जनकवि नागार्जुन के स्मृति दिवस (5 नवम्बर) पर याद करते हुए उनकी कविताएं

(आम जन की पीड़ा व संघर्ष की सच्ची तस्वीर दिखाने वाले साहित्यकार थे बाबा नागार्जुन)

शासन की बंदूक/ नागार्जुन

खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक
नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक

उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक
जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक

बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक
धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक

सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक
जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक

जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक
बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक


बाकी बच गया अंडा/नागार्जुन

पाँच पूत भारतमाता के, दुश्मन था खूँखार
गोली खाकर एक मर गया, बाक़ी रह गए चार

चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर-प्रवीन
देश-निकाला मिला एक को, बाक़ी रह गए तीन

तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गए वो
अलग हो गया उधर एक, अब बाक़ी बच गए दो

दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक
चिपक गया है एक गद्दी से, बाक़ी बच गया एक

एक पूत भारतमाता का, कन्धे पर है झण्डा
पुलिस पकड कर जेल ले गई, बाकी बच गया अण्डा



वैद्यनाथ मिश्र नागार्जुन

(30जून 1911- 5 नवम्बर 1998)

नागार्जुन हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे। अनेक भाषाओं के ज्ञाता तथा प्रगतिशील विचारधारा के साहित्यकार नागार्जुन ने हिन्दी के अतिरिक्त मैथिली संस्कृत एवं बाङ्ला में मौलिक रचनाएँ भी कीं तथा संस्कृत, मैथिली एवं बांग्ला से अनुवाद कार्य भी किया। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नागार्जुन ने मैथिली में यात्री उपनाम से लिखा तथा यह उपनाम उनके मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र के साथ मिलकर एकमेक हो गया।


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