8 जनवरी की राष्ट्रव्यापी मज़दूर हड़ताल को सफल बनाएँ!

मोदी सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के अहवान को मासा ने दिया समर्थन

लम्बे संघर्षों के दौरान मिले श्रम क़ानूनी अधिकारों को छीनने, निजीकरण, छंटनी-लेओफ़-बंदी आदि के ख़िलाफ़ 8 जनवरी, 2020 को होने वाले देशव्यापी हड़ताल का मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) पूरा समर्थन करता है। मासा इस हड़ताल को पूँजीवादी-साम्राज्यवादियों के हितों को पूरा करने वाली मज़दूर विरोधी नव-उदारवादी नीतियों तथा मोदी सरकार की धार्मिक उन्माद पैदा करने वाली फूटपरस्त और फासिस्ट नीति के खिलाफ निरंतर, जुझारू एवं समझौताहीन संघर्ष में तब्दील करने के लिए मज़दूरों का आह्वान करता है।

हड़ताल को सफल बनाने के लिए मासा द्वारा जारी पर्चे को हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं!

  • हड़ताल को मोदी सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों और मौजूदा शोषणमूलक व्यवस्था के खिलाफ जुझारू एवं समझौताहीन संघर्ष में तब्दील करें!
  • ‘नए लेबर कोड’ के जरिये मज़दूर वर्ग पर मोदी सरकार का खतरनाक हमला – श्रम कानूनों में मज़दूर विरोधी बदलाव, स्थायी रोजगार का खात्मा, सरकारी संस्थानों का निजीकरण और लगातार छंटनी के खिलाफ संघर्ष तेज करें!
  • 25 हज़ार रुपये मासिक न्यूनतम मज़दूरी, 15 हज़ार रुपये पेंशन, 15 हज़ार रुपये बेरोजगारी भत्ता, सभी क्षेत्रों के मज़दूरों के लिए मज़दूर हित में श्रम कानून, यूनियन के अधिकार व सार्वजनिक सामाजिक सुरक्षा की माँगों को आगे बढ़ाएं!
  • मोदी सरकार के धर्माधारित भेदभाव पूर्ण सीएए, एनारसी व एनपीआर, जनवादी अधिकारों पर हमला करने वाली दमनकारी फासिस्ट नीति का कड़ा विरोध करें !

केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों ने आगामी 8 जनवरी 2020 को देशव्यापी मज़दूर हड़ताल का आह्वान किया है। यह हड़ताल ऐसे समय में हो रहा है, जब मालिक वर्ग और सरकार द्वारा 1947 के बाद से भारत के मज़दूर वर्ग पर सबसे खतरनाक हमले किये जा रहे हैं। इन हमलों द्वारा देशी-विदेशी पूँजीपतियों और सरकार का गठजोड़ देश के मज़दूर वर्ग को गुलामी की ज़ंजीरों में और मजबूती से जकड़ता जा रहा है। सरकार पूँजीवाद जनित आर्थिक मंदी से पैदा संकट का सारा भार मेहनतकश जनता के कंधों पर डालने के लिए आर्थिक पैकेज देकर पूँजीपतियों का मुनाफा बरकरार रखे हुए है।

एक तरफ बेरोजगारी 45 सालों में चरम पर है, दूसरी तरफ रेलवे, टेलिकॉम, आर्डिनेंस, खदान सहित सरकारी क्षेत्र का तेजी से निजीकरण किया जा रहा है। निजी क्षेत्र – ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल व अन्य उद्योगों में मंदी के बहाने भारी तादाद में मज़दूरों की छंटनी की जा रही है। मज़दूर यूनियनों-संगठनों को कमजोर किया जा रहा है, उन पर दमन तेज हो रहा है। पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार ने मालिकों के हित में श्रम कानूनों में जो गंभीर बदलाव शुरू किये थे, अब उन्हें अंतिम रूप दिया जा रहा है।

सरकार चाहे किसी दल की बनी हो मालिकों को श्रम कानूनों का उल्लंघन करने की खुली छूट मिली हुई है। कार्यस्थल पर सुरक्षा मानकों का पूरी तरह उल्लंघन होता है। फैक्टरियों में आग लगने या दुर्घटनाओं में मजदूरों का बेमौत मरना आम बात हो गयी है। अभी हाल ही में दिल्ली में फैक्टरी में आग लगने से 45 से अधिक मजदूर जलकर मर गये व अनेकों घायल हैं। महंगाई आसमान छू रही है। शिक्षा व चिकित्सा आम लोगों की पहुँच से बाहर होती जा रही है। महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध बढ़ रहे हैं। जनता गुस्से में है। मजदूर- कर्मचारी, छात्र, महिलाएं सड़कों पर हैं।

