आरएसएस कार्यालय के सामने महिलाओं ने जलाया मनुस्मृति का प्रतीक

माहड़ सत्याग्रह के समय 25 दिसम्बर, 1927 को बाबासाहेब भीम राव आंबेडकर ने पहली बार मनुस्मृति जला कर ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था का विरोध किया था| मनुस्मृति ऐसे नियम कानूनों की संहिता है जिसमें महिलाओं और शुद्र (आज दलित-ओबीसी) समुदायों के ऊपर सामाजिक नियंत्रण के तरीकों को विस्तार में लिखा गया है| इसी विरासत को आगे बढ़ाते हुए कल दिल्ली में महिला-छात्राओं के संगठन पिंजरा तोड़ ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नए कार्यालय के बाहर मनुस्मृति दहन दिवस का पालन किया और मनुस्मृति का प्रतीक जलाया|

छात्रों का कहना था कि आज देश में हिंदुत्ववादी ताकतें मनु का राज कायम करने की पुरजोर कोशिश कर रही हैं| भाजपा सरकार के पीछे से काम कर रहा संघ परिवार सरकार की छात्रोछाया में पिछले 6 सालों में और मज़बूत बना है और समाज में अपनी पैंठ बढ़ाने में सफ़ल हुई है| छात्राओं ने शपथ ली की वे आखरी दम तक संघ के हिन्दूराष्ट्र बनाने के मंसूबे के खिलाफ़ संघर्ष करती रहेंगी और एक समानतापूर्ण समाज बनाने की ओर काम करती रहेंगी| मनुस्मृति में महिलाओं के प्रति रखी गयी मानसिकता ही आज एक ओर “हॉनर किल्लिंग” और दूसरी ओर महिलाओं के प्रति बढ़ रहे यौन हिंसा आ आधार बनाती हैं| उनका कहना है की आज सरकार जिस तरीके से नागरिकता संशोधन अभिनियम व अखिल भारतीय नागरिक पंजी को लागु कर रहीं हैं यह भाजपा द्वारा देश में हिन्दू राष्ट्र कायम करने की ओर एक निर्णायक कदम है| इसके खिलाफ़ हो रहे प्रतिवाद को जिस बर्बरता से पुलिस प्रशासन द्वारा दबाया जा रहा है वह इस बात की गवाही देता है कि आज संघ राज सत्ता के सभी हथियारों को अपने काम में लगा रहा है| सावित्रीबाई, भगतसिंह और अम्बेडकर के सपनों को साकार करने के नारे लगाते हुए छात्राओं ने आरएसएस ऑफिस से अम्बेडकर भवन तक जुलूस निकाल कर सभा का अंत किया|   

वक्ताओं ने कहा कि आरएसएस के नए कार्यालय के सामने मनुस्मृति दहन का पालन करने के पीछे उनकी यह मंशा भी थी की आज देश में चल रही राजनीति में संघ जैसे संगठन के विस्तार की ओर ध्यान आकर्षित हो| संघ के इस 11 माले के कार्यालय का निर्माण 2016 में शुरू किया गया था| आरएसएस एक सशस्त्र संगठन है| ऐसे संगठन का विस्तार और सरकार द्वारा इन्हें दी जा रही मदद देश में सभी के लिए एक ख़तरा खड़ा कर रही है|

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