16 घंटे काम कराने की होगी छूट

वेतन श्रम संहिता विधेयक के नियमावली का ड्राफ्ट हुआ जारी, मनमाने काम के घंटे का नियम बना

जय हो! वैश्विक मुनाफाखोरों के हित में सक्रिय मोदी सरकार जहाँ अयोध्या में मंदिर निर्माण के बहाने उन्मादी माहौल बनाने में सक्रिय है, वहीँ उसने दैनिक काम की अवधि 16 घंटे तक करने का फरमान भी जारी कर दिया, वह भी बगैर ओवर टाइम भुगतान के। यह सरकारी व निजी, सभी क्षेत्रों के लिए होगा। जबकि वेज कोड होने के बावजूद इसमें न्यूनतम वेतन पर चुप्पी है।

केंद्र सरकार मज़दूर विरोधी वेतन श्रम संहिता विधेयक (वेज कोड बिल-2019) पारित करने के बाद आनन-फानन में अब उसकी नियमावली बना दी है। उसने वेतन श्रम संहिता नियावली (वेज कोड रूल्स) का ड्राफ्ट भी जारी कर दिया है। इसमें 8 की जगह 9 घंटे दैनिक काम की सिफारिश की गई है। साथ ही आपातकालीन स्थितियो के बहाने 16 घंटे तक काम लेने की भी छूट दिया जा रहा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह वेज कोड होने के बावजूद इसमें राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन पर तस्वीर साफ नहीं है।

नियमावली के जारी ड्राफ्ट पर श्रम मंत्रालय ने सभी संबंधित पक्षों से एक महीने में सुझाव मांगे हैं। केंद्र की ओर से जारी ड्राफ्ट में कहा गया है कि भविष्य में ‘एक एक्सपर्ट कमेटी’ न्यूनतम मजदूरी तय करने के मसले पर सरकार से सिफारिश करेगी।

ज्ञात हो कि देशी-विदेशी पूँजीपतियों को खुश करते हुए मोदी सरकार ने मज़दूर विरोधी चार श्रम संहिताओं में से एक वेतन श्रम संहिता विधेयक (वेज कोड बिल-2019) को संसद के दोनो सदनों में पारित करके विगत 8 अगस्त को राष्ट्रपति का भी अनुमोदन ले लिया था। अब उसको संचालित करने के लिए नियमावली भी बनाकर उसका ड्राफ्ट प्रस्तुत कर दिया।

मज़दूरी पर श्रम संहिता क्या है?

इससे लम्बे संघर्षों के दौरान हासिल मौजूदा 4 श्रम क़ानून – न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, मज़दूरी संदाय अधिनियम, बोनस संदाय अधिनियम और समान पारिश्रमिक अधिनियम समाप्त हो जायेंगे।

वेतन विधेयक संहिता पहले 10 अगस्त, 2017 को लोकसभा में पेश किया गया था, जिसे संसद की स्थायी समिति के पास भेजा गया था। समिति की रिपोर्ट 18 दिसंबर, 2018 को प्रस्तुत हुई थी। लेकिन लोकसभा चुनाव के कारण यह स्थगित रहा। प्रचंड बहुमत के बाद मोदी-2 सरकार ने वेतन श्रम संहिता विधेयक, 2019 पारित कर दिया।

आपातकालीन स्थितियों में 16 घंटे तक काम

प्रस्तावित नियमों के अनुसार वेतन संहिता, 2019 की धारा 13 (उपधारा 1, उपबंध ए) के तहत न्यूनतम वेतन प्राप्त करने के लिए कर्मचारियों को न्यूनतम 9 घंटे काम करना होगा। आपातकालीन स्थितियों में (धारा 13, उपधारा 2) एक दिन में 16 घंटे तक काम करना पड़ सकता है।

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8 घंटे काम का नियम

मानक नियम के मुताबिक, किसी भी श्रमिक का वेतन दैनिक 8 घंटे के हिसाब से तय होता रहा है। इसको 26 से गुणा कर महीने के वेतन का आकलन किया जाता है। 30 दिन के महीने में 4 दिन आराम के, अवकाश के माने जाते हैं। श्रम मंत्रालय के प्राथमिक ड्राफ्ट में जो नई बातें कही गईं, उससे काम के घंटे बढ़ जाएँगे।

काम के मनमाने घंटे

वेतन में धोखाधड़ी के साथ एक और बड़ा हमला मनमाने काम के घंटे तय करने के लिए मालिकों को खुली छूट देना भी है। अभी जारी वेज कोड रूल्स के ड्राफ्ट से भी यह साफ है।

ड्राफ्ट प्रस्ताव के मुताबिक, कार्यदिवस 9 घंटे लंबा हो सकता है, जिससे नियोक्ता अपने कर्मचारियों से ज्यादा काम ले सकेंगे। इतना ही नहीं, नियोक्ता जरूरत के समय इसे बढ़ाकर 12 भी कर सकते हैं। इसका सीधा अर्थ यह है कि नियोक्ता श्रमिक को मनमाने कार्य के लिए कानूनन बाध्य करने को आज़ाद होंगे। इसके अलावा, खास श्रेणी के बहाने कार्यदिवस 16 घंटे तक का भी हो सकता है।

नहीं मिलेगा ओवरटाइम!

