मानेसर में होंडा कंपनी के मजदूर हड़ताल पर

चार हजार श्रमिक धरने पर, आज आठवां दिन

देश की नंबर दुपहिया वाहन कंपनी होंडा का मानेसर सेक्टर इन दिनों सुर्खियों में है, इसका कारण है कंपनी प्रबंधन द्वारा लगातार कैजुअल श्रमिकों को बिना कारण बताये काम से निकालना। इसके खिलाफ भारी संख्या में पिछले 5 नवंबर से मजदूर हड़ताल पर हैं। अब प्रबंधन ने कुछ समय के लिए कंपनी बंदी की घोषणा कर दी है। गौरतलब है कि होंडा मानेसर प्लांट में 1900 परमानेंट और 2100 कैजुअल श्रमिक काम करते हैं। कंपनी बंदी से सीधे इनके पेट पर लात पड़ेगी।

फिलहाल होंडा में 5 नवंबर से हजारों कर्मचारी धरने पर बैठे हुए हैं। मजदूरों की हड़ताल के बाद शुक्रवार 8 नवंबर को कंपनी की तरफ से शटडाउन घोषित कर दिया गया और श्रमिकों के लिए कैंटीन तक बंद कर दी गयी। खबरें इस तरह की भी आयीं कि कंपनी में कर्मचारियों के इस्तेमाल की जाने वाले टॉयलेट को वेल्डिंग से सील कर दिया गया। हालांकि बाद में श्रमिक नेताओं से मैनेजमेंट पदाधिकारियों की बातचीत हुई, तो कैंटीन खुलवायी गयी और धरनारत मजदूरों को खाना मिला। हालांकि होंडा मैनेजमेंट ने साफ कर दिया कि इसके बाद न तो कैंटीन चलेगी और न ही कंपनी के अंदर धरना दे रहे मजदूरों को कोई और सुविधा दी जायेगी।

धरनारत श्रमिक मांग कर रहे हैं या तो कंपनी प्रबंधन निकाले गये कैजुअल वर्कर्स को काम पर वापस रख ले या फिर उन्हें उनके काम के सालों के हिसाब से प्रतिवर्ष 1 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाये। होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर इंडिया (एचएचएसआई) मजदूर यूनियन के अध्यक्ष सुरेश गौड़ ने जनज्वार से हुई बातचीत में कहा, ‘होंडा कंपनी द्वारा मंदी की बात सिर्फ एक बहाना है। अगर कंपनी में मंदी होती तो सिर्फ मानेसर में ही क्यों, होंडा के बाकी तीन प्लांट राजस्थान के टपोगोड़ा, गुजरात के नरसापुर और कर्नाटक के प्लांट में मंदी का असर क्यों नहीं है। वहां क्यों नहीं निकाल रही कंपनी श्रमिकों को बाहर। असल में कंपनी कैजुअल मजदूरों के साथ—साथ परमानेंट मजदूरों को भी अधिकार देने के मूड में नहीं है। 16 महीने से हम परमानेंट श्रमिकों का वेज सेटलमेंट लटका हुआ है, लेकिन कंपनी प्रबंधन सुनवाई के मूड में नहीं है। पिछले कई ​महीनों से बीच—बीच में 100—150 मजदूरों को कंपनी बाहर का रास्ता दिखा रही थी, लेकिन 5 नवंबर को उसने 150 लोगों को एक साथ बाहर निकाला और 400 अन्य को बाहर करने की तैयारी प्रबंधन कर रहा था, तो उसके बार होंडा श्रमिकों ने आंदोलन शुरू किया है। इसी के विरोध में करीब 1400 श्रमिक फैक्ट्री के अंदर और 700 कैजुअल श्रमिक फैक्ट्री के बाहर धरना दे रहे हैं।’

होंडा यूनियन प्रेसिडेंट सुरेश गौड़ आगे कहते हैं, हम मैनेजमेंट से समझौते को तैयार हैं, कुछ मांगें अभी न भी मानी जायें उस पर भी तैयार हैं, लेकिन कैजुअल मजदूरों को काम पर वापस रखा जाये, इस मामले में यूनियन का नैतिक समर्थन श्रमिकों के साथ है।

सुरेश गौड़ कहते हैं, कंपनी प्रबंधन हर तीन महीने बाद कर्मचारियों को तीन से चार महीने के लिए हटा देती है, मगर पहले हटाए गए काफी कर्मचारियों को काम पर वापस भी नहीं रखा गया। बेरोजगारी के चलते श्रमिक भारी आर्थिक तंगी से जूझते रहते हैं। कंपनी प्रबंधन से कई बार इसे लेकर हमारी बात भी हुई, मगर ठोस नतीजा नहीं निकला। दीपावली से पहले भी स्थायी कर्मचारी को निकालने पर प्लांट में विवाद बढ़ गया था, मगर तब प्रबंधन ने दीवाली होने की वजह से स्थिति मैनेजमेंट ने प्लांट चालू रखा।