ऐसे में मोदी सरकार ने असल मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने के लिए राम मंदिर, कश्मीर , नागरिकता संशोधन कानून, NRC के नाम पर धार्मिक उन्माद फैला कर जनता की एकता तोड़ने की साजिश रच दी है। सरकार की नीतियों के विरोध करने के जनवादी अधिकार को पुलिस व सुरक्षा बलों के सहारे कुचला जा रहा है। यह अत्यंत निंदनीय है।

मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) इस हड़ताल का पूरा समर्थन करता है। इस हड़ताल को पूँजीवादी-साम्राज्यवादियों के हितों को पूरा करने वाली मज़दूर विरोधी नव-उदारवादी नीतियों तथा मोदी सरकार की धार्मिक उन्माद पैदा करने वाली फूटपरस्त और फासिस्ट नीति के खिलाफ निरंतर, जुझारू एवं समझौताहीन संघर्ष में तब्दील करने के लिए मज़दूरों का आह्वान करता है।

मज़दूरों के दशकों के संघर्ष, क़ुरबानी और जुझारू ट्रेड यूनियन आन्दोलन के दबाव में सरकार और मालिकों को मज़दूरों के यूनियन गठन, न्यूनतम मज़दूरी, नौकरी की सुरक्षा, सम्मानजनक काम का माहौल, सामाजिक सुरक्षा आदि अधिकारों को कुछ मान्यता देनी पड़ी थी, जिनमें 44 श्रम कानूनों में मिले अधिकार शामिल हैं। सरकार अब इन 44 श्रम कानूनों को 4 श्रम संहिताओं में बदल कर ख़त्म कर रही है। ये संहिताएं हैं- मज़दूरी पर श्रम संहिता, औद्योगिक संबंधों पर श्रम संहिता, सामाजिक सुरक्षा व कल्याण श्रम संहिता तथा व्यवसायिक सुरक्षा एवं कार्यदशाओं की श्रम संहिता। मज़दूरी पर श्रम संहिता पारित हो चुकी है, बाकि तीन श्रम संहिताएँ पारित होने की प्रक्रिया में है।

मोदी सरकार द्वारा श्रम कानूनों में बदलाव करने का मूल मकसद है- ‘हायर एण्ड फॉयर’ की नीति यानी देशी-विदेशी कंपनियों को बेहद सस्ते दाम पर मज़दूर रखने और मनमर्जी के अनुसार मजदूरों को काम से निकालने की खुली छूट देना; स्थाई प्रकृति के रोजगार को समाप्त करके ‘फिक्स्ड टर्म रोजगार’ लागू करना, कौशल विकास के बहाने फोक़ट के मज़दूर नीम ट्रेनी भरती करना, मूल नियोक्ता को ठेका मज़दूरों की जिम्मेदारी से मुक्त करके ठेकेदार के जिम्मे छोड़ना, विभिन्न प्रकार के अस्थायी एवं अनौपचारिक क्षेत्र के मजदूरों को ‘ कामगार’ की श्रेणी से बाहर करके उन्हें अपनी माँग उठाने के कानूनी अधिकार से वंचित करना, स्थायी प्रकृति के काम में भी ठेका मज़दूर लगाने की छूट देना, मनमाने काम के घंटे तय करना (मजदूरी पर श्रम संहिता के लिए बनाई केन्द्रीय नियमावली में 9 घंटे का कार्यदिवस करना और काम के समय का अधिकतम विस्तार 16 घंटे तक करने का प्रावधान है), अपने अधिकारों की रक्षा के लिए मज़दूरों को संगठित होकर लड़ने और हड़ताल करने से रोकना और यूनियन गठित करने के अधिकारों पर हमला आदि।

साथ में, विभिन्न श्रेणियों के मजदूरों के लिए बनाए गए कानूनों को ख़त्म कर दिया गया, जैसे कि – भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (बीओसीडब्ल्यू) एक्ट 1996 रद्द होने से कंस्ट्रक्शन वर्कर्स को मिलने वाले सारे लाभ बंद हो जाएंगे। इस एक्ट के ख़त्म हो जाने से देश के सभी राज्यों के बीओसीडब्ल्यू बोर्ड बंद हो जाएंगे और लगभग चार करोड़ मज़दूरों का पंजीकरण रद्द हो जाएगा।

