“संघर्ष द्वारा चुनौतियों से निपटना होगा!”
मज़दूरों के हालात और संघर्ष की स्थितिओं पर यूनियन नेताओं की सोच-4
मज़दूर वर्ग के लिए यह एक कठिन दौर है। जहाँ मज़दूरों के श्रम क़ानूनी अधिकार छिन रहे हैं, छँटनी-बन्दी तेज हो गई है; वहीँ मज़दूर धर्म-राष्ट्र जैसे गैर मुद्दों पर उलझा दिया गया है। ऐसे में मज़दूर आन्दोलन की समस्याओं पर ‘मेहनतकश’ टीम द्वारा कुछ यूनियन प्रतिनिधियों से जानी गई राय के क्रम में श्रमिक नेता दिनेश आर्या की सोच प्रस्तुत है।
1- श्रम कानून बदल रहे हैं, इसे आप कैसे देखते हैं?
-श्रम कानूनों में बदलाव मज़दूर के हक़ पर हमला है।
2- रोजगार के नए रूपों फिक्सड टर्म व नीम ट्रेनी से आपके प्लांट में क्या फर्क़ पड़ रहा है?
-रोजगार के नए रूपों से सिर्फ मालिको को सस्ते मज़दूर मिल रहे हैं और कुछ नहीं। और बरसों से स्थायी होने की बाट जोह रहे मज़दूर अब आखिरी उम्मीद भी खो चुके हैं।
3- क्या इस दौर में छाँटनी व तालाबंदी बढ़ रही है?
-हाँ छाँटनी व तालाबंदी बढ़ रही हैं।
4- आज मज़दूरों को संगठित होने की प्रमुख चुनौतियाँ क्या है?
-आज प्रमुख चुनौती प्रबन्धन के साथ साथ सरकार और प्रशासन से भी लड़ने की है।
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5- आपको ठेका व स्थाई श्रमिकों को एक साथ संगठित करने की समस्या क्या लगती है?
-प्रबन्धन की फुट डालो और राज करो कि नीति जो हमेशा ठेका मजदूरों और स्थायी मजदूरों को एकजुट नही होने देती।
6- आज मज़दूरों को क्या प्रभावित कर रहा है- पाकिस्तान, राष्ट्रवाद, गोरक्षा जैसे मुद्दे या श्रमिक अधिकारों पर बढ़ते हमले, छाँटनी-तालाबंदी जैसी समस्या?
-श्रमिक अधिकारों पर बढ़ते हमले और तालाबंदी, छटनी प्रभावित कर रहे हैं।
7- यूनियनों को आज के समय की चुनौतियों को किस प्रकार हल करना चाहिए?
-यूनियन को आज संघर्ष के माध्यम से और आंदोलनों के माध्यम से चुनौतियों से निबटना चाहिये।
–दिनेश आर्या
अध्यक्ष, टाटा मोटर्स लि. श्रमिक संघ, पंतनगर, उत्तराखण्ड
‘संघर्षरत मेहनतकश’ पत्रिका, नवम्बर-दिसम्बर, 2019 में प्रकाशित