चालू वित्तवर्ष के दौरान एक अप्रैल 2019 से 30 सितंबर 2019 की अवधि में 95 हजार 760.49 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के 5,743 मामले हुए सामने आए हैं ओर अब इस साल सिर्फ 6 महीने में यह रकम 95 हजार 700 करोड़ हो गयी है
यानी यह साफ है कि जैसे ही नोटबन्दी ओर जीएसटी के बाद देश मे डिजिटल इकनॉमी का जोर बढ़ने लगा बैंक फ्रॉड की रकम भी दिन दूनी रात चौगुनी की रफ्तार से बढ़ने लगी हैं
भारतीय बैंकिंग सेक्टर की मौजूदा स्थिति पर नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने हाल ही में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था “जिस तरह रोजाना बैंकिंग फ्रॉड के नए मामले सामने आ रहे हैं, उससे अविश्वास पैदा होना स्वाभाविक है। इसके लिए ग्राहकों को दोष नहीं दिया जा सकता है। एक बात साफ है कि भारतीय रिजर्व बैंक बहुत सतर्क नहीं है। वह बैंकों को सचेत करने में असफल रहा है। यह बहुत चिंताजनक स्थिति है’, यह है असलियत मोदी राज में भारतीय बैंकिंग की….
गिरीश मालवीय की पोस्ट