श्रम मंत्रालय द्वारा पेश किए गए ड्राफ्ट में 9 घंटे से ज्यादा काम के लिए ओवरटाइम का कोई जिक्र नहीं किया गया है। जबकि न्यूनतम मजदूरी (सेंट्रल रूल्स) ऐक्ट 1950 के मुताबिक, 9 घंटे से ज्यादा काम लेने पर हर साधारण मजदूरी से 150-200% की दर से ज्यादा मजदूरी का प्रावधान है। ड्राफ्ट में सिर्फ उन कर्मियों को ओवरटाइम भुगतान का जिक्र किया गया है जो छुट्टी के दिन काम करते हैं।

देश तीन भौगोलिक क्षेत्रों में बांटने का प्रस्ताव

प्रस्तावित ड्राफ्ट में वेतन संहिता के अनुरूप न्यूनतम वेतन तय करने के लिए पूरे देश को तीन भौगोलिक क्षेत्रों में बांटने की सिफारिश की है। इसमें पहले वर्ग में 40 लाख या इससे ज्यादा की आबादी वाले मेट्रोपोलिटन शहर, दूसरे वर्ग में 10 से 40 लाख तक की आबादी वाले नॉन मेट्रोपोलिटन शहर और तीसरे वर्ग में ग्रामीण इलाकों को शामिल किया गया है। यानी अबतक के वेतन निर्धारण की मान्य अवधारण को पूरी तरह से बदलकर मालिकों के हित ऐसा कर दिया गया है।

न्यूनतम वेतन में धोखाधड़ी

ड्राफ्ट में न्यूनतम वेतन पर भी कुछ नहीं कहा गया है, यह काम भावी एक्सपर्ट कमिटियों के जिम्मे है। इस साल की शुरुआत में श्रम मंत्रालय ने 375 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से न्यूनतम वेतन की सिफारिश की थी। पैनल ने इसे जुलाई 2018 से लागू करने को कहा था। 2018-19 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक, 1 जून 2017 से न्यूनतम दैनिक वेतन 176 रुपये तय किया गया था, जिसे कोड ऑफ वेज बिल 2019 ने 2 रुपये बढ़ाकर 178 रुपये कर दिया था।

वेतन संहिता विधेयक से मज़दूरी तय करने का वह फार्मूला पूरी तरह से बदल गया है, जिसे 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन में तय किया गया था। 4,628 रुपए प्रति माह (178 रुपये दैनिक) राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन की घोषणा हुई है। जबकि सातवें वेतन आयोग ने 1 जनवरी, 2016 सें 18000 रुपए प्रतिमाह की अनुशंसा की थी, जो वर्तमान में 22000 रुपये मासिक हो चुकी है। इससे वेतन नीति की धोखाधड़ी साफ है।

प्रस्तावित ड्राफ्ट की कुछ मुख्य बातें-

  • ड्राफ्ट प्रस्ताव के मुताबिक, दैनिक कार्यकाल कम 9 घंटे लंबा हो होगा, जिससे नियोक्ता अपने कर्मचारियों से ज्यादा काम ले सकेंगे;
  • श्रम मंत्रालय द्वारा पेश किए गए ड्राफ्ट में 9 घंटे से ज्यादा काम के लिए ओवरटाइम का कोई जिक्र नहीं;
  • खास श्रेणी के कर्मी, जो आपातकालीन कार्य या तैयार हो रहे कार्य (प्रीपरेटरी वर्क) में लगे हों, उनका कार्य-दिवस 16 घंटे तक का भी हो सकता है;
  • ड्राफ्ट में न्यूनतम वेतन पर कुछ नहीं कहा गया है, यह काम भावी एक्सपर्ट कमिटियों के जिम्मे होगा।

अयोध्या में मंदिर निर्माण के बनते माहौल के शोर और पागलपन भरे नशे की खुराक के बीच मज़दूर-मेहनतकशों के अधिकारों को कुचलने वाला मोदी सरकार का घोडा फर्राटे भर रहा है!

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