वेतन संहिता विधेयक में 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन में न्यूनतम मज़दूरी तय करने के फार्मूले का पूरी तरह उल्लंघन किया गया है। 15वें श्रम सम्मेलन में तय फार्मूले के आधार पर आज देश में न्यूनतम मज़दूरी 25,000 रुपये होनी चाहिए। परंतु गत 10 जुलाई को केन्द्रीय श्रममंत्री ने पूरी बेशर्मी से तय फार्मूले को नकार कर राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन 4,628 रुपए प्रति माह (178 रुपये दैनिक) की घोषणा की थी (विरोध के बाद इस घोषणा को वापस लिया गया)। सातवें वेतन आयोग ने 1 जनवरी, 2016 सें 18000 रुपए प्रतिमाह का प्रस्ताव किया था, जो वर्तमान में 22000 रुपये मासिक हो चुकी है।

यह भी गौरतलब है कि जुलाई, 2018 में सरकारी पैनल की एक्सपर्ट कमेटी ने महंगाई के आधार पर देश में न्यूनतम दैनिक मज़दूरी 375 रुपये करने का सुझाव दिया था। इससे ‘5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था’ और ‘तरक्की’ की बात करने वाली इस सरकार की मज़दूरों के प्रति क्या नीयत है,का साफ पता लगता है।

श्रम कानून देश के मज़दूरों के एक छोटे और संगठित हिस्से के लिए ही थे, देश के अधिकतर मज़दूर इन कानूनों के दायरे से बाहर ही थे। मगर उन कानूनों के आधार पर उन्हें व्यापक करते हुए देश के तमाम संगठित-असंगठित मज़दूरों के लिए अधिकार और सुविधाओं की माँग की जा सकती थी। परंतु आज इन आधिकारों को ही ख़त्म किया जा रहा है। इस स्थिति में ऐसे अन्याय और हमलों के खिलाफ सचेत व संगठित होकर सरकार व मौजूदा शोषणमूलक व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष करना ही एकमात्र रास्ता है

आज मोदी सरकार द्वारा योजनाबद्ध तरीके से धार्मिक कट्टरता और उन्माद, अंधराष्ट्रवाद और युद्धोन्माद का ज़हर फैला कर परदे के पीछे से देश की आम जनता, ख़ास कर मजदूरों, पर इतने बड़े-बड़े हमले करने की तैयारी हो रही है।अगर कोई भी व्यक्ति या संगठन मज़दूरों के पक्ष में बात करते हुए सरकार की नीतियों की आलोचना करे और इसके असली चेहरे को बेनकाब करने की कोशिश करे तो उसे तुरंत राष्ट्रविरोधी और आतंकवादी करार दे दिया जाता है, उसके साथ मारपीट होती है, जेल में ठूंस दिया जाता है। सरकार के लिए ‘देशहित’ का मतलब अम्बानी-आदानी जैसे पूँजीपतियों का हित ही है। ‘देशहित’ का मतलब मज़दूर-मेहनतकश जनता का हित होना चाहिए। इसके लिए मज़दूर वर्ग को गुलामी की जंजीरों में जकड़कर रखने वाली मौजूदा पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष तेज करना पड़ेगा।

आज दमन के वावजूद देश भर में मज़दूर संघर्षरत है। रेल, रोडवेज, आर्डिनेंस फैक्ट्रियों के मज़दूर निजीकरण के खिलाफ संघर्षरत है, ऑटोमोबाइल, आई टी के मज़दूर छंटनी के खिलाफ संघर्षरत है, आंगनवाड़ी, मिड-डे-मील, आशा वर्कर,मनरेगा मज़दूर मजदूरी के सवाल पर संघर्षरत है। मासा इन सभी संघर्षों के साथ खड़ा है, और मज़दूर विरोधी सभी हमलों के खिलाफ देश भर में संघर्षरत मज़दूरों की आवाज़ बुलंद करने के लिए प्रतिबद्ध है। एकता की ताकत से मज़दूर जब भी जागा है, इतिहास ने करवट बदली है

आइये, 8 जनवरी, 2019 की हड़ताल को ऐतिहासिक बनाएं! हमें सालाना एक दिन की हड़ताल पर रुकना नहीं है, जैसे पिछले कई सालों से होता रहा है। मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) तमाम मजदूरों-मेहनतकशों का आह्वान करता है कि इस हड़ताल को सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों तथा मौजूदा शोषणमूलक व्यवस्था के खिलाफ निर्णायक संघर्ष तेज करने की दिशा में मज़दूर वर्ग की लड़ाई को आगे बढ़ाएं। मोदी सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन कानून, एनारसी व एनपीआर या किसी अन्य तरीके से धार्मिक भेदभाव पैदा करके धार्मिक कट्टरता, अंधराष्ट्रवाद और युद्धोन्माद का जहर फैला कर जनता की एकता तोड़ने वाली दमनकारी फासिस्ट नीति का विरोध करें!

मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा)

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