श्रमिक नेता मुकुल कहते हैं, सवाल ये है कि अगर मंदी है भी तो जैसे मोदी सरकार पूंजीपतियों और फैक्ट्री मालिकों मंदी से उबरने के लिए मदद कर रही है, वैसे ही श्रमिकों को सहयोग क्यों नहीं कर रही है। उन्हें मरने के लिये क्यों छोड़ रही है। सरकार की गलत नीतियों यानी नोटबंदी का ही परिणाम है कि 2019 से पहले तक 6000 मोटरसाइकिलों का उत्पादन करती थी, वह अब 3000 से 3500 मोटरसाइकिलों के उत्पादन पर आ गयी है।’

एचएचएसआई श्रमिक यूनियन के पूर्व अध्यक्ष रामनिवास कहते हैं, ‘नोटबंदी के बाद हर सेक्टर में सिर्फ मंदी ही छाई है, लेकिन सवाल यह कि सरकार और पूंजीपति सबसे निरंकुश और हमलावर उन्हीं श्रमिकों पर क्यों हैं जिनके बल पर ये कंपनियां चलती हैं, सरकार को टैक्स मिलता है।’ मजदूर नेता अनिल प्रधान ने जनज्वार से हुई बातचीत में कहा कि ‘अब होंडा कंपनी ने परमानेंट मजदूरों का भी काम बंद करवा दिया है। हम सभी सड़क पर आ गये हैं। हमें आशंका है कि कंपनी कहीं प्लांट बंद करके हमें निकालने की साजिश तो नहीं रच रही है, लेकिन हम इसके खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे।’

गौरतलब है कि होंडा प्रबंधन द्वारा कैजुअल मजदूरों को 8 घंटे की मजदूरी के बतौर 14 से 15 हजार रुपये दिये जाते हैं। कंपनी प्रबंधन ने 5 नवंबर को भी 150 कैजुअल श्रमिकों को निकालने की चिट्ठी ​दी थी और 400 अन्य को बाहर निकालने की बात हो रही थी, जिससे श्रमिक भड़क गये और हड़ताल शुरू की। 5 नवंबर तकरीबन सुबह 10.30 बजे करीब 150 कैजुअल कर्मचारियों को हटाने को आदेश कंपनी की तरफ से जारी किया गया था।

लेबर डिपार्टमेंट की ओर से इस मामले में डीएलसी रमेश आहूजा, डीएलएल अजय पाल डूडी, एएलसी मनीष कुमार और लेबर इंस्पेक्टर अभिषेक मलिक श्रमिकों और कंपनी प्रबंधन के बीच समझौते के प्रयास में लगे हैं, जबकि होंडा कंपनी प्रबंधन की ओर से जनरल अफेयर्स प्रमुख नवीन शर्मा और इंडस्ट्रीयल रिलेशन के प्रमुख सुनील दहिया श्रमिकों से बातचीत कर रहे हैं।

होंडा की यह लड़ाई अब राजनीतिक रूप भी लेने लगी है। कांग्रेस के रेवाड़ी से विधायक चिरंजीव राव ने धरनारत होंडा श्रमिकों को समर्थन देते हुए कहा कि उनकी न्याय की लड़ाई में कांग्रेस उनके साथ खड़ी है। केवल आर्थिक मंदी का हवाला देकर इस तरह से लगभग ढाई हजार श्रमिकों को नौकरी से निकालना गलत है। करीब आठ-दस साल से जो श्रमिक यहां काम कर रहे हैं, और उससे उनका घर चलता है उन्हें एक झटके में बेरोजगार करना बहुत गलत है। भाजपा राज में रोजगार के साधन बढ़ाने के बजाय हर क्षेत्र में रोजगार छीनने का काम किया जा रहा है। सीटू समेत अनेक कंपनी यूनियनें भी श्रमिकों के समर्थन में उतर आयी हैं।

गौरतलब है कि इस धरने से पहले 2005 भी मानेसर होंडा प्लांट चर्चा में आया था। तब होंडा मानेसर प्लांट के प्रबंधन को श्रमिकों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। हालांकि तब हरियाणा पुलिस ने होंडा श्रमिकों को लघु सचिवालय गुरुग्राम में रोककर उन्हें जमकर मारा-पीटा था, जिसमें काफी कर्मचारी घायल हो गए थे और होंडा कांड इतिहास में दर्ज हो गया। इस कांड की बरसी को आज भी होंडा कर्मचारी याद करते हैं।

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इसके बाद 2009 में भी होंडा श्रमिकों ने वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर हड़ताल की थी। तब लाइन बंद कर उत्पादन ठप्प कर दिया गया था, जिससे कंपनी को कुछ दिनों में ही करोड़ों का नुकसान हुआ था। इसके बाद कंपनी प्रबंधन ने श्रमिकों की मांगों को मानते हुए समझौता किया था और काम शुरू हो पाया था।

इसके अलावा एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि वर्ष 2004 में चौटाला सरकार ने आईएमटी मानेसर होंडा प्लांट में बिजली कनेक्शन नहीं लगने दिया था, जिसके बाद से अब तक कंपनी में केवल जनरेटर से काम होता है और सौर ऊर्जा का भी प्रबंध है।

जनज्वार से साभार

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