20 महीने में बेचे गए 6128 करोड़ के चुनावी बॉन्ड

FILE PHOTO: A cashier displays the new 2000 Indian rupee banknotes inside a bank in Jammu, November 15, 2016. REUTERS/Mukesh Gupta/File photo - RTX33SVL

वर्ष 2017-18 में कुल 221 करोड़ रुपये बॉन्ड्स में से 210 के बॉन्ड अकेले भाजपा को मिले

नई दिल्ली: मार्च 2018 से अक्टूबर 2019 के बीच स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने कम से कम 12,313 चुनावी बॉन्ड बेचे, जिनकी कुल कीमत 6,128 करोड़ रुपये है. देश में चुनावी बॉन्ड बेचने के लिए  एसबीआई एकमात्र अधिकृत संस्था है.

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने एक विश्लेषण के बाद इसका खुलासा किया है. एडीआर एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) है जो चुनावी और राजनीतिक सुधार के क्षेत्र में काम करती है.

6,128 करोड़ रुपये में से सबसे अधिक बॉन्ड मुंबई (1880 करोड़ रुपये) में खरीदे गए. इसके बाद कोलकाता (1,440 करोड़), दिल्ली (919 करोड़) और हैदराबाद (838 करोड़) में सबसे अधिक बॉन्ड खरीदे गए. अन्य शहरों में कुल मिलाकर 1051 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे गए.

इनमें से अधिकतर बॉन्ड को राजनीतिक दलों ने भुनाया. इस साल के शुरुआत में एक आरटीआई के जवाब में एसबीआई ने बताया था कि 3,622 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केवल दो महीने में बेचे गए थे. अप्रैल 2019 में जहां 2,256.37 करोड़ रुपये वहीं मई 2019 में 1,365.69 करोड़ रुपये के बॉन्ड बेचे गए थे.

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मोदी सरकार ने मार्च 2018 में राजनीतिक दलों को मिलने वाले नकद चंदे के विकल्प के तौर पर चुनावी बॉन्ड को पेश किया था. ये बॉन्ड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1,00,000 रुपये, 10,00,000 रुपये और 1,00,00,000 रुपये के मूल्य में उपलब्ध हैं.

इन बॉन्ड की बिक्री हर तिमाही में दस दिन के लिए की जाती है, जबकि लोकसभा चुनावों के लिए इसे एक महीने के लिए खोला जाता है. इसके अलावा इन बॉन्ड की बिक्री पर सरकार अपनी तरफ से कोई भी समय सीमा तय कर सकती है.

20 महीने पहले शुरु किए गए ये बॉन्ड केवल पिछले 12 महीनों में ही बेचे गए. इन बॉन्ड्स को कोई भी भारतीय खरीद सकता है और किसी भी राजनीतिक दल खाते में जमा करा सकता है. इसके बाद इन बॉन्ड को 15 दिनों के अंदर भुनाना होता है.

वित्त वर्ष 2017-18 में कुल 221 करोड़ रुपये बॉन्ड्स बेचे गए जिनमें से 210 के बॉन्ड अकेले भाजपा को मिले जबकि कांग्रेस मात्र पांच करोड़ और अन्य दलों को कुल मिलाकर छह करोड़ के बॉन्ड मिले.

एडीआर के संस्थापक जगदीप एस. चोकर ने द वायर से कहा, अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह एक महत्वपूर्ण मामला है और इस पर ध्यान दिए जाने की जरुरत है. चुनावों में अनाधिकृत रकम की संभावना लगाता बनी हुई है. यह लोकतंत्र के लिए खराब है.

चंदा लेने और देने वालों की गोपनीयता वाली इस योजना के खिलाफ एडीआर ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह फर्जी कंपनियों के सहारे राजनीतिक दलों के खाते में कालाधन पहुंचाने का माध्यम है.

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